Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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इद्धिकथा
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इद्धिपत्त
अन्त. द्रष्ट; -- ता स्त्री॰, भाव., ऋद्धि-सम्पन्नता - अच्छरियं वत, भो, अब्भुतं वत, भो, समणस्स महिद्धिकता महानुभावता, दी. नि. 1.196; - भाव पु., उपरिवत् - वं द्वि. वि., ए. व. - सो वि तं पत्तो महामोग्गल्लानत्थेरस्स
महिद्धिकभावं सुत्वा, थेरगा. अट्ठ. 1.228. इद्धिकथा स्त्री., तत्पु. स. [ऋद्धिकथा], क. पटि. म. एवं कथा. के एक खण्डविशेष का शीर्षक, पटि. म. 376-383; कथा. 488-489; ख. विसुद्धि के एक खण्डविशेष का शीर्षक, इद्धिविधनिद्देस के स्थान पर प्रयुक्त वैकल्पिक शीर्षक, विसुद्धि. 2.1-34; - य तृ. वि., ए. व. - वत्थु विसुद्धिमग्गे इद्धिकथाय वित्थारितं. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).316; - वण्णना स्त्री., पटि. म. अट्ठ तथा कथा. के एक व्याख्यान-खण्ड का शीर्षक जिसमें ऋद्धियों का विवेचन है, पटि. म. अट्ठ. 2.244-276; प. प. अठ्ठ (कथा.)
275. इद्धिकरण नपुं.. [ऋद्धिकरण], ऋद्धियों का प्रयोग, दिव्य
शक्तियों का प्रदर्शन - णं प्र. वि., ए. व. -- 'मा अम्हाकं इद्धिकरणं भारोति चिन्तयित्थ जा. अट्ठ. 4.235; - तो प. वि., ए. व. - इद्धिकरणतो पुब्बे पकतिया एकोपि, विसुद्धि. 2.12; - काल पु., तत्पु. स. [ऋद्धिकरणकाल], ऋद्धियों के प्रयोग अथवा प्रदर्शन का काल - ले सप्त. वि., ए. व. - इद्धिकरणकाले यथासुखं चित्तचारस्स इज्झनत्थं
योगविधानं दस्सेतुं वुत्तं, पटि. म. अट्ठ. 1.277. इद्धिकारण नपुं., तत्पु. स. [ऋद्धिकारण], समृद्धि का कारण, सफलता का कारण - णं प्र. वि., ए. व. - मङ्गलन्ति इद्धिकारणं वृद्धिकारणं सब्बसम्पत्तिकारणं, ख.
पा. अट्ठ.98. इद्धिकोट्ठास पु., तत्पु. स. [ऋद्धिकोष्ठांश], ऋद्धि के
घटक तत्त्व, ऋद्धि के अङ्ग, ऋद्धि में अन्तर्निहित प्रमुख घटक - सो प्र. वि., ए. व. - इद्धि एव विधं इद्धिविधं, इद्धिकोट्ठासो, इद्धिविकप्पोति अत्थो, पटि. म. अट्ठ. 1.43; इद्धि एव पादो इद्धिपादो इद्धिकोट्टासोति अत्थो, उदा. अट्ठ. 248; - सं द्वि. वि., ए. व. - इद्धिविधन्ति इद्धिकोट्ठासं.
