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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इद्धिवेसारज्ज 331 विविधं विसेसं सवति जनेति पवत्तेतीति विसवी, ... तस्स भावो विसविता, पटि. म. अट्ठ. 2.245. इद्धिवेसारज्ज नपुं., तत्पु. स. [ऋद्धिवैशारद्य], ऋद्धि के विषय में निपुणता या वैशारद्य - ज्जाय च. वि., ए. व. - इद्धिया इमे चत्तारो पादा इद्धिलाभाय ... इद्धिवेसारज्जाय संवत्तन्तीति, पटि. म. 376. इध' निपा., [इह], यहां, इधर, इधर-उधर, यहां पृथ्वी पर, इस लोक या संसार में, इस बुद्धधर्म में - (देसापदेसो निपातो), इध, तथागतो लोके उप्पज्जति, दी. नि. 1.55; दी. नि. अट्ठ. 1.142; इधेव तिट्ठमानस्स, देवभूतस्स मे सतो, दी. नि. 2.211; इध हिस्सामि जीवितं, जा. अट्ट. 4.372; - पञा स्त्री., इस बुद्धधर्मदेसना के विषय में अन्तर्दृष्टि - इमस्मि सासने पा इधपा नाम, सासनचरिताय अरियपाय ठितस्स अरियसावकस्साति अत्थो, अ. नि. अट्ठ. 3.339; - सद्द पु., इध शब्द -- हो प्र. वि., ए. व. - अयव्हेत्थ इधसद्दो..., पारा. अट्ट. 2.10. इध' पु., ईंधन, समिधा – धो प्र. वि., ए. व. - समिधा इधुमं चेधो, अभि. प. 36; एधयतीति इधो, अभि. प. टी. 36. इधट्ट त्रि., इस लोक में स्थित - स्स पु., ष. वि., ए. व. --- इधहस्साति इमस्मिं लोके ठितस्स, पटि. म. अट्ठ. 1.248; - क त्रि., इसी लोक में अथवा इसी कामभव में स्थित - को पु., प्र. वि., ए. व. - इध कामभवे ठितो इधट्ठको, नेत्ति. टी. 139. इधत्थ' त्रि., ब. स., इसी लोक के कामसुखों को अपना प्राप्तव्य मानने वाला (व्यक्ति) - त्थं पु., द्वि. वि., ए. व. -- तिद्वन्तमेनं जानातीति भगवा इधत्थ व जानाति, चूळनि. इधलोकभावी त्रि., इसी लोक में घटित होने वाला, सामने स्वयं देखा जा सकने वाला - विनी स्त्री., प्र. वि., ए. व. - सन्दिट्टिकाति सामं पस्सितब्बा, इधलोकभाविनी, दी. नि. अट्ठ. 3.116. इधलोकविजय पु., इस लोक पर विजय – याय च. वि., ए. व. - नवमे इधलोकविजयायाति इधलोकविजिननत्थाय अभिभवत्थाय, अ. नि. टी. 3.223. इधलोकिकसुत्त नपुं., व्य. सं., अ. नि. के एक सुत्त का शीर्षक, अ. नि. 3(1).98-102. इधुम नपुं., [इंधन], अग्निकाष्ठ, इन्धन, यज्ञ में काम आने वाली समिधा, जलाऊ लकड़ी - मं प्र. वि., ए. व. -- समिधा इधुमं चेधो उपादानं तथेन्धनं, अभि. प. 36%3; एधयतीति इधुमं, अभि. प. टी. 36. इनन्दपद पु., व्य. सं., दक्षिण भारत के उच्चकुट्ट नामक एक क्षेत्र के तमिलप्रधान का नाम -इनन्दपदनामं च तोण्डमानं अथापरं चू. वं. 77.74. इनप्पच्चय पु., व्याकरण में ही प्रयुक्त, इन प्रत्यय (जिन तथा सुपिन शब्दों में दृष्टिगत)- यो प्र. वि., ए. व. - जि इच्चेताय धातुया इनप्पच्चयो होति सब्बकाले कत्तरि, क. व्या. 560; सुप इच्चेताय धातुया इनप्पच्चयो होति कत्तरि भावे च, क. व्या. 561. इन्द पु... [इन्द्र], 1. शा. अ., देवों के राजा का नाम, तावतिंस स्वर्ग का शासक, ब्रह्मा को छोड़कर देवों के बीच सर्वाधिक प्रसिद्ध देव, दूसरा प्रसिद्ध नाम शक्र, अट्ठारह अन्य नाम भी उल्लिखित - सक्को पुरिन्ददो देवराजा वजिरपाणि च, सुजम्पति सहस्सक्खो महिन्दो वजिरावुधो वासवो च दससतनयनो तिदिवाधिभू सुरनाथो च वजिरहत्थो च भूतपत्यपि मघवा केसियो इन्दो वत्रभू पाकसासनो विडोजा, अभि. प. 18-20; - दो प्र. वि., ए. व. - इन्दोति सक्को देवराजा, थेरगा. अट्ठ. 2.193; अपि च इन्दोति सक्को , सद्द. 2.378; सचे च में रक्खति देवराजा, देवानमिन्दो मघवा सुजम्पति, जा. अट्ठ. 3.126; 2. ला. अ., अपने समूह में प्रथम अथवा श्रेष्ठ, अधिपति, राजा, परम-ऐश्वर्य-सम्पन्न व्यक्ति - इन्दोधिपतिसक्केसु, अभि. प. 1132; एत्थ इन्दोति अधिपतिभूतो यो कोचि सो हि इन्दति परेसु इस्सरियं पापुणातीति इन्दो ति वुच्चति अपि च इन्दो ति सक्को, सद्द. 2.377-78; अपिच इन्दो भगवा धम्मिस्सरो परमेन चित्तिस्सरियेन समन्नागतो, इति. अट्ठ. 183; सहस्सनेत्तो तिदसानमिन्दो, जा. अट्ठ. 5.404; सक्कोहमस्मी 153. इधत्थ' पु., कर्म. स., इसी दिखलाई दे रहे लोक का प्रयोजन, इसी लोक का हित - त्थो प्र. वि., ए. व. - इधत्थोति दिट्ठधम्महितं, लीन. (दी. नि. टी.) 1.165. इधलोकत्थ पु., तत्पु. स., इसी लोक का निर्माण करने वाला पञ्च-स्कन्ध-नामक अर्थ या सारतत्त्व, पांच स्कन्धों के रूप में यह लोक - त्थं द्वि. वि., ए. व. - इधलोकत्थन्ति इधलोकभूतं खन्धपञ्चकसङ्घातमत्थं, लीन. (दी. नि. टी.) 263. इधलोकनिस्सित त्रि., तत्पु. स., इसी लोक पर आधारित - तं नपुं., प्र. वि., ए. व. - न च मे इधलोकनिस्सितं विआणं भविस्सति, म. नि. 3.313. For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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