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आकर्षण और स्त्री-पुरुष सम्बन्ध
अवस्था में करें जब दोनों में परस्पर रोष न हो, कोई बाहरी आकर्षण दोनों को अलग न फाड़ रहा हो और दोनों ठंडे मनसे विवेकपूर्वक अपनी स्थितिपर विचार करने योग्य हो । रोषसे प्रेरित होकर गृहस्थीका भंग करना समाज के लिए हितकर नहीं हो सकता और न अन्ततः व्यक्ति के लिए ही हो सकता है ।
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प्रश्न – ऊपर आपने आकर्षणले प्रेरित होकर संबंध विच्छेद करना अकर्त्तव्य कहा है । किन्तु, एक दंपति यदि संस्कारोंकी विषमता के कारण अपने उस संबंध से संतुष्ट नहीं हैं, तो क्या उन्हें अथवा उनमेंसे किसीको भी यह उचित नहीं है कि वह किसी अन्य से संबंध कर ले जो उसके जैसे ही संस्कार रखता हो ?
उत्तर - केवल तृप्तिका अभाव, अथवा कि अरुचि, ऐसा करनेके लिए पर्याप्त कारण नहीं है । जब मानव-विवेक अर्थात् धर्म ही संबंध-विच्छेदको उचित बताये, तभी वह किया जा सकता है । लेकिन, मैंने कहा न कि अगर स्त्री पुरुष परस्पर मिल-बैठकर ठंड जीसे बिना बाह्य तृष्णा और प्रेरणाके संबंध विच्छेद करना विचारें तो जरूर वैसा कर सकते हैं ।
प्रश्न - लेकिन करें तो हानि भी क्या है ? आखिर जब कभी भी सम्बन्ध विच्छेद करना हितकर समझा जायगा, तभी, चाहे कितने भी ठंढे दिलसे विचारा जाय, उसमें विच्छेदके बादकी परिस्थितिके प्रति झुकाव और उसमें किसी न किसी प्रकार आकर्षण होना ज़रूरी है । यदि ऐसा नहीं, तो विच्छेद करनेसे लाभ ?
उत्तर - नहीं, बाह्य आकर्षणके अतिरिक्त भी विवाहकी सामाजिक-परिधिसे बाहर जाने की आवश्यकता के कारण हो सकते हैं। मान लीजिए कि पति क्लीब है, या किसी बीमारी से पुंसत्व-हीन हो गया है अथवा कि स्त्री बंध्या है, अथवा पति या स्त्रीने कोई उत्तम तर मार्ग ( जैसे कि गौतम बुद्धने, मीराबाईने ) ग्रहण करनेका संकल्प कर लिया है, या कि दोनों में से कोई साथी पागल हो गया है, आदि स्थितियो में संबंध विच्छेद नाजायज़ नहीं ठहराया जा सकता । थोड़ी देर के लिए समझिए कि पति स्वयं पुंसत्व-हीन है, किन्तु पत्नीकी गोद वह भरी हुई देखना चाहता है । पत्नी तो स्वयं संततिके लिए