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प्रस्तुत प्रश्न
जवान परसों अधेड़ हो जाते हैं, इसलिए, सदा नवीन संतति चाहिए जो कि मौत पर जीवन के विजय की घोषणा हो ।
प्रश्न -- संतति उत्पादनके प्रति प्रायः महान् पुरुषोंकी अरुचि होती देखी गई है और संस्कृति विकासके हेतु वैसा होना स्वाभाविक भी है । किन्तु, समाज यदि उनकी संततिको देखना चाहती है, तो क्या उसकी यह माँग अनुचित होगी और उसके पूरी किये जाने की कोई गुंजायश है ?
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उत्तर – जिनको महापुरुष कहा जाय, वे अपने पूरे स्वत्वका ही समाजको दान कर जाते हैं । उससे अधिक भी समाज उनसे कुछ माँग सकती है, यह मेरी समझ में नहीं आता । पुत्र-दान आत्म-दान से बड़ा नहीं है । जो एक पुत्रको अपना बनाता है, वह मानो उसी कारण अन्य बालकों को पराया भी बना देता है । क्या आप चाहते हैं कि सभी इतने संकीर्ण हों ? अर्थात् कोई उतने व्यापक व्यक्तित्वका पुरुष न हो जो अपना आत्मज हुए बिना भी सभी बालकों को अपना मान सके ।
एक और भी बात इसी प्रसंग में याद रखने योग्य है । वह यह कि विचक्षण पुरुषोंकी संतान अधिकांश अयोग्य होती है । ऐसा क्यों होता है, इसका जवाब देने की कोशिश मैं नहीं करना चाहता । अकारण तो कभी कुछ होता नहीं । इसलिए, कौन जाने कि प्रतिभावान् की संतानके हीन होने में कोई कार्य-कारण संगति भी हो। अतएव, इस मोहकी आवश्यकता नहीं है कि प्रत्येक प्रतिभाशाली पुरुषको पिता देखनेका समाज आग्रह रक्खे ।