Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 385
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra इसिपतन आगन्त्वा पतने, सन्निपातद्वानेति अत्थो, अ. नि. अट्ठ. 2.8182; नं प्र. वि., ए. व. इमिना इसीनं पतनुप्पतनवसेन तं इसिपतनन्ति वुच्चति, पटि. म. अड. 2.198 ला. अ. बौद्धों के चार परम पावन स्थलों में दूसरा स्थल, जहां पर सारे बुद्ध धर्मचक्रप्रवर्तन करते हैं, बुद्धों द्वारा धर्मचक्रप्रवर्तन किए जाने का स्थान - ने सप्त. वि., ए. व. धम्मचक्कप्पवत्तनद्वानं इसिपतने मिगदाये अविजहितमेव होति, बु. वं. अट्ठ 149; चत्तारि हि अचलचेतियट्ठानानि नाम महाबोधिपल्लङ्कट्ठानं इसिपतने धम्मचक्कप्पवत्तनद्वानं... मञ्चपादट्ठानन्ति, म. नि. अ. (म.प.) 1 (2) 70, कस्सपो भगवा अरहं सम्मासम्बुद्धो बाराणसियं विहरति इसिपतने मिगदाये. म. नि. 2.250; सो सुदं भगवा वीसति भिक्खुसहस्त्रपरिषुतो तत्थेव इसिपतने वसति, सु. नि. अड. 1.260 परियोसानं जानातीति पुच्छित्वा इमे तात. इसयो इसिपतने विहरन्ति ध. प. अ. 2.254 पच्चेकबुद्धे नन्दमूलकपब्भारतो इसिपतने ओतरित्वा, नगरे पिण्डाय चरित्वा इसिपतनमेव गन्त्वा, थेरीगा. अह. 155: तदा बोधिसतो वाराणसियं कुलघरे निब्बतित्वा वयप्पत्तो इसिपब्बज्जं पब्बजित्वा इसिगणपरिवुतो इसिपतने वासं कप्पेसि, जा. अट्ठ. 2.294; नं' प्र. वि., ए. व. अथ खो भगवा अनुपुब्बेन चारिकं चरमानो येन वाराणसी इसिपतनं मिगदायो, महाव. 12; येन वाराणसी इसिपतन मिगदायो येन पञ्चवग्गिया भिक्खु तेनुपरमं म. नि. 1.231 - न हि. वि. ए. व. तेसं धम्मं देसेतुकामो बाराणसियं इसिपतनं गत्वा धम्मचक्कं पवत्तेसीति, स. नि. अट्ठ 1.178 विहार पु. वाराणसी के इसिपत्तन में निर्मित एक विहार स्सष. वि. ए. व. - "... पवत्तमानाय एही "ति वत्वा इसिपतनविहारस्स पिट्ठिपरसेन थोकं गन्त्वा अट्टासि पे व अड. 47. इसिपतन' नपुं. वाराणसी के इसिपतन के ही नाम वाला श्रीलङ्का के शासक परक्कमबाहु प्रथम द्वारा पुलत्थि नगर के समीप निर्माण कराया गया श्रीलङ्का का एक विहार, आधुनिक पोलन्नरुव के समीप निर्मित एक विहार - नं द्वि. वि., ए.व. तथेसिपतनं साखानगरे यतिनन्दनं, चू. वं. 78.79 स. प. के अन्त. वेळुवनेसिपतनकुसिनारव्हयेन च, चू, वं. 73-152. इसिब्बज्जा / इसि पब्बजा स्त्री, तत्पु० स० [ ऋषिप्रव्रज्या ]. ऋषियों की प्रव्रज्या, बौद्धेतर तापसों या ऋषियों के रूप में गृहत्यागी जीवन में प्रवेश, आजीवक, निर्ग्रन्थ, जटिल - www.kobatirth.org ... 358 इसिप्पवेदित आदि श्रमणों के रूप में दीक्षा या प्रव्रजित होना ज्जं द्वि. वि. ए. व. इसयोति इसिनामका ये केचि इतिपब्बज्ज पब्बजिता आजीवका निगण्ठा जटिला तापसा, चूळ. नि. 43; प्रायः पू० का ० क्रि० के साथ प्रयुक्त इसिपबज्जे पब्बजित्वा तत्थेव अरज्ञे वसिस्सामीति आह जा. अनु. 1.286 इसिप बजे पथ्यजित्वा उञ्छाचरियाय वनमूलफलाफलेहि यापेन्तो वास कप्पेसि, जा. अड 3.343; उग्गहितसिप्पो इसिपब्वज्जं पब्बिजित्वा झानाभिज्ञा निब्बत्तेत्वा हिमवन्तपदेसे वासं कप्पेसि, जा. अड. 5.184; सत्तसतकमहादानं दत्वा इसिपव्बज्जं पब्बजित्वा पञ्च अभिञ्ञा अट्ट समापत्तियो निब्बत्तेति, अ. नि. अट्ठ. 1.98 पब्बतपादं पविसित्वा इसिपवज्जं पब्बजि ध, प. अड. 1.61: पब्बतपादे इसिपब्बज्जं पब्बजित्वा अट्टसमापत्तियों पञ्च च अभिज्ञायो निब्बत्तेसि, थेरगा. अट्ठ. 1.16; यदा कदा भू० क० कृ० आदि के साथ भी प्रयुक्त - अतीते पञ्च जातिसतानि इसिपब्बज्जं पब्बजितोपि अ. नि. अट्ठ. 1.108; सप्त. वि., ए. व. तत्थ येन अतीतभवेपि सासने वा इसिपव्वज्जाय या पब्बजित्या पथवीकसिणे विसुद्धि. 1.120 बुद्धादयो अरिया तापसपब्बज्जाय च पब्बजिता नरा, सद्द० 2.442. इसिपरिक्खार पु०, तत्पु० स० [ ऋषिपरिष्कार ], ऋषि की सामग्री या उपकरण रे हि. वि. ब. व. दिस्वा इसिपरिक्खारे पण्णसालवरे तहि, जिन. 32. इसिपलोभिका स्त्री० [ ऋषिप्रलोभिका ], ऋषि को पथभ्रष्ट करने वाली नारी, ऋषि को मोहित कर तपोभ्रष्ट करने वाली स्त्री 1- का प्र. वि. ए. व. 'निसिप्पलोभिका गच्छे, एतं सक्क वरं वरेति, जा. अट्ठ. 5.156 - यष. वि., ए. पुन इसिपलोभिकाय न गच्छेय्यं, जा. अट्ठ. 5.156. इसिपूग नपुं तत्पु स ऋषि गण, ऋषि समूह समञ्जात त्रि ऋषिगणों द्वारा अनुमोदित ते सप्त वि. ए. व. इसिपूग समातेति इसिगणेन सुद्ध अज्ञाते इसीनं सम्मते, जा. अट्ठ. 5.8. व. " इसिप्पयात स्त्री, तत्पु, स. [ ऋषिप्रयात] ऋषियों द्वारा अनुसृत, ऋषि द्वारा पकड़ा हुआ तम्हि पु. सप्त. वि., ए. क. इसिप्पयातम्हि पथे वजन्ते ओवस्सते ते नु कदा भविस्सति, थेरगा. 1105; इसिप्पयातम्हि पथे वजन्तन्ति बुद्धादीहि महेसीहि सम्मदेव.... थेरगा. अड. 2.395. इसिप्पवेदित त्रि तत्पु स [ ऋषिप्रवेदित] ऋषि द्वारा उपदिष्ट, ऋषि द्वारा बतलाया गया तं पु. द्वि. वि. ए. 7 - For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - — - - --

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