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प्राकृत साहित्य का इतिहास भाषा का यह प्राचीनतम साहित्य अत्यंत उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है।
आगमों का काल महावीर ने अपने गणधरों को आगम-सिद्धांत का उपदेश दिया, अतएव आगमों के कुछ अंश को महावीरकालीन मानना होगा| अवश्य ही यह कहना कठिन है कि आगम का कौन-सा अंश उनका साक्षात् उपदेश है और कौन सा नहीं। बहुत-कुछ तो मौलिक आधारों को सामने रखकर अथवा देश-काल की परिस्थिति को देखते हुए बाद में निर्मित किया गया होगा । आगमों का कोई आलोचनात्मक संस्करण न होने के कारण यह कठिनाई और बढ़ जाती है । वस्तुतः आगमों का समय निर्धारित करने के लिये प्रत्येक आगम में प्रतिपादित विषय और उसकी वर्णन-शैली आदि का तुलनात्मक अध्ययन करना आवश्यक है ।
आगमों का अंतिम संकलन ईसवी सन् की पाँचवीं शताब्दी में निर्धारित हुआ, अतएव इनका अंतिम समय यही स्वीकार करना होगा | इस साहित्य में सामान्यतया अंग, मूलसूत्र और छेदसूत्र विषय और भाषा आदि की दृष्टि से प्राचीन मालूम होते हैं, तत्पश्चात् उपांग, प्रकीर्णक, तथा नंदी और अनुयोगद्वार का नामोल्लेख किया जा सकता है। ईसवी सन की १७वीं शताब्दी तक इन ग्रन्थों पर . अनेकानेक टीका-टिप्पणियाँ लिखी जाती रहीं।
द्वादशांग जैन शास्त्रों में सबसे प्राचीन ग्रन्थ अंग हैं। इन्हें वेद भी कहा गया है' (ब्राह्मणों के प्राचीनतम शास्त्र भी वेद कहे जाते हैं)। ये अंग वारह हैं, इसलिये इन्हें द्वादशांग कहा जाता है । द्वादशांग का दूसरा नाम गणिपिटक है (बौद्धों के प्राचीनशास्त्र
१. दुवालसंगं वा प्रवचनं वेदो ( आचारांगचूर्णी, ५, १८५)।