Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 373
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra इन्द्रियसंवरसुख 346 - इन्द्रियसंवरसुख नपुं तत्पु, स. इन्द्रियों के नियन्त्रण से प्राप्त सुख इन्द्रियद्वारों के संरक्षण का सुख खं प्र. वि., ए. व. इन्द्रियसंवरसुखं हि दिट्ठादीसु दिट्ठमत्तादिवसेन पवत्तताय अविकिण्णं होति अ. नि. अट्ठ. 2.378. इन्द्रियसंवरसुत नपुं. व्य. सं., अ. नि. के छक्कनिपात के धम्मिकवग्ग का इन्द्रियों के संयमन पर प्रकाश डालने वाला एक सुत्त, अ. नि. 2 (2).73. इन्द्रियसंयुत त्रि. (इन्द्रियसंवृत] इन्द्रियों के विषय में संयमित या नियन्त्रित इन्द्रिय-द्वारों की सुरक्षा करने वाला तो पु. प्र. वि. ए. व. निस्सङ्गो रहपालो व नन्दो विन्द्रियसंयुतो सद्धम्मो 473. इन्द्रियसच्चनिद्देस पु०, विसुद्धि का एक अध्याय, जिसमें इन्द्रियों का विवेचन है, विसुद्धि० 2.118-145. इन्द्रियसन्निस्सय पु. तत्पु. स. [ इन्द्रियसन्निश्रय] इन्द्रियों का आश्रय, इन्द्रियों का सहारा येन तु.वि., ए. व. सो च यथाभूतावबोधो विसेसतो इन्द्रियसन्निस्सयेनाति इन्द्रियविभङ्गदेसना, विभ. अनुटी. 5. इन्द्रियसमता स्त्री० तत्पु० स०, इन्द्रियों की समानरूपता, श्रद्धा आदि इन्द्रियों का समभाव - तं द्वि. वि. ए. व. इन्द्रियं समाकारेन वत्तेन्तो इन्द्रियसमतं पटिपादेन्तो नाम होति. अ. नि. टी. 3.164 विसुद्धि महाटी 1.142. इन्द्रियसमत्त नपुं, तत्पु० स० [ इन्द्रियसमत्व ], उपरिवत् ते सप्त वि. ए. व. सतिपि इन्द्रियसमत्ते वीरियसमताय च. समाधिपि न सुदु पाकटो, सारस्थ. टी. 1.321; विसुद्धि. महाटी. 1.171- पटिपादन / ना स्त्री० / नपुं०, श्रद्धा, वीर्य, स्मृति, समाधि एवं प्रज्ञा इन इन्द्रियों में समत्व या सन्तुलन बनाना, श्रद्धा आदि इन्द्रियों में समता को लाना ना स्त्री. प्र. वि. ए. व. इन्द्रियसमत्तपटिपादना नाम सद्धादीन इन्द्रियानं समभावकरणं विभ. अड. 262 दी. नि. अट्ठ. 2.339; म. नि. अट्ठ (मू.प.) 1 ( 1 ).300; स. नि. अड. 3.192 अपिच सत्त धम्मा धम्मविचयसम्बोज्जाङ्गस्स उप्पादाय संवत्तन्ति परिपुच्छकता वत्थुविसदकिरिया, इन्द्रियसमत्तपटिपादना... विसुद्धि. 1. 128.. इन्द्रियसमुट्ठित त्रि., [इन्द्रियसमुत्थित], सौमनस्य दौर्मनस्य एवं उपेक्षा नामक इन्द्रियों से उत्पन्न इन्द्रियों से समुद्रत तं नपुं. प्र. वि., ए. व. इदं रूपं दोमनस्सिन्द्रियसमुद्वित पटि. म. 103. इन्द्रियसमुदय पु. तत्पु. स. इन्द्रियों का उदय इन्द्रियों की उत्पत्ति सुत्तन्तनिडेसे पठमं इन्द्रियसमुदयादीनं " - - www.kobatirth.org — इन्द्रियाधिद्वान भेदगणनं पुच्छित्त्वा पुन पभेदगणना विस्सज्जिता, पटि. म. अट्ठ. 2.122. इन्द्रियसम्पन्न त्रि. [ इन्द्रियसम्पन्न ], क. चक्षु आदि इन्द्रियों के उदय एवं व्यय की अनुपश्यना करते हुए उनके प्रति निर्वेदभाव या समभाव से परिपूर्ण छ आयतनों की प्रवृत्ति से युक्त, ख. चक्षु आदि इन्द्रियों से युक्त इन्द्रियों की अविकलता से युक्त नो पु. प्र. वि. ए. व. - 'चक्खुन्द्रिये चे भिक्खु, उदयब्वयानुपस्सी विहरन्तो चक्खुन्द्रिये निब्बिन्दति ... एत्तावता खो, भिक्खु, इन्द्रियसम्पन्नो होतीति स. नि. 2(2) 143; इन्द्रियसम्पन्नोति परिपुष्णिन्द्रियो स. नि. अट्ठ. 3.47; स वे इन्द्रियसम्पन्नो, सन्तो सन्तिपदे रतो. धारेति अन्तिमं देहं जेत्वा मारं सवाहिनिन्ति इतिवु. 40; सो इन्द्रियसम्पन्नो फुसति, वेदियति, तण्हीयति, उपादियति, घटियति, विसुद्धि. 2173: इन्द्रियसम्पन्नोति चक्खादीहि इन्द्रियेहि समन्नागतो. विसुद्धि. महाटी. 2.275. - " इन्द्रियसम्पन्नसुत्त नपुं. स. नि. के सळायतनवरंग का एक सुत्त, जिसमें इन्द्रियों की अनुपस्सना का विवेचन है, स० नि. 2(2).143: तादिवण्णना स्त्री. स. नि. अड्ड में इन्द्रियसम्पन्नसुत्त की व्याख्या, स. नि. अट्ठ. 3.47. इन्द्रियसहित त्रि. तत्पु. स. [ इन्द्रियसहित] इन्द्रियों से युक्त ते नपुं. सप्त वि. ए. व. इन्द्रियसहिते सरीरे उप्पज्जमानानि ध. स. मू. टी. 145. ..... इन्द्रियसुत्त नपुं व्य. सं. अ. नि. तथा स. नि. के सुत्तों का शीर्षक, अ० नि० 1 (2). 163; स० नि० 2(2).336. इन्द्रियहेतुक त्रि०, ब० स० [ इन्द्रियहेतुक] इन्द्रियों को अपना हेतु बनाने वाला इन्द्रियों को हेतु बनाकर उत्पन्न कानि नपुं. प्र. वि. ब. व. इत्थिन्द्रियसहिते एव सन्ताने सम्भावा इतरत्य च अभावा इन्द्रियहेतुकानि वृत्तानि ध.स. अनु. टी. 154. इन्द्रियाधिकभाव पु. तत्पु. स. इन्द्रियों की अधिकता वेन तू. वि. ए. व. पुन इन्द्रियाधिकभावेन भिज्जमाना द्विसतुत्तरं सहस्सं होन्ति, थेरगा, अड. 2.459. इन्द्रियाधिट्ठान नपुं० [ इन्द्रियाधिष्ठान ], इन्द्रियों का साक्षात्कार इन्द्रियों की प्रवृत्ति या सक्रियता नं. प्र. वि. ए. व. विक्कीळितं इन्द्रियाधिद्वानं विक्कीळित विपरियासानधिद्वानञ्च नेत्ति 102 इन्द्रियाधिद्वानन्ति इन्द्रियानं पवत्तनं भावना सच्छिकिरिया च, नेत्ति, अट्ठ 325. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - www -

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