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प्रस्तुत प्रश्न
इतनी विह्वल नहीं है और वह अपने इसी पतिके साथ अपना नेम निबाहनेको तैयार है । पर पतिको अपने कर्त्तव्यकी चिन्ता है । ऐसी स्थितिमें पति समझाबुझाकर अपने पतित्वके अधिकारसे पत्नीको साग्रह मुक्त कर सकता है। ऐसे ही वंध्या स्त्री अपने पतिके कुलका नाम उजागर रहा देखना चाहती है, तो वह पतिको अनुरोध-पूर्वक दूसरे विवाहके लिए कह सकती है। अभिप्राय यह कि जहाँ प्रेरणा सद्भावनाकी है, विषय-सेवनकी नहीं है, वहाँ विच्छेद अनुचित नहीं है । विषय-तृष्णाकी खातिर किये गये तलाकका मुझसे समर्थन न होगा।
प्रश्न-क्या आपके कहनेका मतलब संक्षेपमें मैं यह समझें कि संबंध-विच्छेदके साथ दोनों पार्टियोंकी रजामंदी और एक दूसरेके प्रति सद्भावना हो । यदि ऐसा है, तो क्लीवता, वंध्यापन और संततिकै अभाव आदिहीको विच्छेदका कारण बनाना क्यों जरूरी है ? फिर तो कोई भी कारण ठीक हो सकता है यदि उसके लिए वे दोनों खुशी खुशी तैयार हों। ___ उत्तर-आपके प्रश्नकी भाषामें ‘आदि के साथ 'ही' लगा है। जहाँ 'आदि' लिखा गया, वहाँ अभिप्राय है कि गिनाये गये कारणोंके अलावा भी कारण हो सकते हैं।
फिर भी यहाँ एक बात याद रखने की है। दोनोंका 'खुशी से तैयार होना काफी नहीं है । खुशी शब्द जरा बेढब है। मैं ऐसे पति-पत्नी के जोडेको जानता हूँ, जो दोनों खुश हैं, लेकिन पुरुष अपनेको पति जाहिर नहीं करता
और स्त्री अपनेको विधवा बतलाती है। और इस भाँति खुशी खुशी स्त्रीके तनकी कमाईसे दोनों धन जोड़ते और फिर उस धनके बलपर समाजमें इज्जत बनानेकी कोशिश करते हैं । इसलिए 'खुशी' शब्द मौजूं नहीं है। मैं तो वही शर्त रखना चाहूँगा कि वहाँ बाह्य तृष्णा या प्रेरणाका अभाव हो ।
प्रश्न-बाह्य तृष्णा या प्रेरणासे क्या आपका मतलब इंद्रियगत विषयोंकी वासनासे है ? यदि है, तो क्या संबंध-विच्छेदके लिए किसी इन्द्रियातीत यानी संस्कृतिसे उद्भूत आनन्दकी इच्छा करना काफी कारण हो सकता है ?
उत्तर-हाँ बाह्य प्रेरणासे वैसी ही वासना अभिप्रेत थी। 'इन्द्रियातीत' और 'सांस्कृतिक आनन्द', ये शब्द बड़े मालूम होते हैं । लेकिन,