Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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इस्सति
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इस्सर
इस्ससि इस्सथाति सब्बं योजेतब्ब, सद्द. 2.320; परलाभसक्कारगरुकारमाननवन्दनपूजनासु इस्सति उपदुस्सति इस्सं बन्धति, म. नि. 3.252; अ. नि. 1(2).233; एवं मक्खी पळासी तस्स लाभसक्कारादीसु किं इमस्स इमिनाति इस्सति पदुस्सति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).114; - न्ति ब. व. - "देवा न इस्सन्ति
पुरिसपरक्कमस्स, सद्द. 3.695; सद्द. 2.320. इस्सति' Vइ (गत्यर्थक) के भवि., प्र. पु., ए. व. [एष्यति].
जाएगा - इस्सति इस्सन्ति, इस्ससि ..., सद्द. 2.319. इस्सते ।इस (इच्छार्थक) के कर्म. वा. का वर्त., प्र. पु., ए. व. [इष्यते], चाहा जाता है, इच्छा की जाती है - इस्सते इस्सन्ते, सद्द. 2.319; सो इच्छीयति, एसीयति, इस्सते, इस्सति, यकारस्स पुब्बरूपत्तं, प. रू. सि. 476. इस्सत्त/इस्सत्थ' पु./नपुं.. [इष्वरत्व], वाणशिल्प, वाणविद्या, शस्त्र-व्यवसाय - त्तं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - इस्सत्तन्ति उसुसिप्पं, स. नि. अट्ठ. 1.146; इस्सत्तं बलवीरियञ्च, यस्मिं विज्जेथ माणवे, स. नि. 1(1).118; उसून असनकम्मं इस्सत्तं, म. नि. टी. (मू.प.) 1(2).38; - त्थं द्वि. वि., ए. व. - यो हि कोचि मनुस्सेस इस्सत्थं उपजीवति, सु. नि. 622; इस्सत्थन्ति आवुधजीविक, उसुञ्च सत्तिं चाति वुत्तं होति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.306; सु. नि. अट्ठ. 2.169; – त्थो पु., प्र. वि., ए. व. - इस्सत्थो वुच्चति आवुधं गहेत्वा उपट्ठानकम्म, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).369; - त्थेन तृ. वि., ए. व. - यदि कसिया यदि वणिज्जाय यदि गोरक्खेन यदि इस्सत्थेन यदि राजपोरिसेन यदि सिप्पञतरेन, म. नि. 1.120; - त्थे सप्त. वि., ए. व. - इस्सत्थे चस्मि कुसलो, दळहधम्मोति विस्सुतो, जा.
अट्ठ. 6.91. इस्सत्तसुत्त नपुं., स. नि. के एक सुत्त का शीर्षक, स. नि.
1(1).117-118. इस्सफन्दना पु., द्व. स., प्र. वि., ब. व., शा. अ..1. कृष्णमृग एवं फन्दन वृक्ष, 2. ईर्ष्या या द्वेष से स्पन्दित या प्रकम्पित होना, ला. अ.. सांप-नेवले के समान स्वाभाविक शत्रुता, पारस्परिक द्वेषभाव, परछिद्रान्वेषणता - सम्मोदथ मा विवदथ, मा होथ इस्सफन्दना, जा. अट्ठ. 4.188; मयूरनच्च नच्चन्ति, यथा ते इस्सफन्दना, तदे.; यथा ते इस्सफन्दना अञमञस्स रन्धं पकासेन्ता नच्चिसु नाम, तदे; - सदिस त्रि., 1. कृष्णमृग एवं फन्द न वृक्ष के समान एक दूसरे की कमी निकालने वाला, 2. सांप-नेवले
के समान स्वाभाविक बैरी - सा पु., प्र. वि., ब. व. - यावन्तेत्थाति यावन्तो एत्थ इस्सफन्दनसदिसा मा अहुवत्थ,
जा. अट्ठ. 4.188. इस्समान/इस्सामान नपुं.. ईर्ष्या एवं अभिमान - नेन तृ. वि., ए. व. - न तावाहं पणिपति, इस्सामानेन वञ्चितो, थेरगा. अट्ठ. 2.72; थेरगा. 375; इमस्स मयि सावकत्तं उपगते मम लाभसक्कारो परिहायिस्सति, इमस्स एवं ... परसम्पत्तिअसहनलक्खणाय इस्साय चेव 'अहं गणपामोक्खो बहुजनसम्मतो ति एवं अभुन्नतिलक्खणेन मानेन च वञ्चितो,
थेरगा. अट्ठ. 2.72. इस्समिग पु., [ऋष्यमृग], एक वन्य पशु, सफेद पैरों वाला कृष्णमृग - गा प्र. वि., ब. व. - इस्समिगाति काळसीहा, जा. अट्ठ. 5.413; - स्स ष. वि., ए. व. - ... विपरिवत्तायोति यथा इस्समिगस्स सिङ्ग परिवत्तित्वा ठितं. जा. अट्ठ. 5.428; स. प. के अन्त., - "एवमक्खायति ... इस्समिगसाखमिगसरभमिगएणी मिगवातमिगपसदमिगपरि
सालुकिम्पुरिसयक्खरक्ख सनिसेविते..., जा. अट्ठ. 5.411. इस्सयति इस्सा के ना. धा. से व्यु.. वर्त., प्र. पु., ए. व.,
ईर्ष्या करता है, डाह जैसा करता है -न्ति ब. व. - तिथिया इस्सयन्ति समणानं, सद्द. 3.695. इस्सयितत्ता नपुं., भाव., ईर्ष्यालुता, डाहपन - त्तं प्र. वि., ए. व. - यं एवरूपं निवारियं निद्वारियकम्मं इस्सा इस्सायना
इस्सियतत्तं उसूया उसूयना उसूयितत्तं, महानि. 330. इस्सर पु., [ईश्वर], क. स्वामी, प्रभु, ज्येष्ठ, उच्च पदासीन
अधिकारी, शासक, राजा, समर्थ, शक्तिशाली - रो प्र. वि., ए. व. - चक्कवत्ती अहं राजा, जम्बुमण्डस्स इस्सरो, अ. नि. 2(2).228; इस्सरो पणये दण्डं ध. प. अट्ठ. 2.103; इस्सरो धनधअस्स सुपहूतस्स मारिस, पे. व. 510; चातुरन्तो विजितावी, जम्बुसण्डस्स इस्सरो, सु. नि. 557; इद्धिमा यसवा होति, जम्बुमण्डस्स इस्सरो, अ. नि. 2(2).228; - रा ब. व. - कते इस्सरा होन्ति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.133; तंनिबन्धा अकतं सेनासनं करोन्ति, जिण्णं पटिसङ्करोन्ति, कते इस्सरा होन्ति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.133; -रं द्वि. वि., ए. व. - चतुन्नमपि दीपानं, इस्सरं योध कारये, वि. व. 194; - र सम्बो., ए. व. - वरं चे मे अदो सक्क, सब्बभूतानमिस्सर, जा. अट्ठ. 7.351; - रानं ष. वि., ब. व. - अयहि अम्हाक वचनं अकत्वा कीळाहंसे नो कत्वा इस्सरानं देन्तो बह धनं लभेय्य, जा. अट्ठ. 5.339; ख. महाब्रह्मा, सृष्टिकर्ता देव ब्रह्मा, लोकेश्वर
पिथ
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