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प्रस्तुत प्रश्न
लायगा। वह बात झूठ न हो, पर ऐसे लोगोंको न-कारसेवी कहना चाहिए। शायद निहिलिस्ट ऐसा ही दल था ।
लेकिन हममें समन्वय न हो, पर, समूचे ब्रह्मांडमें भी वह समन्वय नहीं है ऐसा माननेके लिए न गुजायश है, न इजाजत हो सकती है । सब मिलकर कहना होगा कि अब भी इस समूचे महाविश्वमें तो एक-स्वरता ही प्रकट हो रही है। सूरज समय पर उगता, समयपर छिपता है । इसमें तनिक भी व्यतिरेक नहीं हो पाता है। यदि वैसी एकस्वरता मानव-व्यापारामें हमें नहीं दीखती, तो कारण यही मानना चाहिए कि मानव-बुद्धि मर्यादित है और अहंकारके वशमें है। सब मिलकर समन्वय है ही, इस क्षण भी वही है, यह मैं कहना चाहता हूँ। धन (+), और ऋण (-) आपसमें कट-मिलकर बराबर हो जाते हैं न ? वैसे ही यहाँ समझिए। अन्तःशासनमें कुछ ऋण है, तो बाह्य शासन बाहरसे जुड़कर स्थिरताको कायम रखता है। यह साम्य-संतुलन (= Equatory Balance) शाश्वत तत्त्व है । धन और ऋण सदा इस अनुपातमें रहेंगे कि परिणाम स्थिरता हो । धन अंशको, अर्थात् बाहरी शासनको, कम करना है, तो स्पष्टतया भीतरी शासनके परिमाणको बढ़ाना ही उसका उपाय है । इसलिए, अपनी न्यूनता कम करना जगत्की परिपूर्णताको बढ़ाना ही है। 'स्वराज्य'का अर्थ अपने विकारोंपर राज्य पाना है। यह नहीं है तो कैसे कहें कि वह सच्चा स्वराज्य है ?
प्रश्न--व्यक्तिगत रूपसे क्या आप किसी व्यक्तिको घसेके जोरके नीचे अनुचित कार्यसे रोक रखनेका प्रयत्न करेंगे और समझेंग कि वह सुधर जायगा ? क्या स्टेट अपराधी चर्गके लिए एक वैसा ही संगठित सा नहीं है ?
उत्तर-व्यक्तिगत रूपसे मैं पसंद नहीं करूँगा। मैं नहीं मानता कि सकार (स्टेट) जरूरी तौरपर वैसा बँधा हुआ घुसा ही है या कुछ भी वह और नहीं हो सकती।
प्रश्न--जो वात आप व्यक्तिगत रूपसे पसंद नहीं करेंगे, उसे स्टेटके लिए क्यों उचित समझते हैं ? वह भी तो व्यक्तियोंहीका समुदाय है। और स्टेटकी दंड-व्यवस्था अपराधी-समाजके लिए एक रूपमें घुसा ही लगा देनेका डरावा नहीं तो और क्या है ?