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प्रस्तुत प्रश्न
प्रश्न - जिस व्यक्ति में किसी परिवारके द्वारा दूसरोंपर गुजारा क़रनेका व्यसन हो गया है और जितना वह कर सकता है उद्यम ( Contribute ) नहीं करता है, तो उसके प्रति परिवारका क्या कर्त्तव्य होगा ?
उत्तर- - उस व्यक्तिको धीमे धीमे समझा-बुझाकर, नहीं तो फिर अनुशासन से, अपनी ज़िम्मेदारियोंको पहचानने के निकट लाना होगा ।
प्रश्न – वह अनुशासन किस प्रकारका हो सकता है, क्या आप बतायेंगे ?
उत्तर- - यह तो वह परिवार ही जाने और समझे ।
प्रश्न – किन्तु, फिर भी मैं जानना चाहता हूँ कि क्या अनुशासनद्वारा उसके लिए दंड अथवा कोई और ऐसी व्यवस्था करेंगे जिससे वह मजबूर हो जाय ?
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उत्तर – मजबूर करने की आवश्यकता है, तभी तो प्रश्न भी उठता है । मेरे ख़्याल में ऐसा उपाय काममें नहीं लाना चाहिए जिससे व्यक्तिकी नैतिक भावनाको उत्तेजन मिलने के बजाय वह उल्टी पस्त हो | जिसको दंड कहा जाता है, वह मनुष्यकी नैतिकताको अक्सर मंद करता है ।
प्रश्न - तो फिर अनुशासन रखनेका क्या दूसरा उपाय हो सकता है, मिसाल के तौरपर आप बतलायेंगे न ?
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उत्तर – मिसाल के तौरपर बहुत कुछ बतलाया जा सकता है, लेकिन यह ध्यान रहे कि वह मिसाल है ।
मानिए कि बालक स्कूल नहीं जा रहा है । चाहा जाता है कि वह स्कूल जाय । तब बालकके मामले में यही पहले विचारणीय बनता है कि उसके स्कूल जानेकी अरुचि कारण क्या हो सकता है ? उस कारणको दूर किया जाय । बालकके मामलेमें अनुशासन ज़रूरी नहीं होगा, क्यों कि परिवारके और लोगों की अच्छी अथवा बुरी सम्मतिका उसपर काफी प्रभाव होता है । वह सहसा अपने संबंधकी अच्छी सम्मतिको खो नहीं सकता । करना सिर्फ इतना होगा कि माँ-बाप लाड़ लड़ाने के अपने अकस्मात् उठनेवाले चावको रोकें और लड़केकी उस आदत के बारेमें अपनी असम्मति पूरी तरह प्रकट हो जाने दें ।