Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 336
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इतिसच्चपरामास 309 इतिहास सुत्तों में प्रत्येक गद्यबद्ध सुत्त का आरम्भ 'वुत्तं हेतं भगवता' इतिहपरिवज्जित त्रि., तत्पु. स., शा. अ., इतिहास से (भगवान द्वारा यह कहा गया) शब्दों से होता है तथा पद्यांश रहित, अनैतिहासिक, ला. अ., पारम्परिक शिक्षा में का प्रारम्भ "तत्थेतं इति वच्चति' से होता है - कं प्र. वि.. अप्राप्त, स्वयं विचिन्तित, आत्मप्रत्यक्ष का विषय - तं प्र. ए. व. - "वुतज्हेतं भगवता ति आदिनयप्पवत्ता वि., ए. व. - अनीतिहन्ति इतिहपरिवज्जितं. अपरपत्तियन्ति दसुत्तरसतसुत्तन्ता इतिवृत्तकन्ति वेदितब्बं पारा. अट्ठ. अत्थो , अ. नि. अट्ठ.2.267. 1.22; स. प. के अन्त. - ब्रह्मजालादि ... खुद्दकपाठ- इतिहा स्त्री., इतिकिरा के अनुकरण पर इति + ह का धम्मपद-उदान-इतिवुत्तक -सुत्तनिपात- विमानवत्थु - विपरिवर्तित रूप, परम्परा से प्राप्त शिक्षा या विद्या, मौखिक पेतवत्थु - थेरगाथा- थेरीगाथा - जातक-निद्देस- परम्परा, परम्परा से चला आ रहा उपदेश - पटिसम्भिदा - अपदान-बुद्धवंस-चरियापिटकवसेन पारम्परियमेतिह्यमुपदेसो तथेतिहा, अभि. प. 412. पन्नरसप्पभेदो खुद्दकनिकायोति इदं सुत्तन्तपिटकं नाम, इतिहास पु., इति + ह + आस के योग से व्यु. [इतिहास]. पारा. अट्ठ. 1.14; - अट्ठकथा स्त्री., इतिवु. पर आचार्य शा. अ., ऐसा निश्चित रूप से घटित हुआ था, ला. अ., धम्मपाल द्वारा लिखी गई परमत्थदीपिनी नामक अट्ठकथा इतिहास, परम्परा में चले आ रहे ऐसे आख्यान जिनमें अथवा व्याख्या, स. प. के अन्त. - इतिवृत्तोदान चरियापिटक पूर्वकाल में घटित घटनाचक्रों एवं उनसे सम्बद्ध व्यक्तियों - थेर - थेरी - विमानवत्थु - पेतवत्थु-नेत्तिट्ठकथायो का कालक्रमानुगत वर्णन हो, कथानकों के रूप में पूर्ववृत्त, आचरियधम्मपालथेरो अकासि, सा. वं. 31; - वण्णना वीरगाथा रूप में उपनिबद्ध ऐतिहासिक उपाख्यान, पौराणिक स्त्री., आचार्य धम्मपाल द्वारा रचित इतिवु. की परमत्थदीपनी शैली में कहे गए प्राचीन घटनाक्रम एवं चरित्र-से सप्त. नामक व्याख्या - य तृ. वि., ए. व. - अत्थयोजना च वि., ए. व. - लक्खणे इतिहासे च, सनिघण्डुसकेटुभे, इतिवृत्तकवण्णनाय अम्हेहि पकासितायेवाति तत्थ वुत्तनयेनेव पञ्चसतानि वाचेति, सधम्मे पारमिं गतो, सु. नि. 1026; वेदितब्बोति, उदा. अट्ठ. 38; - यं सप्त. वि., ए. व. - लक्खणे इतिहासे च, सनिघण्टुसकेटुभे, अप. 1.14; इतिह तं परमत्थदीपनियं इतिवृत्तकवण्णनायं वृत्तनयेन वेदितब्ब, आस, इतिह आसाति ईदिसवचनपटिसंयुत्ते पुराणसङ्खाते थेरगा. अट्ठ. 1.166. गन्थविसेसे, बु. वं. अट्ठ. 80; - सं द्वि. वि., ए. व. - इतिसच्चपरामास पु., “यही सत्य है, दूसरा विचार असत्य इरुवेदं यजुवेदं सामवेद, अथब्बणवेदं लक्खणं इतिहास है", इस रूप में सत्य का मिथ्या रूप में ग्रहण -- पुराणं निघण्डु केटुभं अक्खरप्पभेदं पदं वेय्याकरणं, मि. प. इतिसच्चपरामासो दिद्विद्वाना समुस्सया, अ. नि. 1(2).47; 173-174; - कथा स्त्री, तत्पु. स. [इतिहासकथा], "इतिसच्चं इतिसच्चान्ति गहणपरामासो च... समुस्सितत्ता परम्परा में चली आ रही प्राचीन घटनाओं अथवा व्यक्तियों उग्गन्त्वा ठितत्ता समुस्सयाति वच्चन्ति, ते सब्बेपि, अ. नि. की पौराणिक शैली की कथा - यं सप्त. वि., ए. व. - अट्ठ. 2.292; इति एवं सच्चन्ति परामासो इतिसच्चपरामासो, इतिहासकथायं च देवासुररणे पुरा दुस्सन्तादिमहीपेहि कतं इदमेव सच्चं, मोघमञन्ति दिडिया पवत्तिआकारं दस्सेति, च चरितभूतं, चू. वं. 64.44; - पञ्चम त्रि., ब. व. इतिवु. अट्ठ. 173. [इतिहासपञ्चम], पांचवें के रूप में इतिहास-सहित (चारो इतिसद्द पु., व्याकरणों में प्रयुक्त शब्द [इतिशब्द], 'इति' वेद) - मानं पु., ष. वि., ब. व. - तिण्णं वेदानं पारगू शब्द - दो प्र. वि., ए. व. - आख्यातवसेन गमने सनिघण्डुकेटुभानं साक्खरप्पभेदानं इतिहासपञ्चमानं पदको इतिसद्दो दिस्सति, सद्द. 2.317; इमस्मिं पदे अधिकारवसेन वेय्याकरणो, दी. नि. 1.76-77; म. नि. 2.341; आथब्बणवेद इतिसद्दो आहरितब्बो, पारा. अट्ठ. 2.39; इतिसद्दो चतूहिपि चतुत्थ कत्वा इतिह आस, इतिह आसाति योगेहि सद्धि योजेतब्बो, अ. नि. अट्ठ. 2.249; इतिसद्दो इदिसवचनपटिसंयुत्तो पुराणकथासङ्घातो इतिहासो पञ्चमो आदिअत्थो पकारत्थो वा, उदा. अट्ट. 174; - लोप पु., एतेसन्ति इतिहासपञ्चमा, तेसं इतिहासपञ्चमानं वेदानं तत्पु. स., व्याकरणों में ही प्रयुक्त [इतिशब्दलोप], 'इति' दी. नि. अट्ठ 1.200; - पुराणादिनेकागमकथाविदू शब्द का लोप, स. प. के अन्त. -- इतिसद्दलोपयोजनावसेन त्रि., इतिहास एवं पुराण आदि अनेक आगमों में प्राप्त अओ सहसन्निवेसो तेनेव अजओ अत्थपटिवेधो च भवति, कथाओं का ज्ञाता, प्र. वि., ए. व. - सद्द. 1.263. इतिहासपुराणादिनेकागमकथाविदू, चू. वं. 66.143. For Private and Personal Use Only

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