स. नि. अट्ठ. 2.110. इद्धिकोविद त्रि, तत्पु. स. [ऋद्धिकोविद], ऋद्धियों के प्रयोग या प्रदर्शन में दक्ष - दा पु., प्र. वि., ब. व. -
खीणासवा वसिप्पत्ता तेविज्जा इद्धिकोविदा, पारा. अट्ठ. 1.71. इद्धिगुण पु., तत्पु. स. [ऋद्धिगुण], ऋद्धि का गुण, दिव्यशक्ति की सम्पदा - णेन तृ. वि., ए.व. -
पञ्चविधेन इद्धिगुणेन समन्नागता, जा. अट्ठ. 5.132; - णे सप्त. वि., ए. व. - वसी इद्धिगुणे चुतूपपाते, थेरगा. 909; एवं इद्धिगुणे इद्धिसम्पदाय चुतूपपाते च वसीभावप्पत्तो...,
थेरगा. अट्ठ. 2.293. इद्धिगुणूपपन्न त्रि., तत्पु. स. [ऋद्धिगुणोपपन्न], ऋद्धि (लोकोत्तर मानसिक शक्ति) के गुणों से युक्त, ऋद्धिमान् - न्ना पु., प्र. वि., ब. व. - इद्धिगुणूपपन्नाति पञ्चविधेन इद्धिगुणेन समन्नागता, जा. अट्ठ. 5.132. इद्धिचित्त नपुं., तत्पु. स. [ऋद्धिचित्त], ऋद्धि-विषयक
चेतना, ऋद्धियों से सम्बद्ध चित्त, ऋद्धिबलों से परिपूर्ण चित्त - त्तेन तृ. वि., ए. व. - ... पादकज्झानारम्मणेन इद्धिचित्तेन सहजातं सुखसञञ्च ..., विसुद्धि. 2.32; - तं प्र. वि., ए. व. - इद्धिचित्तमेव परस्स चित्तं जानाति, न इतरानि, विसुद्धि. 2.60; - तो प. वि., ए. व. - इद्धिचित्ततो वुढहित्वा भवङ्गचित्तेन परिनिब्बायि, उदा. अट्ठ. 350. इद्धिज त्रि., [ऋद्धिज], ऋद्धियों की दिव्य शक्ति से उत्पन्न, ऋद्धिबल से उत्पन्न - जं नपुं, प्र. वि., ए. व. - इद्धिजं देवदिन्नञ्च, तस्स तस्सानुलोमिक खु. सि. 6; इद्धिज
एहिभिक्खूनं पुजिद्धिया निब्बत्तचीवरं तं खोमादीनं ... ___ अनुलोम, सारत्थ. टी. 2.340-341. इद्धिधम्म पु., तत्पु. स. [ऋद्धिधर्म], ऋद्धि, अलौकिक दिव्य शक्ति - म्मेसु सप्त. वि., ब. व. - असमो इद्धिधम्मसु. अलभिं ईदिसं सुखं, बु. वं. 2.80; पञ्चसु इद्धिधम्मेसूति अत्थो, बु. वं. अट्ठ. 114. इद्धिनिम्मित त्रि., तत्पु. स. [ऋद्धिनिर्मित], ऋद्धियों द्वारा निर्मित, अलौकिक दिव्य शक्तियों द्वारा बनाया गया-तं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - सब्बरतनमयंपीठं निम्मिनित्वान तावदे पियदस्सिस्स मुनिनो, अदासिं इद्धिनिम्मितं अप. 1.387. इद्धिपटिलाभ पु., तत्पु. स. [ऋद्धिप्रतिलाभ], ऋद्धियों के बल की पुनः प्राप्ति, अलौकिक दिव्य शक्तियों को फिर से पा लेना - भाय च. वि., ए. व. - मग्गो या पटिपदा इद्धिलाभाय इद्धिपटिलाभाय संवत्तति, स. नि. 3(2).348; इद्धिया इमा चतस्सो भूमियो इद्धिलाभाय इद्धिपटिलाभाय इद्धिविकुब्बनताय ... संवत्तन्तीति, पटि. म. 376; इद्धिपटिलाभायाति परिहीनानं वा इद्धीनं वीरियारम्भवसेन पुन लाभाय, पटि. म. अट्ठ. 2.245. इद्धिपत्त त्रि., ब. स. [ऋद्धिप्राप्त], ऋद्धिबल को प्राप्त, ऋद्धिविध ज्ञान को प्राप्त - त्ता पु.. प्र. वि., ब. व. -
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