Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar
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इत्थिकुमारिका
316
इत्थिचित्त स्त्री के अनोखे हावभाव, नारी का छलबल अथवा दांवपेंच पटिविरतो होति. म. नि. 1.241; एत्थ इत्थीति पुरिसन्तरगता, - त्तं द्वि. वि., ए. व. - इत्थी, भिक्खवे, अज्झतं इतरा कुमारिका नाम, तास पटिग्गहणम्पि आमसनम्पि इस्थिन्द्रियं मनसि करोति इत्थिकुत्तं, अ. नि. 2(2).203; अकप्पियमेव, दी. नि. अट्ठ. 1.72. इत्थिकुत्तन्ति इथिकिरियं, अ. नि. अट्ठ. 3.169; - त्तं प्र. इत्थिख्य त्रि०, ब. स., व्याकरणों में प्रयुक्त [स्त्र्याख्य], वि., ए. व. - यथा हि इथिलिङ्ग इस्थिनिमित्तं इत्थिकुत्तं स्त्री-लिङ्ग का, स्त्री-लिङ्ग वाला - ख्या पु., प्र. वि., ब. व: इत्थाकप्पो इत्थत्तं इत्थाकप्पो ति इमानि लिङ्गादीनि -ते इवण्णुवण्णा यदा इत्थिख्या तदा प-सा होन्ति, क. इथिन्द्रियस्स फलत्ता वुत्तानि, ध. स. अट्ठ. 403; - त्तेन व्या. 59; "ते इत्थिख्या पो इति इत्थियमिवण्णवण्णानं प तृ. वि., ए. व. - यक्खिनियो इत्थिकुत्तेन एक... पलोभेत्वा सञआ, बाला. 96.
Til, बाला 96. अत्तनो वसे कत्वा.... जा. अट्ठ. 2.105; इत्थिकुत्तेन पलोभेत्वा इत्थिगन्ध पु., तत्पु. स. [स्त्रीगन्ध], स्त्री की गन्ध, स्त्री के झाना चावेत्वा ब्रह्मचरियमस्स अन्तरधापेसि. जा. अट्ठ. शरीर की सुगन्ध, स्त्री के शरीर पर लगाए गए चन्दनादि 2.273; - त्तादि त्रि., नारी के छल-कपट भरे व्यवहार के लेपों की सुगन्ध - धो प्र. वि., ए. व. - इत्थिगन्ः आदि की चेष्टा - दीनि नपुं. द्वि. वि., ब. व. - गो, भिक्खवे, परिसस्स चित्तं परियादाय तिट्ठति, अ. एकदिवसं दिवाविहारट्टानं गन्त्वा इत्थिकुत्तादीनि दस्सेतुं नि. 1(1).2; इत्थिया सरीरे आरुळहो आगन्तुको आरभि, थेरगा. अट्ठ. 1.51; - दीहि तृ. वि., ब. व. - अनुलिम्पनादिगन्धो "इत्थिगन्धोति वेदितब्बो, थेरगा. अट्ठ. इत्थिकुत्तादीहि पलोभेतुकामा अहोसि, थेरगा. अट्ठ. 1.102; 2.236; - न्धेसु सप्त. वि., ब. व. - इत्थिगन्धेसु सारत्तो 'इत्थिकुत्तादीहि नं पलोभेत्वा उप्पब्बाजेस्सामी ति, थेरगा. विविधं विन्दते दुखं, थेरगा. 738; इत्थिगन्धेसूति अट्ठ. 2.22; - दस्सन नपुं., तत्पु. स., स्त्री के सम्मोहक इत्थिया चतुसमुठ्ठानिकगन्धायतनेसु. थेरगा. अट्ठ. 2.236 व्यवहार को दिखलाना, नारी की मोहक चालढाल का इत्थिगब्म पु., तत्पु. स. [स्त्रीगर्भ], गर्भ में आया हुआ नारी प्रयोग - नेन तृ. वि., ए. व. - आरञकं कुञ्जरं शिशु, मां की कोख में आया हुआ नारी भ्रूण - ब्मो प्र. वि., इत्थिकुत्तदस्सनेन पलोभेत्वा बन्धित्वा आनयन्ति, स. नि. ए. व. - कुच्छिम्हि गब्भो पतिहितो, सो च खो पुरिसगभो, अट्ठ. 1.165; - हावभावविलास पु., द्व. स., स्त्री का न इत्थिगब्भो, जा. अट्ठ. 1.61.
