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प्रस्तुत प्रश्न
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अपनी योग्यता देकर योग्य बना लो । और सुनो, उससे कवियित्री बनकर बात करोगी, तो कहार कहार ही रहेगा । लेकिन थोड़ी देर के लिए कहारिन बनकर उससे बोलो - चालोगी, तो क्या जाने ऐसे वह कवि ही बनने लग जाय । सेवा बहुत-कुछ संभव बनाती है और प्रेम तो असंभवको संभव बना देता है । सुनो, जो हुआ सो हुआ । उसे मुर्खता कहकर सिर न धुनो। चाहोगी तो उसमेंसे ही सुन्दर फल निकल सकेगा ।
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पर मान लीजिए कि कवियित्री बेहद कवियित्री हैं । तो ऐसी हालत में वे जानें और उनका भाग्य जाने, मैं कुछ नहीं जानता ।
प्रश्न – यदि कवियित्री देखती है कि प्रस्तुत वातावरण उसकी प्रतिभा एवं सांस्कृतिक जीवनके विकासके सर्वथा प्रतिकूल है और साथ ही वह मछुएके लिए भी उपयुक्त संगिनी नहीं है, और यह भी जानती है कि अलग होनेमें किसीकी नाराजगीका सवाल नहीं है, तो क्यों न वह अलग होकर अपने जीवनको समाजके लिए और अधिक उपयोगी बनाये, बजाय इसके कि वह उसे वहीं बर्बाद कर दे ?
उत्तर- -अगर प्रतिभा सच्ची है, तो वह हर किसी स्थितिको अपने लिए सहायक बना लेगी । मैं नहीं मानता कि रचि-गत ऐसा कोई कारण हो सकता है जो एक बार बिवाहमें बँधकर उनके बिछुड़नेको औचित्य दे | अगर किसी कोरी भावुकता में वह विवाह हो गया था, तो उसकी प्रतिक्रिया अनिवार्य है । वैसी हालत में कवियित्री भी जरूर अपने मछुए पतिको छोड़ देगी । नहीं छोड़ेगी, तो त्रस्त रहेगी । लेकिन इसमें मुझसे पूछनेकी क्या बात है ? छोड़ना पड़ ही रहा है, तो किसीके कहने न कहनेका परिणाम ही क्या होगा ? कर्मफल क्या टाले टलता है ?
प्रश्न – क्या कोई समाज-गत कर्त्तव्य पति-पत्नीको एक-दूसरे से अलग होनेके लिए उपयुक्त कारण हो सकता है ? -- भले ही उस हालत में दोनोंकी सहमति न हो ।
उत्तर - हाँ, हो सकता है । बुद्ध घर छोड़कर चले गये, तो यह कहना कठिन है कि यशोधराकी उसमें अनुमति थी । लक्ष्मणने रामका साथ दिया, उर्मिला अयोध्या ही रह गई, तो क्या उर्मिलाकी यही चाह थी ? ये पौराणिक उदाहरण हैं । लेकिन समाजमें भी ऐसे उदाहरण यत्र तत्र मिलेंगे ।