Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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इस्सासंयोजन
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2. त्रि., धनुर्धरों का आचार्य, धनुष धारण करने वाला - इस्सासाचरिय प., तत्प. स. [इष्वासाचार्य], धनर्विद्या का सो पु., प्र. वि., ए. व. - तेन खो पन समयेन आयस्मा आचार्य, धनुर्विद्या का शिक्षक - यानं ष. वि., ब. व. - उदायी इस्सासो होति, पाचि. 167; सप्पाणकवग्गस्स धनुसत्तिसुलादीति एत्थ इस्सासाचरियानं गावीस कतं पठमसिक्खापदे- इस्सासो होतीति गिहिकाले धनग्गहाचरियो धनुलक्खणं, अ. नि. टी. 3.340. होति, पाचि. अट्ठ. 120; धनुग्गहोति इस्सासो, अ. नि. अट्ठ. इस्सासी पु., [इष्वासिन, धनुर्धारी, धनुर्ग्रह, धनुष को धारण 3.279; इस्सासो वा इस्सासन्तेवासी वा तिणपुरिसरूपके वा। करने वाला या उसके प्रयोग में कुशल योद्धा - नो पु., मत्तिकापुजे वा योग्गं करित्वा, अ. नि. 3(1).230; तन्हि प्र. वि., ब. व. - इस्सासिनो कतहत्थापि वीरा, दूरेपाती इस्सासो तेज करोति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.243; इस्सासो अक्खणवेधिनोपि, जा. अट्ठ. 4.447; इस्सासिनोति इस्सासा वा इस्सासन्तेवासी वा बहुके दिवसे .... मि. प. 218; - सा धनुग्गहा, जा. अट्ठ. 4.450. ब. व. - इस्सासिनोति इस्सासा धनुग्गहा, जा. अट्ठ. 4. इस्सित त्रि., [ईयित], क. दूसरों द्वारा की गई ईर्ष्या का 450; - से द्वि. वि., ब. व. - दुवे तीणि सहस्सानि विषय, ख. ईर्ष्या से भरा हुआ - ता स्त्री., प्र. वि., ए. व. इस्सासेक्खणवेधिनो, चू, वं. 72.245; स. उ. प. के रूप में, - "सा इस्सिता दुक्खिता चस्मि लुद्द, उद्धञ्च सुस्सामि महि.-सा पु., प्र. वि., ब. व., महान् धनुर्धर, महान् शूरवीर अनुस्सरन्ती, जा. अट्ठ. 5.39. - 'उग्गपुत्ता महिस्सासा, सिक्खिता दळहधम्मिनो, थेरगा. इस्सुकिता स्त्री., इस्सुकी का भाव. [ई[कता], ईर्ष्यालुता . 1219; ते चिन्तयिंसु-मयं सुसिक्खिता कतहत्था कतूपासना - य तृ. वि., ए. व. - इस्सुकिताय परसम्पत्तिं न सहति, महिस्सासा, ध, प. अट्ठ. 1.201-202.
अ. नि. अट्ठ. 2.314. इस्सासंयोजन नपुं., तत्पु. स. [ईर्ष्यासंयोजन]. ईर्ष्या का इस्सुकी त्रि., [सं. ईग्रंक, बौ. सं., ईर्षक], ईर्ष्याल, ईर्ष्या बन्धन, ईर्ष्या की बेड़ी या शृंखला - नं प्र. वि., ए. व. - से पीड़ित - की पु., प्र. वि., ए. व. - तपस्सी मक्खी कतमानि सत्त ? अनुनयसंयोजनं ... इस्सासंयोजनं. होति पळासी ... पे.... इस्सुकी होति मच्छरी, दी. नि. मच्छरियसंयोजनं, अ. नि. 2(2).160; कत्तमानि दस 3.32; यम्पावुसो, भिक्खु अनिस्सुकी होति अमच्छरी, म. नि. संयोजनानि ? कामरागसंयोजनं, ... इस्सासंयोजनं ... 1.136; इस्सुकीति परस्स सक्कारादीनि इस्सायनलक्खणाय दससंयोजनानि, पटि. म. अट्ठ. 2.29; इस्सा इस्सायना. इस्साय समन्नागतो, अ. नि. अट्ठ. 3.110; मक्खी थम्भी .. इदं वुच्चति इस्सासंयोजन, ध. स. 1126; - नेन तृ. पळासी च, इस्सुकी मच्छरी सठो, अ. नि. 3(1).19; ध. प. वि., ए. व. - अविज्जासंयोजन इस्सासंयोजनेन 262; - किस्स पु., ष. वि., ए. व. - इस्सुकिस्स संयोजनञ्चेव संयोजनसम्पयुत्तञ्च, ध. स. 1136; "अहो परिसपग्गलस्स अनिस्सकिता होति परिक्कमनाय, म. नि. 1.56. वत एतं रूपारम्मणं अञ न लभेय्यु न्ति उसूयतो इह अ., स्थानबोधक निपा., क्रि. वि. [इह], यहां, इस स्थान
इस्सासंयोजनं उप्पज्जति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).298. पर, इस सन्दर्भ में, इस विषय में - इहेधात्र तु एत्थात्थ, इस्सासन्तेवासी पु., तत्पु. स. [इष्वासान्तेवासिन्], कुशल अथ सब्बत्र सब्बधि, अभि. प. 1161; इत्थं इदानि इह इतो धनुर्धर आचार्य का शिष्य या सहायक - सी प्र. वि., ए. इध, सद्द. 3.676; इह इध-इमस्मि वा, सद्द. 3.682; इध, व. - इस्सासो वा इस्सासन्तेवासी वा तिणपुरिसरूपके वा भन्ते नागसेन, आचरियेन अन्तेवासिम्हि सततं समितं आरक्खा मत्तिकापुजे वा योग्गं करित्वा, अ. नि. 3(1).230; इस्सासो उपट्टपेतब्बा, मि. प. 105. वा इस्सासन्तेवासी वा बहुके दिवसे सङ्गामत्थाय ..., मि. प. इहलोकिक त्रि०, इस लोक से सम्बन्धित, प्रत्यक्ष दिखलाई 218.
देने वाला - कं नपुं, प्र. वि., ए. व. - सुचरित मथो इस्साससिप्प नपुं., तत्पु. स. [इष्वासशिल्प], धनुर्विद्या का दिठ्ठधम्मिकं चेहलोकिक, अभि. प. 85. शिल्प, धनुर्वेध-शिल्प, धनुष-वाण चलाने में दक्षता सिखलाने वाला शिल्प - प्पं प्र. वि., ए. व. - धनुसिप्पन्ति इस्साससिप्प यो धनुब्बेधोति वुच्चति, उदा. अट्ठ. 165; - प्पे सप्त. वि., ए. व. - ... तेस इस्साससिप्पे असदिसो ३६
से ई देवनागरी लिपि में पालि वर्णमाला का चौथा अक्षर, इवर्ण हुत्वा बाराणसिं पच्चागमि, जा. अट्ठ. 2.72.
का दीीकृत रूप, ईकाररूप में भी व्याकरण-ग्रन्थों में
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