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१२ - सौन्दर्य
प्रश्न-- आपने पहिले बताया है कि विवाह-संयोगका निर्णय बाह्य आकर्षण से प्रेरित नहीं होना चाहिए । किन्तु, विवाह होनेपर क्या उन्हें शारीरिक सौंदर्यकी परवाह करना पाप होगा ।
उत्तर—नहीं, शारीरिक सौन्दर्यकी परवाह करना न विवाहसे पहिले न विवाह के बाद पाप है | किन्तु, सौन्दर्य स्वास्थ्यसे अलग और क्या है ? अस्वस्थ रहनेका या स्वास्थ्यके बारेमें लापरवाह रहनेका हक़ किसीको नहीं है ।
प्रश्न -- किन्तु, सौंदर्य के लिए आकर्षण आवश्यक है, और आकर्षण ही उसकी कसौटी है । तो क्या सौंदर्यकी रक्षा आकर्षणके लिये की जाय ? यदि की जाय तो क्या यह ऐन्द्रियक विषयकी पुष्टि करना न होगा ?
उत्तर - सौन्दर्यमें आकर्षण आवश्यक है । शारीरिक सौन्दर्य, किन्तु, शरीर की अमुक बनावटके कारण नहीं होता । सौन्दर्यका संबंध आकारसे नहीं है । सौन्दर्य भावात्मक तत्त्व है | इसलिये तात्त्विक दृष्टिसे सौन्दर्य के साथ 'शारीरिक' विशेषण लगाना उपयुक्त नहीं | किसी सुन्दर कन्याको बिजली छुआ दी जाय, तो इससे आकार तो नहीं बिगड़ेगा, केवल अन्दरकी जान चली जायगी । किन्तु, इस प्रकार, क्या फिर उस बे-जान देह को भी सुन्दर कहा जा सकेगा ?
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अतः सौंदर्य एक चैतन्य-भाव है । जो उसे शारीरिक तलपर देखते और ग्रहण करते हैं, उनकी चेतना प्रधानता से शारीरिक तलपर है, ऐसा समझना चाहिए । असल में तो दीखनेवाले सौंदर्य के भीतर से स्थूल दृष्टिसे न दीख सकने योग्य ही कुछ व्यक्त हो रहा है । अर्थात्, रूप भीतरसे गुण है । जो अव्यक्त है उसे गुण कहा, तब उसीके व्यक्त भावको रूप कह दिया । गुण इन्द्रिय ग्राह्य होकर रूप-मय हो जाता है । रूपको गुणकी अपेक्षा में, अर्थात् उसे संपूर्णता में, देखने से दैहिक ममत्व नहीं जागता । रूपको गुण-भाव में देखने की क्षमता न होनेसे सौंदर्य दैहिक और रूपज जँचने लगता है। सौंदर्यका इसमें दोष नहीं है । दोष मानव-बुद्धिका है जो दैहिक विकारसे गँसी रहती है ।