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आरम्मणचतुक्क
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त्रि, तत्पु० स० [आलम्बनग्रहणक्षम], आलम्बन अथवा अपने विषय को ग्रहण करने में सक्षम या समर्थ - मानि नपुं०, प्र. वि., ब. व. - सत्तानं इन्द्रियानि आरम्मणगहणक्खमानि होन्ति, विसुद्धि 2.85; आरम्मणगहणक्खमानीति रूपादिआरम्मणं गहेतुं समत्थानि , विसुद्धि. महाटी. 2.123; - लक्खण त्रि०, ब० स०, वह, जिसका लक्षण अपने आलम्बन अथवा अपने विषय का ग्रहण कर लेना हो, आलम्बन के ग्रहण के लक्षण वाला - पु०, प्र. वि., ए. व. लोभो आरम्मणग्गहणलक्खणो, विसुद्धि. 2.95; आरम्मग्गहणं "मम इदन्ति तण्हाभिनिवेसवसेन अभिनिविस्स आरम्मणस्स अविस्सज्जनं, न आरम्मणकरणमत्तं, विसुद्धि ० महाटी. 2.139. आरम्मणचतुक्क' नपुं०, आलम्बनों का चतुष्टय, आलम्बनों की चौकड़ी क्कं प्र. वि., ए. व. केवलञ्चेत्थ आरम्मणचतुक्कं आरम्मणदुकं होति, ध. स. अट्ठ. 234. आरम्मणचतुक्क नपुं. व्य. सं., ध. स. अट्ठ के एक अंश का शीर्षक, ध. स. अट्ठ. 229 - वण्णना स्त्री०, ध. स. मू. टी. के एक खण्ड का शीर्षक, ध. स. मू. टी. 100. आरम्मणचित्त नपुं., कर्म. स. चित्र-विचित्र आलम्बन, तरह तरह के आलम्बन - त्तानि प्र. वि., ब. व. - चित्रानीति आरम्मणचित्तानि, स. नि. अट्ठ. 1.57. आरम्मणचित्तता स्त्री०, भाव, आलम्बन पर चित्त को लगा देने की अवस्था - य तृ. वि., ए. व. - अपिच चित्तं नामेतं सहजातं सहजातधम्मचित्तताय .... आरम्मणचित्तताय लिङ्गनानत्तसञ्ञानानत्तवोहारनानत्तादीनं अनेकविधानं चित्तानं वेदितब्ब, स० नि० अट्ठ. 2.288.
आरम्मण पु०, तत्पु० स० [आलम्बनार्थ], आलम्बन का अर्थ अथवा अभिप्राय ट्ठो प्र. वि., ए. व. आरम्मणट्टो अभिज्ञय्यो, पटि. म. 15; तस्स निब्बानारम्मणस्स आलम्बनभावेन आरम्मणट्टो, पटि. म. अट्ठ 1.82 - द्वं द्वि० वि., ए. व. – आरम्मणद्वं बुज्झन्तीति – बोज्झङ्गा, पटि. म. 295; – द्वेन तृ॰ वि॰, ए. व. - समथविपस्सनं युगनद्धं भावेति, आरम्मणट्टेन, पटि. म. 277; आरम्मणट्टेनाति आलम्बनट्टेन, आरम्मणवसेनाति अत्थो, पटि० म० अट्ठ. 2.175. आरम्मणद्विति स्त्री, तत्पु० स० [आलम्बनस्थिति], आलम्बन (विषय) की स्थिरता, आलम्बन का टिकाऊपन - ति प्र. वि., ए. व. - एकमेकस्स चेतेति च पकप्पेति च विञ्ञाणस्स ठिति या होति, सा च ठिति द्विधा आरम्मणद्विति च आहारद्विति च, पेटको. 306.
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आरम्मणता स्त्री०, आरम्मण का भाव, आलम्बन-भाव, चित्त एवं इन्द्रियों का आलम्बन या गोचर होना, केवल स. उ. प. के रूप में प्रयुक्त, ता प्र. वि., ए. व. - आरम्मणविभागे अत्तनो सन्तानसम्बन्धं हेट्टिमसमापत्तिं आरम्भ पवत्तितो अज्झत्तारम्मणता वेदितब्बा, ध. स. अट्ट. 439; - तं द्वि. वि., ए. व. - एवं पजानने अप्प-माणारम्मणतं भवे, अभि. अव. 1158; - यष. वि., ए. व. तहि यथा बुद्धेन भगवता देसितं, तथा अनोदिस्सकफरणवसेन अपरिमाणसत्तारम्मणताय अप्पमाणं, थेरगा. अट्ट. 2.204. आरम्मणत्त नपुं,, आरम्मण का भाव. [आलम्बनत्त्व], उपरिवत्
ताप.वि., ए. व. - आरूप्पज्झानस्स आरम्मणत्ता, विसुद्धि. 1.321; भयस्स आरम्मणत्ता, म. नि. अट्ठ. ( मू०प.) 1 (1).127; स. उ. प. रूप में, अकुप्पा.. आरम्मणत्तिक नपुं,, तत्पु० स०, आलम्बनों अथवा गोचर-भूत रूप आदि धर्मों की तिकड़ी, आलम्बनों का त्रिक - का प्र० वि. ब. व. - आरम्मणत्तिका वुत्ता, ये चत्तारो महेसिना, विसुद्धि. 2.57; चत्तारो हि आरम्मणत्तिका महेसिना वुत्ता, तदे.; - केसु सप्त. वि०, ब० व. - आरम्मत्तिके प
चक्खुसोत... इन्द्रियानि सन्धाय वृत्तं विभ, अट्ठ. 120; स. उ. प. के रूप में परित्ता, के अन्त. द्रष्ट.. आरम्मणदायक त्रि, किसी भी धर्म को आलम्बन अथवा आश्रय के रूप में प्रस्तुत करने वाला - कानं पु०, च. / ष. वि., ब. व. - लद्धा च नं अस्सादेन्ति, आरम्मणदायकानञ्च चित्तकारादीनं सक्कारं करोन्ति, म. नि. अट्ट. ( मू०प०) 1(1).229.
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आरम्मणदुक नपुं, तत्पु० स०, दो आलम्बनों की एक इकाई, आलम्बनों का दुक्का - कं प्र. वि., ए. व. केवलञ्चेत्थ आरम्मणचतुक्कं आरम्मणदुकं होति, ध. स. अट्ट. 234; पञ्चवीसति आरम्मणानारम्मणउपपरिक्खणवसेन पवत्तता आरम्मणदुका नाम, ध. स. अट्ठ. 337. आरम्मणदुब्बलता स्त्री० तत्पु० स० [आलम्बनदुर्बलता ], आलम्बनों की दुर्बलता कस्मा एवं होति ?
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आरम्मणधम्म
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आरम्मणदुब्बलताय, ध. स. अट्ठ. 307. आरम्मणधम्म पु०, कर्म. स. [ आलम्बनधर्म], आलम्बनभूत धर्म, आलम्बन के रूप में विद्यमान वस्तु अथवा अवस्था - म्मा प्र. वि., ब. व. - धम्माति आरम्मणधम्मा, स० नि० अ० 1.159; विचिकिच्छद्वानीया धम्माति विचिकिच्छाय आरम्मणधम्मा, स० नि० अट्ठ. 3.177; ओघनिया, ओघानं आरम्मणधम्मा एव वेदितब्बा, ध. स. अट्ठ. 95; - म्मानं ष.