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इतरीतर
306
इति
समागच्छन्तु, जा. अट्ट. 6.279; - रेन तृ. वि., ए. व. - यथा कथं इतरितरेन चापि, सुभासितं तञ्च सुणाथ सब्बे, वि. व. 1228; इतरितरेन चापीति इतरीतरञ्चापि, इदं यथापि इमिना योजेतब्ब, वि. व. अट्ठ. 283; इतरीतरेन तुस्सेय्य, थेरगा. 230; "इतरीतरेन तुस्सेया ति येन केनचि हीनेन वा पणीतेन वा यथालद्धेन पच्चयेन सन्तोस आपज्जेय्याति अत्थो, थेरगा. अट्ठ. 1.379; सन्तुस्समानो इतरीतरेन, सु. नि. 42; इतरीतरेनाति उच्चावचेन पच्चयेन, सु. नि. अट्ठ. 1.69; इतरीतरेन पिण्डपातेन इतरीतरपिण्डपातसन्तुट्ठिया च वण्णवादी ... इतरीतरेन सेनासनेन इतरीतरसेनासनसन्ततिया च वण्णवादी.... दी. नि. 3.179-180; - स्स ष. वि., ए. व. - असम्पदानेनितरीतरस्स, बालस्स मित्तानि कलीभवन्ति, जा. अट्ठ. 1.446; इतरीतरस्साति यस्स कस्सचि लामकालामकस्स, जा. अट्ठ. 1.447; - चीवरपिण्डपातसेनासनगिलानपच्चयभेसज्जपरिक्खार पु., तत्पु. स., चीवर, भिक्षा से प्राप्त भोजन, निवास स्थान एवं औषधि के मूलभूत साधारण आवश्यक उपकरण - रेन तृ. वि., ए. व. - इतरीतरचीवरपिण्डपातसेनासनगिलानप्पच्चयभेसज्ज परिक्खारेन पापिकं इच्छ पणिदहति, अ. नि. 1(2).165; - पच्चयसन्तोस पु., तत्पु. स., मामूली से मामूली भोगसाधनों से प्राप्त सन्तुष्टि, सामान्य उपकरणों से मिलने वाला सन्तोष का भाव - सेन तृ. वि., ए. व. - सन्तुट्ठोति इतरीतरपच्चयसन्तोसेन समन्नागतो, सो पनेस सन्तोसो द्वादसविधो होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प) 1(2).46; - पिण्डपातसन्तुढि स्त्री., तत्पु. स., साधारण प्रकार के भोजन से प्राप्त सन्तोषभाव - या ष. वि., ए. व. - भिक्खु सन्तुट्ठो होति इतरीतरेन पिण्डपातेन, इतरीतरपिण्डपातसन्तुट्ठिया च वण्णवादी, दी. नि. 3.179; - योग पु., व्याकरण के विशेष सन्दर्भ में प्रयुक्त [इतरेतरयोग], द्व. स. का एक प्रभेद, द्वन्द्व समास का वह प्रभेद जिसमें समास के विभिन्न घटक एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हों अथवा जिसके प्रत्येक अंग पृथक-भाव को सूचित करें - गो प्र. वि., ए. व. - इतरीतरयोगो समाहारो च समुच्चयस्सेव भेदो, सो एव हि अञमञ्जसापेक्खानं अवयवभेदानगतो इतरीतरयोगो यथा, देवदत्त यज्ञदत्तेहि इदं कारियं कत्तब्बन्ति, पद. 259(सिंहली); पाठा. इतरेतर; - सन्तोस पु., साधारण से
साधारण साधनों या सामग्रियों से सन्तुष्टि - सेन तृ. वि., ए. व. - इतरीतरसन्तोसेन सन्तहस्स आरद्धवीरियस्सेव समणसाधुताति अधिप्पायो, थेरगा. अट्ठ. 1.246; इतरीतरसन्तोसेन सन्तुट्ठो अनवज्जाय जीविकाय जीवतियेव, थेरगा. अट्ठ. 2.129; - सेनासनसन्तुट्ठि स्त्री, साधारण से साधारण वासस्थान से सन्तुष्टि - या ष. वि., ए. व. - भिक्खु सन्तुट्ठो होति इतरीतरेन सेनासनेन इतरीतरसेनासनसन्तुट्टिया च वण्णवादी, दी. नि. 3.180. इति' अ, Vइ + ति के योग से व्यु. [इति], प्रायः किसी के द्वारा कहे गए वचनों को वैसा का वैसा ही रख देने हेतु प्रयुक्त अव्यय, यह कथित वचन निम्न रूपों में हो सकता है, 1.क. शब्दस्वरूपद्योतक, शब्द के स्वरूप को दर्शाने हेतु प्रयुक्त – “सब्बो चन्ति' सब्बो ति इच्चेसो सद्दो सरे परे क्वचि चकारं पप्पोति, इति+ एतं = इच्चेतं... इतिस्स मुहुत्तम्पि, क. व्या. 19; अति-पत-इतीनं ति चं ... क्वची ति किं ... इतिस्स मुहुत्तम्पि, सद्द. 3.616; इतायं कोधरूपेन, मच्चुपासो गुहासयो, अ. नि. 2(2).235; इतायन्ति इति अयं, अ. नि. अट्ठ. 3.179; 1.ख. प्रातिपदिकार्थद्योतक अर्थात् अपने अर्थों को संकेतित करने हेतु प्रयुक्त प्रातिपदिक का संकेतक - मरणन्ति या तेसं तेसं सत्तानं तम्हा तम्हा सत्तनिकाया चुति चवनता भेदो ..., महानि. 89; 1.ग. वाक्यार्थद्योतक अर्थात् समूचे वाक्य का संकेतक - नागारमावसेति सब्बं घरावासपलिबोधं छिन्दित्वा ... एको चरेय्य ..., महानि. 89; 2.क. पालि अट्ठ. में इसे मुख्यतया पदपूरणार्थक अथवा निदर्शनार्थक निपा. कहा गया है - इतीति पदसन्धि पदसंसग्गो पदपारिपूरी अक्खरसमवायो व्यञ्जनसिलिट्ठता पदानुपुब्बतापेतं, महानि. 89; निदस्सने इति-त्थं च एवं अभि. प. 11583; 2.ख. क्रि. वि. के रूप में अत्यल्प प्रयोगों में, इस प्रकार से, इस रूप में, ऐसे - इतिहन्ति सीलेसु अकत्थमानो, सु. नि. 789; यो भिक्खु अनभिजान उत्तरिमनु स्सधम्म अत्तु पनायिक अलमरियाणदस्सनं समुदाचरेय्य – 'इति जानामि इति पस्सामी ति, पारा. 111; तस्मा हि धम्मेस करेय्य छन्द, इतिमोदमानो सुगतेन तादिना, थेरगा. 305; न इतिवादप्पमोक्खानिसंसत्थं, न 'इति म जनो जानातूति, अ. नि. 1(2).31; जोतितानीति अत्थो, इति इमस्मि सुत्ते चतूसुपि ठानेसु खीणासवस्स वचीसच्चमेव कथितन्ति, अ. नि. अट्ठ. 2.358; 2.ग. इति/ति + कथन, चिन्तन, अनुभव करने, सुनने एवं जानने आदि के अर्थों वाला क्रि.
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