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स्त्री और पुरुष
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प्रश्न-स्त्रीको अबला कहा गया है। क्या उसे ऐसा शारीरिक बलके अभावसे ही कहना उचित है, अथवा आत्म-चलकी कमीपर भी?
उत्तर - कोरी शारीरिक बलकी दृष्टि इस विशेषणमें मुझे मालूम होती है ।
प्रश्न-उनके उस अवलपनका कारण भी उनके ऊपर पुरुषोंकी संरक्षकता ही है, क्या आप ऐसा मानेंगे ?
उत्तर-मान भी लूँ, तो फिर यह प्रश्न उठेगा कि वह संरक्षण बनने में कैसे आया ? इसलिए यह सवाल कि संरक्षण अबलताका कारण हुआ अथवा कि अबलता ही संरक्षणमें कारणीभूत हो गई चकरीला बन जाता है । वैसा चकर पैदा करना उपयोगी नहीं है।
प्रश्न--प्रायः जानवरोंमें, और खास तौरसे खूख्वार जानवरोंमें, देखने में आता है कि मादा नरसे किसी भी तरह कम शारीरिक बल नहीं रखती। किसी किसी जातिमें तो वे अधिक ही जबरदस्त हैं। पर हाँ, फिर भी, उनमें नरका-सा साहस-वेग (yo !1:(s) नहीं है जो स्वभाव चलसे संबंध रखता है। इसका समाधान क्या आपका उपर्युक्त कथन करता है?
उत्तर-मुझे नहीं मालूम कि पशुओंमें किस जातिकी मादा नरसे अधिक प्रबल होती है। फिर भी, जन्तु-जगतमें मादा कई जातियों में नरसे कहीं अधिक बड़ी और शक्तिशालिनी अवश्य होती है। वह अन्तर मेरे खयालमें उत्पादनके निमित्त प्रकृति करती है । आरंभमें मादा ही पाई जाती है, नर तो पीछेसे बनता है । कहीं तो नर बिल्कुल ही अप्रासंगिक है, कहीं वह इतना हीन है कि मादाके लिए केवल दयाका पात्र रहता है । जन्तु-जगतमें ऐसा उत्पादनके हेतुसे ही होता होगा, यह समझना युक्ति-संगत प्रतीत होता है; क्यों कि, प्रकृतिका मुकाबिला करनेकी शक्ति जंतु अति क्षीण होती है। फिर भी, उत्पादन तो प्रकृतिका नियम है । इसीलिए जान पड़ता है कि प्रारंभिक अवस्थामें मादाके प्रति प्रकृतिका पक्षपात है । उत्पादनकी दृष्टिसे मादा ही प्रकृतिरूपा है।
लेकिन सच यह है कि प्रकृतिके असल भेदका किंचित बोध भी हमें नहीं है । यह जो ऊपर कहा है, वैज्ञानिकोंका मंतव्य है । यानी मानव-बुद्धिकी