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१० –सन्तति
प्रश्न – विवाहको आप समाजके प्रति कर्त्तव्य ही मानते हैं, ऐसा मैं समझता हूँ। तो फिर क्या संतानोत्पत्ति भी उसी कर्त्तव्यकी राहहीमें है ? यदि है तो कैसे ?
उत्तर- - तात्कालिक कर्त्तव्य, मैंने पहले भी कहा, कि, दो चीज़ों के मेलसे बनता है; एक आदर्श, दूसरे संभव । काम-वासना से छुट्टी बिरले व्यक्तिको मिलती है | विवाह में उस कामवृत्तिके लिए रोक भी है और छूट भी है । आजके मनुष्यको देखते हुए विवाहको एक कर्त्तव्य कहना ही चाहिए । बिरले व्यक्ति पूर्ण ब्रह्मचारी रह सकते हैं । ब्रह्मचर्य आदर्श भले हो, किन्तु वह नियम नहीं हो सकता । वह अपवाद ही है । ब्रह्मचर्यको सामने रखकर विवाहका आदेश है । विवाह में संभोग की छूट है, किन्तु वहाँ संभोग लक्ष्य रूप नहीं है । लक्ष्य तो संभोग - परिमाण या संयम ही है । इसलिए, सब देखते हुए कहा जा सकता है कि संततिका उत्पादन एक सामाजिक ऋण है और एतदर्थ विवाह भी कर्त्तव्य कर्म है ।
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प्रश्न
-संततिका उत्पादन एक सामाजिक ऋण है, तो क्या जो अंत तक ब्रह्मचारी रहकर जीवन बिता देते हैं, उनपर समाजका ऋण रह जाता है ?
उत्तर - जो कोरे ब्रह्मचारी रहते हैं, यानी ब्रह्मचर्यद्वारा जो शक्ति संग्रहीत होती है उसको फिर समाजकी सेवामें नहीं लगा देते, ऐसे लोगों पर समाज - ऋण शेष रह जाता हो, तो मुझे अचरज न होगा । किन्तु, ब्रह्मचर्य का पालन व्यक्तिको सार्वजनिक सेवाके अधिक योग्य बना देता है, यह तो निर्विवाद है । ऐसे लोग समाजको संततिका दान अवश्य नहीं करते, पर अपनेको कुलका कुल ही विश्वके अर्थ होम जाते हैं । इससे बड़ी उऋणता और क्या होगी ? हाँ ब्रह्मचर्य, यानी अविवाहित अवस्था, अपने आपमें कोई कारनामा ( achievement ) नहीं है।
प्रश्न – ब्रह्मचर्यद्वारा संग्रहीत शक्तिको यदि समाजके प्रति वे