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इद्धिवेसारज्ज
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विविधं विसेसं सवति जनेति पवत्तेतीति विसवी, ... तस्स
भावो विसविता, पटि. म. अट्ठ. 2.245. इद्धिवेसारज्ज नपुं., तत्पु. स. [ऋद्धिवैशारद्य], ऋद्धि के विषय में निपुणता या वैशारद्य - ज्जाय च. वि., ए. व. - इद्धिया इमे चत्तारो पादा इद्धिलाभाय ... इद्धिवेसारज्जाय
संवत्तन्तीति, पटि. म. 376. इध' निपा., [इह], यहां, इधर, इधर-उधर, यहां पृथ्वी पर,
इस लोक या संसार में, इस बुद्धधर्म में - (देसापदेसो निपातो), इध, तथागतो लोके उप्पज्जति, दी. नि. 1.55; दी. नि. अट्ठ. 1.142; इधेव तिट्ठमानस्स, देवभूतस्स मे सतो, दी. नि. 2.211; इध हिस्सामि जीवितं, जा. अट्ट. 4.372; - पञा स्त्री., इस बुद्धधर्मदेसना के विषय में अन्तर्दृष्टि - इमस्मि सासने पा इधपा नाम, सासनचरिताय अरियपाय ठितस्स अरियसावकस्साति अत्थो, अ. नि. अट्ठ. 3.339; - सद्द पु., इध शब्द -- हो प्र. वि., ए. व. - अयव्हेत्थ इधसद्दो..., पारा. अट्ट.
2.10. इध' पु., ईंधन, समिधा – धो प्र. वि., ए. व. - समिधा
इधुमं चेधो, अभि. प. 36; एधयतीति इधो, अभि. प. टी. 36. इधट्ट त्रि., इस लोक में स्थित - स्स पु., ष. वि., ए. व. --- इधहस्साति इमस्मिं लोके ठितस्स, पटि. म. अट्ठ. 1.248; - क त्रि., इसी लोक में अथवा इसी कामभव में स्थित - को पु., प्र. वि., ए. व. - इध कामभवे ठितो
इधट्ठको, नेत्ति. टी. 139. इधत्थ' त्रि., ब. स., इसी लोक के कामसुखों को अपना
प्राप्तव्य मानने वाला (व्यक्ति) - त्थं पु., द्वि. वि., ए. व. -- तिद्वन्तमेनं जानातीति भगवा इधत्थ व जानाति, चूळनि.
इधलोकभावी त्रि., इसी लोक में घटित होने वाला, सामने स्वयं देखा जा सकने वाला - विनी स्त्री., प्र. वि., ए. व. - सन्दिट्टिकाति सामं पस्सितब्बा, इधलोकभाविनी, दी. नि. अट्ठ. 3.116. इधलोकविजय पु., इस लोक पर विजय – याय च. वि., ए. व. - नवमे इधलोकविजयायाति इधलोकविजिननत्थाय
अभिभवत्थाय, अ. नि. टी. 3.223. इधलोकिकसुत्त नपुं., व्य. सं., अ. नि. के एक सुत्त का
शीर्षक, अ. नि. 3(1).98-102. इधुम नपुं., [इंधन], अग्निकाष्ठ, इन्धन, यज्ञ में काम आने वाली समिधा, जलाऊ लकड़ी - मं प्र. वि., ए. व. -- समिधा इधुमं चेधो उपादानं तथेन्धनं, अभि. प. 36%3; एधयतीति इधुमं, अभि. प. टी. 36. इनन्दपद पु., व्य. सं., दक्षिण भारत के उच्चकुट्ट नामक एक क्षेत्र के तमिलप्रधान का नाम -इनन्दपदनामं च तोण्डमानं अथापरं चू. वं. 77.74. इनप्पच्चय पु., व्याकरण में ही प्रयुक्त, इन प्रत्यय (जिन तथा सुपिन शब्दों में दृष्टिगत)- यो प्र. वि., ए. व. - जि इच्चेताय धातुया इनप्पच्चयो होति सब्बकाले कत्तरि, क. व्या. 560; सुप इच्चेताय धातुया इनप्पच्चयो होति
कत्तरि भावे च, क. व्या. 561. इन्द पु... [इन्द्र], 1. शा. अ., देवों के राजा का नाम,
तावतिंस स्वर्ग का शासक, ब्रह्मा को छोड़कर देवों के बीच सर्वाधिक प्रसिद्ध देव, दूसरा प्रसिद्ध नाम शक्र, अट्ठारह अन्य नाम भी उल्लिखित - सक्को पुरिन्ददो देवराजा वजिरपाणि च, सुजम्पति सहस्सक्खो महिन्दो वजिरावुधो वासवो च दससतनयनो तिदिवाधिभू सुरनाथो च वजिरहत्थो च भूतपत्यपि मघवा केसियो इन्दो वत्रभू पाकसासनो विडोजा, अभि. प. 18-20; - दो प्र. वि., ए. व. - इन्दोति सक्को देवराजा, थेरगा. अट्ठ. 2.193; अपि च इन्दोति सक्को , सद्द. 2.378; सचे च में रक्खति देवराजा, देवानमिन्दो मघवा सुजम्पति, जा. अट्ठ. 3.126; 2. ला. अ., अपने समूह में प्रथम अथवा श्रेष्ठ, अधिपति, राजा, परम-ऐश्वर्य-सम्पन्न व्यक्ति - इन्दोधिपतिसक्केसु, अभि. प. 1132; एत्थ इन्दोति अधिपतिभूतो यो कोचि सो हि इन्दति परेसु इस्सरियं पापुणातीति इन्दो ति वुच्चति अपि च इन्दो ति सक्को, सद्द. 2.377-78; अपिच इन्दो भगवा धम्मिस्सरो परमेन चित्तिस्सरियेन समन्नागतो, इति. अट्ठ. 183; सहस्सनेत्तो तिदसानमिन्दो, जा. अट्ठ. 5.404; सक्कोहमस्मी
153.
इधत्थ' पु., कर्म. स., इसी दिखलाई दे रहे लोक का प्रयोजन, इसी लोक का हित - त्थो प्र. वि., ए. व. - इधत्थोति दिट्ठधम्महितं, लीन. (दी. नि. टी.) 1.165. इधलोकत्थ पु., तत्पु. स., इसी लोक का निर्माण करने वाला पञ्च-स्कन्ध-नामक अर्थ या सारतत्त्व, पांच स्कन्धों के रूप में यह लोक - त्थं द्वि. वि., ए. व. - इधलोकत्थन्ति इधलोकभूतं खन्धपञ्चकसङ्घातमत्थं, लीन. (दी. नि. टी.) 263. इधलोकनिस्सित त्रि., तत्पु. स., इसी लोक पर आधारित
- तं नपुं., प्र. वि., ए. व. - न च मे इधलोकनिस्सितं विआणं भविस्सति, म. नि. 3.313.
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