Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 330
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org इणदायक 303 इणसोधन जा. अट्ठ. 4.380; यानि तानि कसिवाणिज्जानि इणदानं इणमुत्त त्रि., तत्पु. स. [ऋणमुक्त], ऋण से मुक्त - स्स उञ्छाचरियाति आजीवमुखानि, जा. अट्ठ. 4.381; कीदिसंपु., ष. वि., ए. व. - इणमुत्तस्स पुरिसस्स इणस्सामिके ते इणदानं, जा. अट्ठ.4.249; 2. ऋण देकर जुटाया गया दिस्वा नेव भयं न छम्भितत्तं होति, दी. नि. अट्ठ. 1.174. धन, ऋण देने में लगाया गया धन - णं द्वि. वि., ए. व. इणमूल नपुं., तत्पु. स. [ऋणमूल]. उधार के रूप में प्राप्त - निधिञ्च इणदानञ्च, न करे परपत्तिया, जा. अट्ठ. पूंजी, ऋण के रूप में गृहीत मूलधन, ऋण, - लं द्वि. 5.111; इणदानन्ति इणवसेन संयोजितधनं, जा. अट्ठ. वि., ए. व. - ताव मातापितूपट्टानेन पोराणं इणमूलं 7.198. विसोधयमाना, पुत्तदारसङ्गहेन नवं इणमूलं पयोजयमाना इणदायक त्रि., [ऋणदायिन्], महाजन, ऋण देने वाला ...खु. पा. अट्ठ. 125; -- लानि ब. व. - सो यानि च साहूकार - को पु., प्र. वि., ए. व. - आति सालोहितो पोराणानि इणमूलानि, तानि च व्यन्तिं करेय्य. .... दी. नि. 1.63. किन्नु उदाहु इणदायको, रस. 1.44(रो.). इणमोक्ख पु., तत्पु. स. [ऋणमोक्ष], ऋण से मुक्ति, ऋण इणपण्ण नपुं., तत्पु. स. [ऋणपर्ण], ऋणपत्र, रुक्का, की अदायगी - क्खो प्र. वि., ए. व. - कीदिसं ते वचनपत्र, कर्ज को दर्ज करने वाला पत्र - ण्णं प्र. वि., इणदानं, इणमोक्खो च कीदिसो, जा. अट्ठ. 4.249; ‘एवं मे ए. व. - इदं तुम्हाकं इणपण्णं, जा. अट्ठ. 1.225; - इणमोक्खो भविस्सती ति पलायित्वा गङ्गायं पति, चरिया. ण्णानि ब. व. - सो इणायिके आह- तुम्हाकं इणपण्णानि अट्ठ. 136. गहेत्वा आगच्छथ, जा. अट्ट. 4.228. इणवड्डि स्त्री., तत्पु. स. [ऋणवृद्धि], ऋण पर देय सूद इणपरिभोग पु., तत्पु. स. [ऋणपरिभोग], शा. अ., ऋण अथवा ब्याज, ऋण के मूलधन में वृद्धि - या सप्त. वि., के रूप में प्रयोग, ऋण का उपभोग, ला. अ., चार प्रकार ए. व. - वड्डियाति इणवड्डिया, थेरीगा. अट्ठ. 294. के परिभोगों में से एक, प्रत्यवेक्षण अथवा देशकाल का इणवसेन तृ. वि., ए. व., क्रि. वि., ऋण के कारण, ऋण विचार किए बिना ही चीवर, पिण्डपात, निवासस्थान एवं के रूप में - धारयतेति इणवसेन गण्हाति, सद्द. 3.695. औषधि का उपभोग-गो प्र. वि., ए. व. - थेय्यपरिभोगो, इणसदिस त्रि., तत्पु. स. [ऋणसदृश]. ऋण जैसा, ऋण इणपरिभोगो, दायज्जपरिभोगो, सामिपरिभोगोति... सीलवतो के समान - सं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - यथा इणन्तिआदीसु अप्पच्चवेक्खितपरिभोगो "इणपरिभोगो नाम, पारा. अट्ट. इणसदिसंबन्धनसदिसं धनजानिसदिसं. अ. नि. अट्ट. 2.247; सीलवतो पन अपच्चवेक्षणपरिभोगो इणपरिभोगो 3.342. नाम, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2244; - स्स ष. वि., ए. व. इणसाधक पु., [ऋणसाधक], ऋण को वसूल करने वाला, - सो इणपरिभोगस्स पच्चनीकत्ता आणण्यपरिभोगो वा ऋण-समाहर्ता -- स्स ष. वि., ए. व. - इणसाधकस्स होति, विसुद्धि. 1.41; - द्वान नपुं., तत्पु. स. तीणि अङ्गानि गहेतब्बानि, मि. प. 331. [ऋणपरिभोगस्थान], ऋण के समान परिक्खारों का उपभोग इणसामिक पु., ऋणदाता, महाजन, उत्तमर्ण - को प्र. करने वाले की जगह, ऋण-उपभोक्ता का स्थान - ने वि., ए. व. - इणसामिको च तं परियेसन्तो तत्थ गच्छति, सप्त. वि., ए. व. - सचस्स अपच्चवेक्खतोव अरुण महाव. अट्ठ. 267; - का ब. व. - इणसामिका सुत्वा उग्गच्छति, इणपरिभोगट्ठाने तिट्ठति, विसुद्धि. 1.40. पलातट्ठानेपि नो न मुच्चिस्सति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) इणपलिबोध पु., तत्पु. स., ऋणग्रस्त होने के फलस्वरूप 2.129; - के द्वि. वि., ब. व. - सो इणसामिके दिस्वापि उत्पन्न बाधा, संकट अथवा विपत्ति -धो प्र. वि., ए. व. सचे इच्छति, आसना उट्ठहति, दी. नि. अट्ठ. 1.174; - - इणपलिबोधो, महाराजाति, स. नि. अट्ठ. 1.213; - कानं ष. वि., ब. व. - पस्सन्तेन पन आनेत्वा इणसामिकानं धेन तृ. वि., ए. व. - 'सहेतुको सत्तो इणपलिबोधेन न दस्सेतब्बो, महाव. अट्ठ. 267. पब्बजतीति, महाव. अट्ठ. 267. इणसुत्त नपुं., अ. नि. के एक सुत्त का शीर्षक, अ. नि. इणपीळित त्रि, तत्पु. स. [ऋणपीड़ित], ऋणग्रस्त होने के 2(2).65-68. कारण पीड़ित अथवा कष्ट में पड़ा हुआ - ता पु., प्र. वि., इणसोधन नपुं, तत्पु. स. [ऋणशोधन], ऋण का भुगतान, ब. व. - ते इणट्टा नाम, इणपीळिताति अत्थो, स. नि. अट्ठ. कर्ज़ की अदायगी, स. प. के अन्त., - लद्धमूलं मह 2.267. इणसोधनमत्तमेव जातं, जा. अठ्ठ 1.308. For Private and Personal Use Only

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