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__ प्राकृत साहित्य का इतिहास ने इस पर दीपिका लिखी है। हर्मन जैकोबी ने सेक्रेड बुक्स ऑव द ईस्ट के २२वें भाग में इसका अंग्रेजी अनुवाद किया है और इसकी खोजपूर्ण प्रस्तावना लिखी है। ___ शस्त्रपरिज्ञा नाम के प्रथम अध्ययन में पृथ्वीकाय आदि जीवों की हिंसा का निषेध है । लोकविजय अध्ययन में अप्रमाद, अज्ञानी का स्वरूप, धनसंग्रह का परिणाम, आशा का त्याग, पापकर्म का निषेध आदि का प्रतिपादन है। मृत्यु से हर कोई डरता है, इस सम्बन्ध में उक्ति है :
नत्थि कालस्स णागमो । सव्वे पाणा पियाउया, सुहसाया, दुक्खपडिकूला, अप्पियवहा, पियजीविणो जीविउकामा । सव्वेसिं जीवियं पियं।
-मृत्यु का आना निश्चित है | सब प्राणियों को अपनाअपना जीवन प्रिय है, सभी सुख चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता, मरण सभी को अप्रिय है, सभी जीना चाहते हैं। प्रत्येक प्राणी जीवन की इच्छा रखता है, सबको जीवित रहना अच्छा लगता है।
शीतोष्णीय अध्ययन में विरक्त मुनि का स्वरूप, सम्यकदर्शी का लक्षण और कषाय-त्याग आदि का प्रतिपादन है। मुनि और अमुनि के सम्बन्ध में कहा है :
सुत्ता अमुणी, सया मुणिणो जागरंति ।' अर्थात् अमुनि सोते हैं और मुनि सदा जागते हैं।
१. मिलाइये थेरगाथा ( १९३) के साथ
न ताव. सुपितं होति रत्तिनक्खत्तमालिनी ।
पटिरजग्गितुमेवेसा रत्ति होति विजानता ॥ -नक्षत्रों से भरी यह रात सोने के लिये नहीं । ज्ञानी के लिये यह रात जागकर ध्यान करने योग्य है।
इतिवृत्तक, जागरियमुत्त (४७) और भगवद्गीता (२-६९) भी देखिये।