Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 341
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra इत्थभाव / इत्थम्भाव स्स पु०, च. वि., ए. व. इत्यन्नामस्स दाने दीयमाने सकिं वा द्विक्खतुं वा तिक्खतुं वा महापथवी कम्पिता ति मि. प. 123 सठो इमं कचिनदुस्सं इत्थन्नामस्स भिक्खुनो देति कथिनं अत्थरितुं महाव. 331: मं पु. द्वि. वि., ए. क. सङ्घो इत्थन्नामं उपसम्पादेति इत्थन्नामेन उपज्झायेन महाव. 63; माय स्त्री, प, वि., ए. व. इत्थन्नामा इत्थन्नामाय अय्याय उपसम्पदापेक्खा, चूळव. 437, इत्थभाव/ इत्थम्भाव पु०, इत्थं / इत्थ (= एत्थ ) + भाव के " योग से व्यु., शा. अ., 1. इस इस प्रकार की स्थिति अथवा अवस्था, 2. यहीं की स्थिति या जीवन, ला. अ. इसी लोक का जीवन ऐहलौकिक अस्तित्व मानव आदि के इसी रूप की अवस्था - वं द्वि. वि., ए. व. इत्थतन्ति इत्थभावञ्च पत्थयमाना मनुस्सादिभावं इच्छन्ताति वृत्तं होति. सु. नि. अ. 2.279; जानन्तो एवं च नेसं इत्थभावं मनुस्सभावं ततो अज्ञथाभावं अञ्ञथातिरच्छानभावञ्च उपपत्तितो पुरेतरमेव जानामि, थेरगा. अट्ठ. 2.294; वायच. वि., ए.व. नापरं इत्थत्तायाति इदानि पुन इत्थभावाय एवं सोळसकिच्चभावाय किलेसक्खयाय वा मग्गभावनाकच्च मे नत्थीति अम्भज्ञासिं पारा अड. 1.127; इदानि पुन इत्थभावाय, स. नि. अड. 1.181 - वञ्ञथाभाव पु.. इस प्रकार का अथवा दूसरे प्रकार की अवस्था या अस्तित्व, इस स्वरूप में अथवा दूसरे रूप में जीवन वंद्वि. वि. ए. व. इत्यभावञ्ञथाभावं सत्तानं आगतिं गति न्ति, म. नि. 1.412 इत्यंभावज्ञथाभावन्ति इत्थंभावोति इदं चक्कवालं. म. नि. अड. (म.प.) 1 ( 2 ) 301; इत्थभावज्ञथाभाव, झाने पञ्चङ्गिके ठितो, थेरगा. 917; जातिमरणसंसार, ये वजन्ति पुनप्पुनं इत्थभावञ्ञथाभाव, अविज्जायेव सा गति सु. नि. 734. " इत्थम्भूत त्रि. शा. अ. 1. इस प्रकार का इस इस चिह्न अथवा लक्षणों वाला, ऐसी ऐसी स्थिति को प्राप्त 2. व्याकरण में, उप. अनु के अनेक अर्थों में से "विशिष्ट लक्षण वाला अर्थ का द्योतक लक्खणवीच्छेत्यम्भूतभागादिके अनु अभि. प. 1174; लक्खणित्थम्भूत वीच्छास्वाभिना, मो. व्या. 2.10; तो पु. प्र. वि. ए. क. - इत्थम्भूतो ति इमं पकारं भूतो पत्तो, सद्द 2.565 ता पु. प्र. वि., ब.व. इत्थम्भूता बुद्धा, अप. अदु. 1.111; तक्खान/ ताख्यान नपुं. व्याकरणों का पारिभाषिक शब्द [ इत्थंभूताख्यान] किसी व्यक्ति या वस्तु के विशिष्ट लक्षणों से युक्त होने का कथन, विशिष्ट लक्षणों का प्रकाशन — - - - www.kobatirth.org — - 314 इत्थागार - नं. प्र. वि., ए. व. एत्थ च तं खो पन भवन्तं गोतमं एवं कल्याणो कित्तिसदो अब्भुगतोति पदसमुदायो इत्थम्भूतखानं क. व्या. 