Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 384
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसिदत्त 357 इसिपतन देने वाला थेर - त्तो प्र. वि., ए. व. - किमिलो इसिदासी स्त्री., एक थेरी का नाम, थेरीगा. की एक कविता वज्जिपुत्तो च, इसिदत्तो महायसोति, थेरगा. (पृ.) 187; - की रचयित्री थेरी, थेरीगा. 402-449; थेरीगा. अट्ठ. 283. त्थेर पु., इसिदत्त नामक स्थविर - रो प्र. वि., ए. व. - इसिदिन्न पु., व्य. सं., 1. थेरगा. के एक कवितासंग्रह का अथेकदिवसं इसिदत्तत्थेरो तत्थ गन्त्वा विहरन्तो.... अ. नि. रचयिता एक कवि-थेर, थेरगा. 186-187; थेरगा. अट्ठ. अट्ठ. 1.287; - स्स प. वि.. ए. व. - पञ्चक्खन्धा परिआताति 1.340-341; स. प. के अन्त., इच्चेवं सच्चबन्ध - इसिदिन्न आयस्मतो इसिदत्तत्थेरस्स गाथा, थेरगा. अट्ट, 1.258. - महापुण्णादयो पटिच्च अम्हाकं मरम्ममण्डले सासनं इसिदत्त' पु., व्य. सं., एक गहपति का नाम, सदा पतिहासि, सा. वं. 52; 2. एक व्यापारी का नाम, स. प. पुराण/पूरण के नाम के साथ ही प्रयुक्त – त्तो प्र. वि., के अन्त. - वाणिजगामे च इसिदिन्नसेडिआदीनं पि ए. व. - पेत्तेय्योपि मे, भन्ते, इसिदत्तो अब्रह्मचारी अहोसि धम्मरसं पायेसि, सा. वं. 52. सदारसन्तट्ठो, अ. नि. 2(2).63; पञआय इसिदत्तो समन्नागतो इसिद्धज पु./नपुं., तत्पु. स. [ऋषिध्वज], ऋषि का अहोसि तथारूपाय पाय पुराणो समन्नागतो अभविस्स. (काषाय वस्त्र आदि के रूप में) विशिष्ट पहचान-चिह्न, अ. नि. 3(2).119; - स्स ष. वि., ए. व. - पूरणस्स ऋषि का वेश, चीवर - जं द्वि. वि., ए. व. - सिरस्मि सील इसिदत्तस्स पआठाने ठितं. इसिदत्तस्स पञआ पूरणस्स अञ्जलिं कत्वा, वन्दितब्बं इसिद्धजं, अप. 1.45; ... सीलहाने ठिताति, अ. नि. अट्ठ. 3.117. वन्दितब्बं इसिद्धजं अरहत्तद्धजं बद्धपच्चेकबुद्धसावकदीपक इसिदत्त पु., व्य. सं., सोरेय्य का एक शासक, जिसने चीवरं नमस्सितब्बं ... अप. अट्ठ. 1.303; इसिद्धजं अरियानं अनोमदस्सी बुद्ध का धर्मोपदेश सुनते ही अर्हत्त्व प्राप्त कर धज परिक्खारं तदे.. लिया था - स्स ष. वि., ए. व. - तत्थ सोरेय्यनगरे इसिनाम त्रि., ब. स., किसी ऋषि के नाम वाला – मे नपुं., इसिदत्तस्स रओ धम्मे देसियमाने .... बु. वं. अट्ठ. 199. सप्त. वि., ए. व. - इसिनामे मिगारजे, अमतभेरिमाहनि, इसिदत्त' पु., व्य. सं., श्रीलङ्का के शासक वट्टगामणी के अप. 1.46; थेरगा. अट्ठ. 2.214. समय के श्रीलङ्का के संघनायक थेरों में एक - त्त संबो., इसिनामक त्रि., ब. स. [ऋषिनामक], ऋषि नाम वाला, ए. व. - अथ चूळसीवत्थेरो इसिदत्तत्थेरं आह - "आवुसो ऋषि-नामधारी - का पु., प्र. वि., ब. व. - इसयोति इसिदत्त, अनागते महासोणत्थेरं निस्साय सासनपवेणी इसिनामका ये केचि इसिपब्बजे पब्बजिता आजीवका निगण्ठा ठस्सति, विभ, अट्ठ. 421. जटिला तापसा, चूळनि. 43. इसिदत्तपुराण पु., द्व. स., व्य. सं., कोशल के राजा इसिनिसभ पु., तत्पु. स. [ऋषि-नृषभ], सर्वश्रेष्ठ ऋषि प्रसेनजित के इसिदत्त एवं पुराण नामक दो अश्वपाल, जो (बुद्ध), ऋषियों में सर्वोत्तम ऋषि, बुद्ध की एक उपाधि - बुद्ध के प्रति अत्यधिक श्रद्धावान थे - णा प्र. वि., ब. व. भो प्र. वि., ए. व. - बुद्धो च मे इसिनिसभो विनायको, वि. - इमे इसिदत्तपुराणा थपतयो ममभत्ता ममयाना, म. नि. व. 143; इसीसु निसभो, इसीनं वा निसभो, इसि च सो 2.333; इसिदत्तपुराणाति इसिदत्तो च पुराणो च म. नि.. निसभो चाति वा इसिनिसभो, वि. व. अट्ट, 66; - भं द्वि. अट्ठ. (म.प.) 2.252; तेन खो पन समयेन इसिदत्तपुराणा वि., ए. व. - सुत्वान घोसं जिनवरचक्कवत्तने, गन्त्वान थपतयो साधुके पटिवसन्ति केनचिदेव करणीयेन, स. नि. दिस्वा इसिनिसभं पसन्नो, सु. नि. 703; - भा प्र. वि., ब. 3(2).415; एकमन्तं निसिन्ना खो इसिदत्तपुराणा थपतयो व. - इसिनिसभाति इसीसु निसभ अजानीयसदिस, वि. व. भगवन्तं एतदवोचु, नेत्ति. 112. अट्ठ. 220. इसिदास पु., व्य. सं., इसिभट का भाई तथा कठिन-चीवर इसिपतन नपुं., तत्पु. स., व्य. सं. नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करने वाला एक स्थविर - [ऋषिपतन/ऋषिपत्तन/ऋषिपट्टन]. शा. अ.. ऋषियों सो प्र. वि., ए. व. - आयस्मा च इसिदासो आयस्मा च (बुद्धों, प्रत्येकबुद्धों) के एकजुट होने (सन्निपात) का स्थान, इसिभटो, महाव. 391. वह स्थान जहां ऋषि लोग आकर उतरते हैं, एक दूसरे इसिदासिका स्त्री., एक थेरी का नाम, दूसरा नाम संभवतः से मिलते हैं तथा पुनः उत्पतित हो जाते हैं -- ने सप्त. इसिदासी - का प्र. वि., ए. व. - पटाचारा धम्मदिन्ना वि., ए. व. - पञ्चमे इसिपतनेति बुद्धपच्चेकबुद्धसङ्घातानं सोभिता इसिदासिका, दी. वं. 18.10. इसीनं धम्मचक्कप्पवत्तनत्थाय चेव उपोसथकरणत्थाय च For Private and Personal Use Only

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