Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 198
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आरभियति 171 आरम्भ or. प्र. पु., ए. व. - तत्थ तत्थेव राजहि विहारे आरभापयि. म वं. 5.80; - त्वा पू. का. कृ. - कम्मानि आरभाषेत्वा लेणानि अट्ठसहियो, म. वं. 16.12; आरभाषेत्वा ति द्वारद्वपनादीनि कम्मानि पट्टपेत्वा, म. व. टी. 330(ना.). आरमियति आ + रभ के कर्म. वा., वर्त, प्र. पु., ए. व., शा. अ., दृढ़ता के साथ पकड़ लिया जाता है, काबू में । कर लिया जाता है, ला. अ., मार दिया जाता है, हत्या कर दिया जाता है - मानो वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. - पाणो आरभियमानो दुक्खं दोमनस्सं पटिसंवेदेति, म. नि. 2.37-8; आरभियमानोति मारियमानो, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.37. आरमन/आरमण नपु., आ + रम से व्यु., क्रि. ना. [आरमण], 1. आमोद प्रमोद, मौज-मस्ती, अभिरति - नं प्र. वि., ए. व. - तत्थ आरमनं आरामो, अभिरतीति अत्थो.. दी. नि. अट्ठ. 3.182; 2. विरति, बिलगाव, त्याग, थम जाना - णं प्र. वि., ए. व. - आरतीति आरमणं, खु. पा. अट्ठ. 114. आरमति आ + रम का वर्त, प्र. पु., ए. व. [आरमते], 1. आनन्द प्राप्त करता है, आमोद-प्रमोद से भरपूर हो जाता है, प्रसन्न होता है, सन्तुष्ट होता है - न्ति ब. व. - आरमन्ति एत्थाति आरामो, अ. नि. अट्ट, 2.330; आरमन्तीति रति विन्दन्ति कीळन्ति लळन्ति, अ. नि. टी. 2.303; एतेहि भवेहि आरमन्ति अभिनन्दन्तीति भवारामा, इतिवु. अट्ठ. 155; - मितब्ब त्रि., सं. कृ. - तो प. वि., ए. व. - सो आरमितब्बतो आरामो एतस्साति अब्यापज्झारामो, इतिवु. अट्ठ. 130; 2. छोड़ देता है, बिलग हो जाता है, हट जाता है. विरत हो जाता है - न्ति वर्त, प्र. पु., ब. व. - आरमन्ति विरमन्ति पटिविरमन्ति, महानि. 248; - मेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - कुक्कुच्चा आरमेय्य, महानि. 277. आरम्भ पु., [आरम्भ]. शा. अ., प्रारम्भ, कर्म का प्रारम्भ, शुरुआत – म्भा प्र. वि., ब. व. - आरम्भाति कम्मानं पठमारम्भा, महानि. अट्ठ. 356; - म्भ द्वि. वि., ए. व. - अकारम्भं च भिक्खूनं भोगगामे च दापयि, चू.वं. 54.40; - तो प. वि., ए. व. - निसिन्नानं वो आरम्भतो पट्ठाय याव ममागमनं, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.162; - स्स ष. वि., ए. व. - आरम्भस्स च अवसानस्स च वेमज्झट्टानं, पाचि. अट्ठ. 67; ला. अ., आदिकर्म, कार्य, व्यवसाय, कृ त्य, प्रारम्भिक प्रयास, प्रयत्न, वीर्य, उत्साह, हिंसा, पापकर्म, विनय-नियमों के उलंघन से जनित अपराध या आपत्ति - अयहि आरम्भसद्दो कम्मे आपत्तियं किरियायं वीरिये हिंसायं विकोपनेति अनेकेसु अत्थेसु आगतो, महानि. अट्ठ. 331; क. आदिकर्म, प्रारम्भिक कर्म, प्रयास का प्रारम्भिक चरण, प्रबल वीर्य अथवा पराक्रम - म्मो प्र. वि., ए. व. - ... यदा बोधिसत्तो दुक्करकारिक अकासि, नेतादिसो अञत्र आरम्भो अहोसि निक्कमो..., मि. प. 230; ... चेतसिको, आरम्भो चेतना कम्म कायिका वाचसिका, पेटको. 189; - म्भं द्वि. वि., ए. व. - भगवा पदं सोधेति, नो च आरम्भ, नेत्ति 60; - म्भेन तृ. वि., ए. व. - येनारम्भेन इदं सुत्तं भासति सो आरम्भो नियुत्तो, पेटको. 298; - स्स ष. वि., ए. व. -- अत्थिक्खाताव इमस्स आरम्भस्स अनभासितं, पेटको. 238; ख. वीर्य, पराक्रम, उत्साह - म्भो प्र. वि., ए. व. - पब्बजितुं आरम्भो उस्साहो, उदा. अट्ठ. 252; - म्भा ब. व. - वियारम्भाति विविधा पुआभिसङ्घारादिका आरम्भा, महानि. अट्ठ. 355; निलु धम्मूपसंहिता, सीघं गच्छन्तु आरम्भा, परि. अट्ठ. 267; ग. आपत्ति, हिंसा, वध, मारकाट, पापकर्म – म्भा प. वि., ए. व. - बीजगामभूतगामसमारम्भा पटिविरतो होति, दी. नि. 1.57; - म्भानं ष. वि., ब. व. - आरम्भानं निरोधेन, नत्थि, दुक्खस्स सम्भवो, सु. नि. 749; स. उ. प. के रूप में अनाधिकारवचना., अना., उपा., कम्मट्ठाना., गन्था०, आया., थिरा., थूपा., निग्गमना., निरा., पकरणा., पच्चया., पठमा., पुच्छा., पुब्बा., भावना., मरणा., महा., युद्धा., वचना., विगता., विपस्सना, विरिया. संवण्णना., सज्झाया., समा.. सम्मसना, सेसा. के अन्त., द्रष्ट; स. पू. प. के रूप में, - गहण नपुं., तत्पु. स., 'आरम्भ' शब्द का प्रयोग – णं प्र. वि., ए. व. - आरम्भमत्तं एवेत्थ न अत्थसिद्धी ति दस्सनत्थं आरम्भगहणं सद्द. 3.919; - ज त्रि., कर्मों से उत्पन्न, पापकर्मों के कारण उत्पन्न, विनय-शिक्षापदों के पालन न करने के फलस्वरूप उत्पन्न - जा पु., प्र. वि., ब. व. - आयस्मतो खो आरम्भजा आसवा संविज्जन्ति, अ. नि. 2(1).157; आरम्भजाति आपत्तिवीतिक्कमसम्भवा, अ. नि. अट्ठ. 3.52; - जे द्वि. वि., ब. व. - आरम्भजे आसवे पहायाति, अ. नि. अट्ठ. 3.52; - 8 पु., तत्पु. स., “आरम्भ” (उत्साह) का अर्थ या तात्पर्य -तुन तृ. वि., ए. व. - आरम्भट्ठन वीरियं, नेत्ति. 45; - त्त नपुं., भाव., प्रारम्भ होने की अवस्था-त्ता प. वि., ए. व. - कतारम्भत्ता नानप्पकारेन सब्बं, सद्द. 1.144; -त्थ पु., आरम्भ अथवा प्रबल उत्साह का अर्थ- त्थो For Private and Personal Use Only

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