301; ने सप्त. वि., ए. व. तेन युक्तत्ता इत्थम्भूतक्खाने भवन्तं गोतमं ति पदे साम्यत्थे दुतिया, क. व्या. 301 - नत्थ पु. [ इत्थम्भूताख्यानार्थ], विशिष्ट लक्षणों के कथन का तात्पर्य : त्थे सप्त वि., ए. व. तं खो पनाति इत्थम्भूताख्यानत्थे उपयोगवचनं तस्स खो पन भोतो गोतमस्साति अत्थो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1 (2). 224 - लक्खण नपुं. [ इत्थम्भूतलक्षण]. मानक चिह्न, मानक लक्षण णे सप्त. वि. ए. व. इत्थम्भूतलक्खणे करणवचनं थेरगा. अ. 260 इत्थम्भूतलक्खणे करणवचनं दट्टब्बं थेरगा. अ. 2.93; पासादिकेन वत्तेनाति वा इत्थम्भूतलक्खणे करणवचनं, थेरगा. अट्ठ. 2.95. इत्थाकप्प पु०, तत्पु० स० स्त्रियों का सजना संवरना, नारियों की साज-सज्जा अथवा पहनना ओढ़ना, स्त्रियों का हावभाव या चाल ढाल प्पं द्वि. वि., ए. व. इत्थी, भिक्खये, अज्झत्तं इत्थिन्द्रियं मनसि करोति इत्यिकुत्तं इत्याकप्पं इत्थिस्सरं इत्थालङ्कार, अ. नि. 2 (2).203; इत्थाकप्पन्ति निवासनपारूपनादिइत्थिआकप्पं, अ. नि. अट्ठ. 3.169; प्पो प्र. वि. ए. व. यं इत्थिया इत्थिलिङ्गं इत्थिनिमित्तं इत्थिकुत्तं इत्थाकप्पो इत्थत्तं इत्थिभावो - इदं तं रूपं इत्थिन्द्रियं ध. स. 632, 714; आकप्पोति गमनादिआकारो इत्थियो हि गच्छमाना अविसदा गच्छन्ति... ध. स. अड. 353; इत्थकुत्तं इत्थाकप्पोति इमानि लिङ्गादीनि इत्थिन्द्रियस्स फलत्ता वृत्तानि ध. स. अनु. 403. इत्थाकर पु०, तत्पु० स०, स्त्रीरूपी रत्न का उत्पत्तिस्थान प्र. वि., ए. व. - इत्थाकरोति इत्थिरतनस्स उप्पत्तिट्ठानं, स.नि. टी. 2 (1). 146. इत्थागार नपुं. तत्पु, स. [स्त्र्यागार ] नारीसमूह, मातृग्राम, अन्तःपुर का स्त्रीसमूह, अन्तःपुर, अवरोध, जनानखाना, रनिवास इत्थागारं तु ओरोधो सुद्धन्तोन्तेपुरं पिच अभि. प. 215; इत्थागारन्तु ओरोधो उब्बरीति पि दुध्यति सद्द. 2. 347; - रं' प्र. वि., ए. व. - राजा च मे भागधो सेनियो बिम्बिसारो उपद्वातब्बो इत्थागारज्य बुद्धप्पमुखो व भिक्खुसरे महाव. 91: इत्थागारं सुभद्दाय देविया पटिस्सुत्वा सीसानि न्हायित्वा पीतानि वत्थानि पारूपित्वा येन सुभदा देवी तेनुपसहमि दी. नि. 2.141; दि. वि. ए. व. - विपरीतं इत्थागारं दिस्वा विप्पटिसारी अहोसि. मि. ए. 264 घरसामिको विय इत्थागारस्स स्सष. / च. वि., ए. व. 122 - - For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - - -

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