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आवेळ
1.96 सङ्घातत्रि, अवतंसक (कनबाली) कहा जाने वाला (गहना) तेहि पु. तृ. वि. ब. व. आवेळिनेति आवेळसातेहि कण्णालङ्कारेहि युते जा. अनु. 5.405. आवेळ' / आवेल पु. व्य. सं. रेवत बुद्ध के एक प्रासाद का नाम - ळो प्र. वि., ए. व. सुदस्सनो रतनग्धि, आवेळो च विभूसितो, बु. वं. 319. आवेळवती स्त्री आवेळ + वन्तु से व्यु कर्णाभूषण से युक्त, स. उ. प. में, रतनमयपुप्फा - रत्नों के पुष्पों से निर्मित कर्णाभूषण वाली, प्र. वि. ए. व. आवेळिनीति
रतनमयपुप्फावेळवती, वि. व. अ. 103. आवेळावेळ त्रि., अनेक हारों अथवा मालाओं जैसा, अनेक हारों अथवा मालाओं से परिपूर्ण - ळा स्त्री. वि. वि., ब. आवेळावेळा यमकयमका छब्बण्णघनबुद्धरस्मियो
व.
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विस्सज्जेन्तो... जा. अट्ठ 1.478; आवेळावेळाभूता यमकयमकभूता घनबुद्धररिगयो विस्सज्जेन्तं... जा. अड
1.425.
आवेळी त्रि. हारयुक्त, कर्णाभूषण युक्त हारों अथवा कर्णाभूषणों को धारण करने वाला - ने पु०, प्र. वि., ब. व. आवेळिनेति आवेळसङ्घातिहि कण्णालङ्कारेहि युत्तो, जा. अट्ठ. 5.405; आवेळिने सद्दगमे असङ्गिते, जा. अट्ठ. 5. 404; लिनियो स्त्री० प्र० वि०, ब० व. आवेळिनियो पदुमुप्पलच्छदा, अलङ्कृता चन्दनसारवासिता, वि. व. 1029.
आवेल्लितसिङ्गिक क्रि ब. स. [आवेल्लित शृङ्गक]. कुछ कुछ वक्र या टेढ़े तिरछे सींगों वाला- को पु०, प्र. वि. ए. व. - आवेल्लितसिहिको हि मेण्डो, जा. अट्ठ. 6.
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182.
आवेसन नपुं. आ + विश के प्रेर. से व्यु [ आवेशन ]. शिल्पशाला, कारखाना - नं. प्र. वि. ए. व. - आवेसनं सियावेसे सिप्पसालाघरे व अभि. प. 906; आवेसनं सिप्पसाला, अभि. प॰ 212; घटिकारस्स कुम्भकारस्स आवेसनं सब्बं तेमासं आकासच्छदनं अट्ठासि, मि. प. 210; नं दि. वि. ए. व. - गच्छथ कुम्भकारस्स आवेसनं उत्तिर्ण करोयाति म. नि. 2.254 - ने सप्त वि. ए. व. नतिथ.. कुम्भकाररस निवेसने तिणं, अत्थि च ख्वास्स आवेसने तिणच्छदनन्ति .... म. नि. 2.253-254; विलो. निवेसन. आवेसनवित्थक नपुं., सिलने के उपकरणों को रखने हेतु प्रयुक्त लघु पात्र, सुई धागा आदि को रखने के लिए छोटी
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आसंसति
डिबिया कं द्वि. वि. ए. व. - सूचियोपि सत्थकापि पटिग्गहापि नस्सन्ति अनुजानामि आवेसनवित्थक न्ति, चूळव. 235; आवेसनवित्थकं नाम यं किञ्चि पाटिचङ्कोटकादि, चूळव. अट्ठ. 51.
आवेसिक पु. [आवेशिक] अतिथि अभ्यागत, घर में अचानक आ पहुंचा मेहमान, पाहुन पुमे अतिथि आगन्तु पाहुना वेसिकाप्यथ, अभि. प. 424.
आस' पु. असु ( फेंकना) से व्यु. (आस), प्रक्षेपण, फेंकना, केवल स. उ. प. के रूप में ही प्रयुक्त, इस्सा.. (वाण का प्रक्षेपण) के अन्त., द्रष्ट. आगे.
आस' स. उ. प. में आसा का विपरिवर्तित स्वरूप निरा ( आशारहित), विगता., ( आशा या कामना से मुक्त) के अन्त., द्रष्ट. (आगे).
आस' अस का परोक्ष भूत. प्र. पु. ए. व. [आस ] हुआ था, केवल इतिहा. (इति + हि + आस, ऐसा घटित हुआ था) के उ. प. के रूप में प्रयुक्त, इतिहा के अन्त दृष्ट. (आगे).
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आस' पु.. अस (भोजन करना) से व्यु [आश], भोजन, केवल स. उ. प. के रूप में ही प्रयुक्त, पातरा. [ प्रातःकाल का भोजन, नाश्ता ], सायमा [ सायंकालीन भोजन] आदि के अन्त द्रष्ट. (आगे).
आसंस
आ + संस से व्यु. किसी (वस्तु) की कामना करने वाला, इच्छुक, आशा रखने वाला - सो पु०, प्र. वि., ए. व. सोहि अरहत्तं आसंसति पत्थेतीति आसंसो, प. प. अड. 57; निरासो आसंसो विगतासो अ. नि. 1 (1) 131 प. प. 109; आसंसोति आसंसमानो पत्थयमानो, 31. f. 31. 2.78.
आसंसति / आसिंसति / आसीसति आ + √संस का वर्त प्र. पु. ए. व. [आशंसते] कामना करता है. आशा करता है- आसिसि इच्छायं आपुब्बो सिसि इच्छायं वत्तति, आसिंसति आसिंसत एव पुरिसो सद. 2448; सो हि अरहतं आसंसति पत्थेतीति आसंसो, प. प. अट्ठ. 57; नेव इमं लोकं आसीसति न परलोक पेटको. 304 यावतासीसती पोसो तावदेव पवीणति, जा. अट्ठ. 3.342; तत्थ आसीसतेवाति आसीसतियेव पत्थेतियेव, जा. अट्ठ 3.220; "नासीसते लोकमिमं परं लोकञ्चाति, पेटको. 304; परं लोकं नासीसति पररूपवेदनासञ्ञासङ्घारविञ्ञणं, इमं लोकं नासीसति छ अज्झत्तिकानि आयतनानि, महानि० 43; - न्ति ब. व. आसीसन्ति थोमयन्ति अभिजप्पन्ति जुहन्ति, सु. नि. 1052;