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व्यक्ति और शासन-यंत्र
___ अब मैं कहूँगा कि इस प्रश्नमें भूल है। हमारा व्यक्तित्व अंगोपागोंसे जुदा नहीं है । उनसे अलग होकर वह है ही नहीं । उन अंगामें फिर तरतमता भी है । कुछ कर्मेंद्रिय हैं, कुछ ज्ञानेन्द्रिय हैं । हमारा अपना-पन हमारे ही कुछ विशिष्ट अंगोपांगोंके साथ अधिक अभिन्न है, यह कहने में कुछ बाधा नहीं है। कहा जा सकता है कि आपके हृदयमें आपका ही व्यक्तित्व अधिक समाहित है, समूची देहमें भी उतना नहीं है।
इसी तरह कोई विशिष्ट व्यक्ति हो सकता है जिसमें राष्ट्र चतना मृतिमान हो गई हो, अथवा कि जो विश्व-चेतनासे परिचालित हो । ऐसी अवस्थामें मानना होगा कि लाखों आदमी एक तरफ़ और वह आदमी अकेला एक तरफ़ होकर भी राष्ट्रका विशेष सच्चा प्रतिनिधि है । ___ एक शब्द है 'बेताज बादशाह' ( Inc )nelking )। उस शब्दमें क्या भाव है ? क्या यह पक्की तौरपर नहीं कहा जा सकता कि बेताज बादशाह ताजवाले राजासे मदा बड़ा होता है ?
क्यों ? -इस 'क्यों में ही आपका उत्तर आ जाता है ।
पुराणोंमें कथन है कि दुर्योधनने कृष्णकी अक्षौहिणी सेनाको लेना पसंद किया, अकेले कृष्णका लेना पसन्द नहीं किया । यह उसके हकमें मूर्खता ही हुई । क्यों कि संख्यामें सचाई नहीं है। ___ इसी भाँति एक व्यक्ति राष्ट्रमे बड़ा हो सकता है, इसको बहुत स्थूल अर्थमें न लेवें । न तो इसे बहुत वैज्ञानिक अर्थमे ही लें। क्यों कि, राष्ट्र सहस्रों मीलों में होता है, और व्यक्ति साढ़े तीन हाथका ही होता है । इसस उस कथनके अभिप्रायको लेना चाहिए और उस दृष्टि से इस कथनमें तनिक भी अतिरंजन नहीं है।
प्रश्न--क्या राष्ट्र अथवा किसी भी संगठनका अपने अंगोंपर नियंत्रण रखना सर्वथा अनुचित और अनावश्यक है ?
उत्तर-सर्वथा आवश्यक है । लेकिन, उसकी आवश्यकता क्यों है, इसका ध्यान रखना चाहिए । वे अंगोपांग अपनेको मुशासित रखना सीखनेकी आवश्यकतामें हैं । वही आवश्यकता पूरी करने के लिए बाह्य संगठन जनमता है।
व्यक्ति हैं जो समाजके अभावमें उच्छृखल ही हो जायेंगे । उनको चारों ओरसे चूँकि समाजका ( -दंडका ) दबाव दबाए है, इसीसे वे कुछ वाजिब तौरपर