इत्थिगम्ब पु., तत्प. स. स्त्रिीगल्म]. स्त्रियों का झण्ड, सेहि तृ. वि., ब. व. - वाणिजे इत्थिकुत्तहावभावविलासेहि नारियों का समूह - स्स ष. वि., ए. व. - इत्थिगुम्बस्स पलोभत्वा ... मनुस्सा अत्थि जा. अट्ठ.2.105; -- लीला पवरा, अच्चन्तं पियभाणिनी, जा. अट्ठ. 6.304; तदा तस्स स्त्री., तत्पु. स., स्त्री के सम्मोहक व्यवहार की लीला - महेसीह, इत्थिगुम्बस्स उत्तमा, अप. 2.250. य तृ. वि., ए. व. - इदानि नं अत्तनो इत्थिकुत्तलीलाय इत्थिघटा स्त्री., तत्पु. स. [स्त्रीघटा], स्त्रियों का समूह, ओलोकापेस्सामी ति, जा. अट्ठ. 1.415; - विलास पु., द्व. नारी-वर्ग - य प. वि., ए. व. - न मयह इत्थिघटाय स., स्त्री की मोहक अदा एवं साज-शृंगार - सेहि तृ. वि... अत्थो, जा. अट्ठ. 4.282; न सक्का मुसावादं कातुं न मह ब. व. - इत्थिकुत्तविलासेहि च पुरिसे पलोभेत्वा अत्तनो. इत्थिघटाय अत्थो, जा. अट्ठ. 4.283. ..., जा. अट्ठ. 2.105; सा ततो पट्ठाय मण्डितपसाधिता इत्थिघातक पु., [स्त्रीघातक], स्त्री की हत्या करने वाला, इत्थिकुत्तविलासेहि तं पलोभेसि, जा. अट्ठ. 4.196; - नारीघातक - का प्र. वि., ब. व. - थीघातकाति हासविलास पु., द्व. स., स्त्री का मनमोहक व्यवहार एवं इत्थिघातका, जा. अट्ठ. 5.394; थीघातका ये चिमे पारदारिका, आकर्षक हंसी - से द्वि. वि., ब. व. - यथाबलं जा. अट्ठ. 5.393. इत्थिकुत्तहासविलासे दस्सेत्वा .... जा. अट्ट, 6.65. इथिचित्त नपुं., तत्पु. स. [स्त्रीचित्त], स्त्री-विषयक चित्त इत्थिकुमारिका स्त्री., द्व. स., विवाहित स्त्री एवं कुमारी- या चिन्तन, नारीविषयक मानसिक अभिरुचि, स्त्री-विषयक कपटिग्गहण नपुं, तत्पु. स., विवाहित नारी एवं कुमारी अभिरति - त्तं द्वि. वि., ए. व. - इथिचित्तं विराजेत्वा को दान के रूप में ग्रहण करना अथवा उनका स्पर्श करना ब्रह्मलोकूपगा अहूति, पे. व. 386; इथिचित्तं विराजेत्वाति - णा प. वि., ए. व. - इत्थिकुमारिकपटिग्गहणा पटिविरतो इत्थिभावे चित्तं अज्झासयं अभिरुचिं विराजेत्वा इत्थिभावे समणो गोतमो, दी. नि. 1.5; इत्थिकुमारिकपटिग्गहणा विरत्तचित्ता हुत्वा, पे. व. अट्ठ. 146.
71.
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