________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आकिञ्चञ्ञायतनसहगत
विमोक्खो, नेवसञ्ञनासञ्ञायतनसमापत्ति विमोक्खो, पटि. म. 221; लाभी त्रि. आकिंचन्य आलम्बन वाले तृतीय अरूप ध्यान की प्राप्ति का लाभ पाने वाला भी पु० प्र० वि. ए. व. आकिञ्चञ्ञायतनसमापत्तिलाभी आचरियांति, आह, जा० अट्ट. 1.388-89.
आकिञ्चञ्ञायतनसहगत
स.
त्रि., तत्पु. [ आकिञ्चन्यायतनसहगत], आकिंचन्य के आयतन या आधार से युक्त, आकिंचन्य के आलम्बन वाला (जवनसंज्ञा एवं आवज्जनचित्त) ता पु. प्र. वि. ब. व. आकिञ्चज्ञायतनसहगता सञ्ञामनसिकारा समुदाचरन्ति
"
-
स.
पटि० म० 32. आकिञ्चज्ञायतनसुखुमसच्चसज्ञा स्त्री० तत्पु० स.. अकिंचनता के कर्मस्थान में अन्तर्निहित सूक्ष्म सत्य का ज्ञान आकिञ्चञ्ञायतनसुखुमसच्चसज्ञा तस्मिं समये होति दी. नि. 1.164. आकिञ्चज्ञायतनाधिमुत्त त्रि.. तत्पु. [आकिञ्चन्यायतनाधिमुक्त] अकिंचन-भाव के ध्यानालम्बन या ध्यान की ओर पूरी तरह से स्वयं को लगाया हुआ, आकिंचन्य के आयतन की प्राप्ति हेतु समर्पित तो पु.. प्र. वि., ए. व. इधेकच्चो पुरिसपुग्गलो आकिञ्चज्ञयतनाधिमुत्तो अस्स. आकिञ्चञ्ञायतनाधिमुत्तस्स खो, सुनक्खत्त, पुरिसपुग्गलस्स तप्पतिरूपी चेव कथा सण्ठाति, म. नि. 3.40. आकिञ्चञ्ञायतनूप त्रि.. [बौ. सं. आकिञ्चन्यायतनोपग], तृतीय अरूप ध्यान की अवस्था में पहुंचा हुआ, अनन्तविज्ञान के आलम्बन का अतिक्रमण कर कुछ भी नहीं है' अथवा शून्य हैं की अनुपश्यना करने वाला - गो. पु. प्र. गो वि., ए. व. अञ्ञो अत्ता सब्बसो विञ्ञाणञ्चायतनं समतिक्कम्म 'नत्थि किञ्ची' ति आकिञ्चञ्ञायतनूपगो, दी. नि. 1.30 गाव. व अत्यावुसरे आकिञ्चञ्ञयतनूपणा देवा इदं सज्जन अग्गं. अ. नि. 1 ( 2 ). 187 गं नपुं. प्र. वि., ए. व. यं तंसंवत्तनिकं विञ्ञाणं अस्स आकिञ्चञ्ञायतनूपगं म. नि. 3.47. आकिञ्चञ्ञायतनूपपत्ति स्त्री, तत्पु० स० [बौ० सं० आकिञ्चन्यायतनोपपत्ति] आकिंचन्य के आयतन या आलम्बन बनाने वाले तृतीय अरूप-ध्यान के विपाक के प्रभाव से अरूपी ब्रह्मलोक में उत्पत्ति या जन्म या च. वि. ए. व. नाये धम्मो निविदाय... संवत्तति यावदेव आकिञ्चञ्ञायतनुपपत्तियाति म. नि. 1.224 यावदेव
-
--
www.kobatirth.org
-
www
18
-
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आकिञ्चञ्ञायतनूपपत्तियाति याव सट्टिकप्पसहस्सायुपरिमाणे आकिञ्चञ्ञायतनभवे उपपत्ति, तावदेव सवंत्तति, न ततो उद्ध, म. नि. अट्ठ (मू०.प.) 1(2).75. आकिञ्चञ्ञाभिनिवेस त्रि, ब० स० [ बौ. सं. आकिञ्चन्याभिनिवेश] अकिंचनभाव की ओर सुदृढ झुकाव या प्रवृत्ति रखने वाला सा पु. प्र. वि. ब. व. - आकिञ्चज्ञाभिनिवेसा, अ. नि. अड्ड. 3.122. आकिञ्चञ्ञासमापत्तिक त्रि. ब. स., आकिंचन्य ध्यान की प्राप्ति-स्वरूप उदित होने वाली, चतुर्थ अरूप ध्यान की अनेक हानियों (आदीनवों) में एक का पु. प्र. वि., ए. आकिञ्चञसमापत्तिका ते धम्मा नुसमापत्तिका एतिस्सा च भूमियं सातानं बालपुथुज्जनानं अनेकविधानि दिद्विगतानि उप्पज्जन्ति, पेटको. 266.
व.
For Private and Personal Use Only
आकिण्ण
आकिष्ण त्रि. आ+किर का भू. क. कृ. [आकीर्ण]. शा. अ. 1. अत्यधिक भरा हुआ, खचाखच भरा हुआ, प्रचुर, परिपूर्ण, समृद्ध, संकुल, 2. बिखरा हुआ, फैला हुआ, विपुल, छितराया हुआ, ला. अ. संभ्रमग्रस्त, अव्यवस्थित, शिथिल, अपवित्र भीड-भाड़ के साथ- संकिण्णाकिण्ण सहुला, अभि. प. 720 - णं नपुं. प्र. वि. ए. व. - विपुलम्पि हि 'आकिण्णन्ति दुच्चति सु. नि. अह. 2.101 एणेय्यपसदाकिण्णन्ति एणेव्यमिगेहि च पसदमिगेहि च आकिष्ण जा. अड. 7.309 ण्णा पु. प्र. वि. ब. व. आकिण्णाति परिपुण्णा, जा. अड. 5.264 - ण्णं स्त्री. द्वि. वि., ए. व. आकिण्णं संकिलिडं वाचं न भणेय्य, म. नि. अ. (उप. प.) 3.202: ण्णानि नपुं. प्र. वि., ब. व. आकिण्णानीति पक्खित्तानि, अ. नि. अट्ठ. 2.99 - ण्णो पु०, प्र. वि., ए. व. गामन्ते विहरति आकिण्णो भिक्खुहि.... स. नि. 2 ( 2 ) 40: भगवा एतरहि आकिष्णो विहरति... विहरामि देवपुतेहि अ. नि. 1 ( 1 ) 314; आकिष्णो दुक्खं न फासु विहरति उदा. 114नपुं सप्त वि., ए. व. 'वने वाळमिगाकिण्णे, कच्चि हिंसा न विज्जती' ति, जा० अट्ट 5.315; एणेय्यपसदाकिण्णं, नागसंसेवितं वनं, जा. अट्ठ. 7.308; कम्मन्त त्रि. ब. स० [आकीर्णकर्मान्त], अपरिशुद्ध कर्म करने वाला, दारुण कर्म करने वाला न्तो पु. प्र. वि. ए. व. - एवं आकिण्णकम्मन्तो, कस्मा एसो न वुच्चतीति, स. नि. 1 (1). 237: आकिष्णकम्मन्तोति एवं अपरिसुद्धकम्मन्तो. स. नि. अड्ड. 1.262; तत्थ आकिष्णकम्मन्तोति कक्खलकम्मन्तो दारुणकम्मन्तो जा. अड्ड. 3.270 - जनमनुस्स त्रि..
-
-