Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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इरियापथकप्पन
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इरियापथज
तिद्वन्ति वा चङ्कम वा अधिगृहन्ति, इति लक्षण स्सनानुरूपे अरहत्तप्पत्ति च इरियापथकोपनञ्च एकप्पहारेनेव होति, स. इरियापथे वत्तमानस्स अद्दस, म. नि. अट्ट. (म.प.) 2.261- नि. अट्ठ. 1.162. 262; - थे द्वि. वि., ब. व. - सेय्यथापि, भिक्खवे, ये इरियापथक्खम त्रि., ईर्यापथ में सक्षम, शारीरिक चेष्टाओं केचि पाणा चत्तारो इरियापथे कप्पेन्ति - कालेन गमनं या क्रियाओं को ठीक से करने में सक्षम, स. उ. प. के रूप कालेन ठानं, कालेन निसज्जं, कालेन सेय्यं स. नि. में, - यो पन महापुरिसजातिको सब्बउतुइरियापथक्खमोव 3(1).95; चित्तरसादं पटिलभित्वा सुखेन चत्तारो इरियापथे होति, न तं सन्धायेतं वुत्तं, म. नि. अट्ट (मू.प.) कप्पेसि, जा. अट्ठ. 5.254; - थेहि तृ. वि., ब. व. - 1(1).307. "आवुसो, इमं तेमासं कतिहि इरियापथेहि वीतिनामेस्सथाति इरियापथगमन नपुं., शारीरिक गमन, काया से गमन - नं ? "चतुहि, भन्ते ति... "अहं तीहि इरियापथेहि वीतिनामेस्सामि, प्र. वि., ए. व. - कायगमनं नाम इरियापथगमनं, सद्द. पिटिं न पसारेस्सामि आवुसो ति, ध. प. अट्ठ. 1.6; 2.315; - नेन तृ. वि., ए. व. - इरियापथगमनेन दुक्खलक्खणं अभिण्हसम्पटिपीळनस्स अमनसिकारा गच्छतीति पि अत्थो भवति, सद्द. 2.315. इरियापथेहि पटिच्छन्नत्ता न उपट्ठाति, विसुद्धि. 2.274; - इरियापथगुत्ति स्त्री०, तत्पु. स., ईर्यापथ अथवा शरीर की थानं ष. वि., ब. व. - इरियापथानं सन्तत्ता .... गमनादि क्रियाओं की संरक्षा – या तृ. वि., ए. व. -- भिक्खुभावानुरूपेन सन्तेन इरियापथेन सम्पन्ना, पटि. म. इरियापथान सन्तत्ता इरियापथगुत्तिया सम्पन्ना अट्ठ. 2.127: इरियापथचरियाति इरियापथानं चरिया पवत्तनन्ति अकम्पितइरियापथा भिक्खुभावानुरूपेन सन्तेन इरियापथेन अत्थो , पटि. म. अट्ट, 2.127; - थेसु सप्त. वि., ब. व. सम्पन्ना, पटि. म. अट्ठ. 2.127. - चतूसु हि इरियापथेसु तयो इरियापथा न सोभन्ति, म. इरियापथचक्क नपुं., कर्म, स., ईर्यापथ-रूपी चक्र, शरीर नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.216; सीतुण्हेसु च उतूसु ठानादीसु की उत्तम चेष्टाओं के रूप में चक्र, गमनादि शारीरिक च इरियापथेसु सप्पायउतुञ्च इरियापथञ्च सेवन्तस्सापि क्रियाओं का चक्र - क्कानं ष. वि., ब. व. - परहिताय पस्सद्धि उप्पज्जति, अ. नि. अट्ठ. 1.387; ला. अ. 2. च इरियापथचक्कानं वत्तो एतस्मिं अत्थीति चक्कवत्ती, दी. चक्र, रथ का चक्का - थे सप्त. वि., ए. व. - स्थङ्गे नि. अट्ठ. 1.202; - क्के सप्त. वि., ए. व. - लक्खणे धम्मोरचक्कस्विरियापथे, चक्कं सम्पत्तिय "चक्कसमारुळहा जानपदा परियायन्ती"ति एत्थ चक्करतने मण्डले बले, अभि. प. 781; सम्पत्तियं लक्षणे इरियापथचक्के, अ. नि. अट्ठ. 1.97; - क्केन तृ. वि., ए. च, रथङ्गे इरियापथे, दाने रतनधम्मूर, चक्कादीसु च व. - हत्थाहारिक-अग्गीव हत्थसम्परिवत्ततो, दिस्सति, पटि. म. अट्ठ. 2.215; "चतुचक्कं नवद्वार न्ति इरियापथचक्केन भरणीयं सुदुक्खतो, सद्धम्मो. 604. एत्थ इरियापथे, तदे., स. उ. प. के रूप में, अकम्पिति., इरियापथचरिया स्त्री., तत्पु. स., शरीर की गमनादि चार अद्धानि., अविनीति., एकि., कल्याणि., चङ्कमनि., चतु., क्रियाओं से युक्त जीवन-व्यवहार, आठ चर्याओं में एक, चतुरि., छिन्नि., झानानुरूपि., ठानचङ्कमि., वाननिसज्जादि.. ईर्यापथों का अभ्यास, प्र. वि., ए. व. -- अट्ठचरियायो - ठानि., योगानुरूपि., रूपि०, सब्बि०, सम्पन्नि के अन्त. इरियापथचरिया, आयतनचरिया, सतिचरिया, समाधिचरिया, द्रष्ट..
आणचरिया, मग्गचरिया, पत्तिचरिया, लोकत्थचरियाति, पटि. इरियापथकप्पन नपुं, तत्पु. स., चलने, खड़े होने, बैठने म. 207; इरियापथचरियाति चतूसु इरियापथेसु ... एवं लेटने की चार प्रकार की शारीरिक क्रियाओं को प्रकट इरियापथचरिया च पणिधिसम्पन्नानं, पटि. म. 207; करना अथवा उत्पन्न करना - नं प्र. वि., ए. व. - इरियापथचरियाति इरियापथानं चरिया, पवत्तनन्ति अत्थो, अतिसुखुमो अत्तभावो, न तेन इरियापथकप्पन होति, स. पटि. म. अट्ठ. 2.127; पणिधिसम्पन्नान चतूसु इरियापथेसु नि. अट्ठ. 1.15; - नेन तृ. वि., ए. व. - जरसिङ्गालो इरियापथचरिया, चरिया. अट्ठ. 16. इच्छितिच्छितवाने इरियापथकप्पनेन सीतवातूपवायनेन च इरियापथज त्रि., चार प्रकार के ईर्यापथों (गमनादि शारीरिक अन्तरन्तरा ... दस्सेति, स. नि. अट्ठ. 2.204.
क्रियाओं) से उत्पन्न - जं नपुं., प्र. वि., ए. व. - चेतोसुखं इरियापथकोपन नपुं, शरीर की चार प्रकार की क्रियाओं कायसुखं, इरियापथजं सुखं, इमे गुणे पटिलभे, तस्स
का परित्याग या परिवर्तन - नं प्र. वि., ए. व. - अथस्स निस्सन्दतो अहं, अप. 1.341.
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