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आलोककरण
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आलोकनविलोकन
पआआलोकपआओभासपआपज्जोतानं करणेन निब्बत्तनेन आलोकादिकरातिपि, इतिवु अट्ट, 290; तयो हि आलोककरा, लोके लोकतमोनुदा, अप. 1.276. आलोककरण' त्रि., तत्पु. स. [आलोककरण], प्रकाश देने वाला, आभा अथवा दीप्ति से परिपूर्ण, प्रकाश का पुञ्ज -- णो पु.. प्र. वि., ए. व. - मणि निब्बत्तते मव्ह, आलोककरणो मम, अप. 2.47; - णा ब. व. - आलोककरणा धीरा, .... इतिवु. 77; - णं नपुं॰, प्र. वि., ए. व. - तावता
बुद्धचेतियं, ... आलोककरणं तदा, अप. 1.68. आलोककरण नपुं.. [आलोककरण], प्रकाश का उदय,
आभा की उत्पत्ति, प्रकाश को उत्पन्न करना - णेन तृ. वि., ए. व. - आलोककरणेन “पभङ्करोति लद्धनामो सूरियो ..... उदेति, उदा. अट्ठ. 292. आलोककसिण नपुं, कर्म स./तत्पु. स. [आलोककृ त्स्न], शा. अ., सम्पूर्णता अथवा समग्रता के साथ आलोक अथवा प्रकाश, ला. अ., ध्यान-प्रक्रिया के क्रम में चित्त के आलम्बन के रूप में उल्लिखित चालीस कम्मट्ठानों की सूची में प्रथम दस कम्मट्ठान परिगणित हैं, इन्हें दस कसिण कहा गया, आलोककसिण इन्हीं में एक के रूप में निर्दिष्ट है, चन्द्र, सूर्य आदि का वह अनन्त एवं समग्र आलोक जो ध्यानक्रम में चित्त की एकाग्रता का आलम्बन बनाया जाता है - णं' प्र. वि., ए. व. - तत्थ पथवीकसिणं, आपोकसिणं, तेजोकसिणं, वायोकसिणं, नीलकसिणं, पीतकसिणं, लोहितकसिणं, ओदातकसिणं, आलोककसिणं परिच्छिन्नाकासकसिणन्ति, इमे दस कसिणा, विसुद्धि. 1.108; अभि. ध. स. 62; ... चन्दादिआलोको आलोककसिणन्ति दट्ठब्बं, अभि. ध. वि. 225; - णे सप्त. वि., ए. व. - आलोकस्सपि आलोककसिणे परिकम्म कत्वा उप्पन्नज्झानस्सापीति सहारम्मणस्स झानस्स एतं । नाम, स. नि. अट्ठ. 2.118. आलोककसिणचतुत्थ नपुं, कर्म. सं., आलम्बन या कम्मट्ठान के रूप में गृहीत आलोककसिण से युक्त चतुर्थ ध्यान, स. उ. प. के रूप में - आकासकसिणआलोककसिणचतत्थानि पन विपस्सनायपि अभिज्ञानम्पि वट्टस्सापि पादकानि होन्ति. ध. स. अट्ठ. 431. आलोककिच्च नपुं., तत्पु. स. [आलोककृत्य], प्रकाश किए जाने का काम, उजाला करने की आवश्यकता – च्चं प्र. वि., ए. व. - आलोकढ़ाने आलोककिच्चं नत्थि. स. नि. अट्ठ. 1.195.
आलोकजात त्रि., प्रकाशमय, आलोकमय, जगमगाहट
से भरपूर - ता स्त्री, प्र. वि., ए. व. - आलोकजाता विय मे, आनन्द, एसा दिसा, उदा. 963; आलोकजाता वियाति सजातालोका विय, उदा. अट्ठ. 149; - तं नपुं॰, प्र. वि., ए. व. - इदं अन्धकारहानं आलोकजातं होतूति वा... आवज्जित्वा, विसुद्धि. 2.18; आलोकजातन्ति
आलोकभूतं, जातालोकं वा, विसुद्धि. महाटी. 2.23. आलोकट्ठान नपुं., तत्पु. स. [आलोकस्थान], प्रकाश से भरा हुआ स्थान, जगमगाहट से भरा हुआ क्षेत्र - ने सप्त. वि., ए. व. - नीलकसिणं ताव समापज्जित्वा सब्बत्थ आलोकट्ठाने अन्धकारं फरि स. नि. अट्ठ. 1.195; आलोकट्ठाने आलोककिच्चं नत्थि, स. नि. अट्ठ. 1.195. आलोकद त्रि., [आलोकद], प्रकाश देने वाला, ज्ञान की
आंख देने वाला - दा पु.. प्र. वि., ब. व. - ... तथागतानं... आलोकदा चक्खुददा भवन्ति, थेरगा. 3; यतो देसनाविलासेन सत्तानं आणमयं आलोकं देन्तीति आलोकदा,
थेरगा. अट्ठ. 1.35. . आलोकदस्सन नपुं.. तत्पु. स. [आलोकदर्शन], प्रकाश का दर्शन, ज्ञान के आलोक का दर्शन - यथावालोकदस्सनो, थेरगा. 422; ... सस्सतुच्छेदग्गाहानं विधमनेन याथावतो आलोकदस्सनो तक्करस्स लोकुत्तरञाणालोकस्स दस्सनो,
थेरगा. अट्ट. 2.91. आलोकधातु स्त्री., धातु के रूप में आलोक या प्रभा, मूलतत्व के रूप में आलोक - तु प्र. वि., ए. व. -
आभाधातूति आलोकधातु, स. नि. अट्ठ. 2.118. आलोकन नपुं.. आ + Vलुक से व्यु., क्रि. ना. [आलोकन]. किसी पर दृष्टिपात करना, आगे की ओर या सामने की ओर देखना, आन्तरिक अवलोकन - नं प्र. वि., ए. व. -- आलोकनन्ति पुरतो पेक्खनं, सद्द. 2.520; आलोकनं च निज्झानं इक्खनं दस्सनं प्यथ, अभि. प. 775; पटिक्कमे पवत्तरूपं आलोकनं, विसुद्धि. 2.255; आमुखं लोकनं
आलोकन, विसुद्धि. महाटी. 2.383. आलोकनविलोकन नपुं, द्व. स. [आलोकनविलोकन],
शा. अ., सामने की ओर देखना तथा चारों ओर या इधर उधर देखना, ला. अ., आध्यात्मिक सर्वेक्षण, अपने अन्दर गहराई तक जाकर अन्वेषण, गम्भीर सोच विचार - नं प्र. वि., ए. व. - पञ्चन्न खन्धानं समवाये आलोकनविलोकनं पञआयति, दी. नि. अट्ठ. 1.159;
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