Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
इस्सानिद्देस
367
इस्सास
तस्स कामरसं अत्वा, इस्साधम्मो अजायथ, जा. अट्ठ. 4. 427. इस्सानिद्देस पु., ईर्ष्या की व्याख्या - से सप्त. वि., ए. व. -इस्सानिद्देसे या परलाभसक्कारगरुकारमाननवन्दनपूजनासु
इस्साति, ध. स. अट्ठ. 398. इस्सापकत त्रि., 1. स्वभाव से ही ईर्ष्यालु, ईर्ष्याभरी प्रकृति वाला, 2. ईर्ष्या से अभिभूत - ता' स्त्री., प्र. वि., ए. व. - सा इस्सापकता सपत्तिं अङ्गारकटाहेन ओकिरि... पे. . .., पारा. 143; स. नि. 1(2).236; - ता. पु., प्र. वि., ब. व. - इस्सापकताति इस्साय अपकता: अभिभूताति अत्थो, पाचि. अट्ठ. 199; - तो पु., प्र. वि., ए. व. - सो चन्दिमसूरिये विरोचमाने दिस्वा इस्सापकतो तेसंगमनवीथिं ओतरित्वा मुखं विवरित्वा तिट्ठति, स.नि. अट्ठ. 1.97-983; इस्सापकतो मारो पापिमा पञ्चसालके ब्राह्मणगहपतिके
अन्वाविसि, मि. प. 154. इस्सापकतिइत्थिवत्थु नपुं., ध. प. अट्ठ. के एक कथानक
का शीर्षक, ध. प. अट्ठ. 2.277. इस्सापरियुट्ठान नपुं.. तत्पु. स. [ईर्ष्यापर्युत्थान], ईर्ष्या का उभाड़, ईर्ष्या का दृढ़ता से ऊपर उठना - नं प्र. वि., ए. व. - इस्सापरियट्ठानं खो पन तथागतप्पवेदिते धम्मविनये
परिहानमेतं, अ. नि. 3(2).131. इस्सापरियुट्ठित त्रि., तत्पु. स. [ईर्ष्यापर्युत्थित], ईर्ष्या से पूरी तरह से ग्रस्त, ईर्ष्या से भरा हुआ - तेन नपुं.. त. वि., ए. व. - मज्झन्हिकसमयं इस्सापरियहितेन चेतसा अगारं अज्झावसति, स. नि. 2(2).234; इस्सापरियहितेन
चेतसा बहुलं विहरति, अ. नि. 3(2).131. इस्सापिसाच पु.. [ईर्ष्यापिशाच], ईर्ष्या के रूप में पिशाच
या प्रेत, डाह का प्रेत - चो प्र. वि., ए. व. - इस्सापिसाचो विहतो अस्सासो परमो कतो, सद्धम्मो. 313. इस्साभिभूत त्रि., तत्पु. स. [ईर्ष्याभिभूत], ईर्ष्या से बुरी तरह से ग्रस्त, डाह से पीड़ित - तो पु., प्र. वि., ए. व.
- न इस्सुकी होति न इस्साभिभूतो, परि. 365. इस्सामच्छरिय नपुं, द्व. स. [ईर्ष्यामात्सर्य], ईा एवं
आत्मगुण निगूहन की मनोवृत्ति, ईर्ष्या एवं स्वार्थमयी मनोदशा - यं प्र. वि., ए. व. - “इस्सामच्छरियं पन, मारिस, किनिदानं किंसमुदयं किंजातिकं किंपभवं, दी. नि. 2.204;
इति सो इस्सामच्छरियं कुलेसु नुप्पादेता होति.... दी. नि. 3.34. इस्सामच्छरियफल नपुं, तत्पू. स. [ईामात्सर्यफल], ईर्ष्या करने एवं स्वार्थपरता का फल, ईर्ष्या एवं मात्सर्य का
परिणाम - लं द्वि. वि., ए. व. - तिरोकुट्टादीसु ठिते इस्सामच्छरियफलं अनुभवन्ते ..., पे. व. अट्ठ. 21. इस्सामनक त्रि., ब. स., ईर्ष्या-ग्रस्त मन वाला, ईर्ष्यालु मन
से युक्त - को पु., प्र. वि., ए. व. - एकच्चो इत्थी वा पुरिसो वा इस्सामनको होति, म. नि. 3.252; नरोति
एत्तकेनेव कारणेन परलाभादीसु इस्सामनको पञ्चविधेन ....... ध. प. अट्ठ. 2.224; - निका स्त्री., ईर्ष्यालु नारी, ईर्ष्या-ग्रस्त मन वाली स्त्री - का प्र. वि., ए. व. -
इस्सामनिका खो पन होति, अ. नि. 1(2).233. इस्सामल नपुं., तत्पु. स. [ईर्ष्यामल], ईर्ष्या की अपवित्रता, ईर्ष्या का मैल -- लं प्र. वि., ए. व. - इस्सामलञ्चस्स अप्पहीनं होति, अ. नि. 1(1).128; इस्सुकी च होति, इस्सामलञ्चस्स अप्पहीनं होति, तदे; स. प. के अन्त. -
इस्सामलमच्छरमलेसुपि एसेव नयो, अ. नि. अट्ठ. 2.75. इस्सामान नपुं॰, द्व. स. [ईर्ष्यामान], ईर्ष्या एवं अहंकार - नेन तृ. वि., ए. व. - न तावाहं पणिपति, इस्सामानेन
वञ्चितो, थेरगा. 375. इस्सायना स्त्री., इस्सा के ना. धा. से व्यु., ईर्ष्यालुता, डाह
की मनोदशा, ईर्ष्या भरी मानसिक स्थिति - ना प्र. वि., ए. व. - परलाभसक्कारगरुकारमाननवन्दनपूजनासु इस्सा इस्सायना इस्सायितत्तं उसूया उसूयना उसूयितत्तं इदं वुच्चति इस्सा, ध. स. 1126; विभ. 412. इस्सायितत्त नपुं, इस्सा के ना. धा. के भू. क. कृ.
इस्सायित का भाव. [ईर्ष्यायितत्त्व], उपरिवत् - तं प्र. वि., ए. व. - ... इस्सा इस्सायना इस्सायितत्तं उसूया उसूयना उसूयितत्तं - इदं वुच्चति इस्सा, ध. स. 11263B विभ. 413; महानि. 38. इस्सायितभाव पु., ईर्ष्याभाव - वो प्र. वि., ए. व. -
इस्सायितभावो इस्सायितत्तं, ध. स. अट्ठ. 398. इस्सालुक त्रि., इस्सालु + क के योग से व्यु. [ईर्ष्यालु, बौ.
सं., ईर्ष्यालुक], ईर्ष्यालु, अत्यधिक ईर्ष्यावृत्ति से ग्रस्त मन वाला - का पु., प्र. वि., ब. व. - इस्सालका मच्छरिनो
ते पेतेसूपजायरे, सद्धम्मो. 97. इस्सावतिण्ण त्रि., तत्पु. स. [ईर्ष्यावतीर्ण], ईर्ष्यालु, ईर्ष्याग्रस्त - णा स्त्री., प्र. वि., ब. व. - सचे तुवं विपुले लद्धभोगे, इस्सावतिण्णा मरणं उपेसि, जा. अट्ठ. 5.92. इस्सास पु.. 1. धनुष - सो प्र. वि., ए. व. - इस्सासो धनु कोदण्डं, चापो नित्थी सरासनं, अभि. प. 3883; चापेत्विस्सासमसुनो, इस्सासो खेपकम्हि च, अभि. प. 922;
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402