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'प्रचय' भी परिमाण का कारण है। इसी से सेर भर लोहे की लम्बाई चौड़ाई और सेर भर रूई की लम्बाई चौड़ाई में अन्तर उपलब्ध होता है । यह अन्तर अवयवों के परिमाण या अवयवों की संख्या से उपपन्न नहीं हो सकते । कथित लोहखण्ड और तुलखण्डों के अवयवों की संख्या और परिमाण समान हैं । अतः उक्त अन्तर की उपपत्ति के लिए यही कल्पना करनी चाहिए कि लोहे के अवयवों के संयोग संघटित है और रूई के अवयवों के संयोग शिथिल ( ढीले ) हैं । अवयवों के इस शिथिल संयोग को ही 'प्रचय' कहते हैं।
पृथकत्व घट पट से पृथक है ( अयमस्मात् पृथक) इस आकार की प्रतीति जिस गुण से हो उसे 'पृथक्त्व' कहते हैं। यह भिन्न द्रव्यों में एक दो या इनसे अधिक द्रव्यों को अवधि मानकर शेष द्रव्यों में रहता है। इस प्रकार यह भेद या अन्योन्याभाव सा ही दीखता है। किन्तु अन्योन्याभाव की प्रतीति का आकार 'घटभिन्नः पटः इत्यादि प्रकार के होते हैं, अतः भेद से पृथकत्व भिन्न है। अर्थात् भेद की प्रतोति के अभिलापक वाक्य में प्रयुक्त प्रतियोगी और अनुयोगी दोनों के लिए प्रथमान्त पद का ही प्रयोग होता है। किन्तु पृथकत्व की प्रतीति के लिए उनमें से अवधिभूत एक अर्थ का पञ्चम्यन्त पद से उपादान किया जाता है।
संयोग असम्बद्ध दो द्रव्यों के परस्पर सम्बन्ध को ही 'संयोग' कहते हैं। यह तीन प्रकार का है । (१) दोनों सम्बन्धियों में से एकमात्र की क्रिया से उत्पन्न । जैसे पहाड़ और पक्षी का संयोग केवल पक्षी की क्रिया से उत्पन्न होता है । (२) दोनों सम्बन्धियों की क्रिया से उत्पन्न । जैसे लड़ते हुए दो पहलवानों का संयोग। (३) तीसरा संयोग संयोग से ही उत्पन्न होता है। जैसे हाथ ओर पुस्तक के संयोग से शरीर
और पुस्तक का संयोग उत्पन्न होता है । वैशेषिकों के सिद्धान्त में अवयव और अवयवी परस्पर अत्यन्त भिन्न हैं। अतः शरीर रूप अवयवी और हाथ पैर प्रभृति अवयव परस्पर भिन्न हैं। अतः जिस प्रकार घट की क्रिया से भूतल और पट का सयोग उत्पन्न नहीं हो सकता, उसी प्रकार हाथ की क्रिया से शरीर और पुस्तक का संयोग भी उत्पन्न नहीं हो सकता। किन्तु शरीर में क्रिया के न रहने पर भी हाथ की क्रिया से पुस्तक के साथ जो हाथ और पुस्तक का संयोग उत्पन्न होता है, उसके बाद शरीर के साथ पुस्तक के संयोग की प्रतीति होती है। प्रतीति का अपलाप नहीं किया जा सकता। अतः शरीर और पुस्तक में भी संयोग मानना पड़ेगा। किन्तु यह संयोग अगर क्रिया से उत्पन्न होगा तो पुस्तक की क्रिया या शरीर की क्रिया या फिर उन्हीं दोनों की क्रिया से उत्पन्न होगा, किन्तु न शरीर में और न पुस्तक में ही क्रिया है । अतः प्रकृत में शरीर और पुस्तक के संयोग का कारण क्रिया को नहीं माना जा सकता। किन्तु असमवायिकारण तो क्रिया या गुण इन दोनों में से ही कोई होगा। प्रकृत में क्रिया
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