________________
१११
प्रश्न - गिरस्तीके कामोंको छोड़कर क्या अन्य किसी भी कार्यके लिये स्त्री अनधिकारी और अनुपयुक्त है ?
उत्तर- - क्यों नहीं । गिरस्ती से मतलब यह थोड़ा ही है कि अपने नातेदारों से आगे वह और किसीसे सम्बन्ध रखखे ही नहीं। बच्चोंसे उसका संबंध प्राकृतिक है, और ऐसा मालूम होता है कि छोटे बच्चों की शिक्षा के लिए माताएँ और मातृ-जाति विशेष उपयोगी हो सकती है ।
स्त्री और
पुरुष
प्रश्न
-किन्तु स्कूल, अस्पताल, मिशनरी संस्था, न्यायालय, पुलिस विभाग, जल इत्यादि महकमोंमें बतौर पेशे के भी कोई स्थान ले सकती हैं कि नहीं ?
उत्तर - जेल - पुलिस में नहीं । न्यायालय में कथंचित् । और आपके बताये अन्य विभागों में स्त्रीका उपयोग विशिष्टतर मालूम होता है ।
प्रश्न - वे जब उन महकमोंमें मुलाज़िम होंगी, तो गिरस्तीका कार्य उनके यहाँ कौन चलायेगा ?
उत्तर - गिरस्तीका काम, अगर वह बहुत बड़ी गिरस्ती न हो तो, क्या समूचेका समूचा स्त्रीको भर लेता है ? फिर गिरस्तियों में भी तो आपस में सहयोग और मिलना-जुलना होगा । इससे सामुदायिक आवश्यकताएँ भी उत्पन्न होंगीं । जैसे शिक्षा या आरोग्य, रोगी -शुश्रूषा आदि । वे घरेलूसे अधिक नागरिक विषय हो जायेंगे | परस्पर के सहयोग से ही सब काम पूरे होंगे और कोई स्त्री किसी ओर, तो दूसरी दूसरी ओर विशेष मनोयोग दे सकेगी। फिर स्त्रियों में अविवाहित, विधवा, निस्संतति, सेवाव्रती, निश्चिन्त, अथवा गृहस्थिन आदि सभी प्रकारकी स्थितियोंकी स्त्रियाँ होंगीं । वे अलग अलग कम-अधिक इन उन कामोंको निबाहने योग्य क्यों न हो सकेंगीं ?
प्रश्न - जीवनके कार्योंको शायद आप दो भागों में बाँटते हैं । कुछ स्त्रियोंके लिए, कुछ पुरुषोंके लिए । क्या इसका यह अर्थ लिया जा सकता है कि स्त्री-पुरुष के अपने अपने गुण हैं और व्यक्तिरूपसे दोनोंमें कोई गुण साम्य नहीं है ?
उत्तर- मानव तो दोनों हैं, स्त्री भी, पुरुष भी । मानवताके सामान्य गुण दोनोंही में जरूरी हैं | उसके आगे बढ़ने पर स्त्री और पुरुषका कर्त्तव्य-भेद आता है । उस दृष्टिसे उनमें अन्तर भी है ।
I