Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 280
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसनप्पमान 253 आसन्दि तुम्हं मालागन्धादीसु पत्ति आसनपूजाय पत्ति पिण्डपाते पत्ति .... दी. नि. अट्ठ. 3.137. आसनप्पमान त्रि., ब. स. एक आसन अथवा वेदिका के आकार वाला, एक वेदिका के बराबर लम्बा-चौड़ा - नं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - आसनप्पमानं निमित्तं उदपादि, विसुद्धि. 1.166. आसनसन्थविक पु., व्य. सं., एक स्थविर का नाम – को प्र. वि., ए. व. - इत्थं सुदं आयस्मा आसनसन्थविको थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति, अप. 1.275. आसनसाला स्त्री., तत्पु. स. [आसनशाला], बैठने अथवा विश्राम करने के लिए निर्मित भवन, सभा भवन - लं द्वि. वि., ए. व. - भिक्खुनुपस्सयं अन्तरारामं आसनसालं तित्थिपसेय्यञ्च, कया. अट्ठ. 204; आसनसालं सम्मज्जन्तेन वत्तं जानितब्बं, पाचि. अट्ठ. 34; पिण्डाय चरित्वा विहारं वा आसनसालं वा गन्त्वा , पाचि. अट्ठ. 100; - तो प. वि., ए. व. - आसनसालतो पत्तं आहरित्चा, महाव, अट्ठ. 400; - यं सप्त. वि., ए. व. – तेसुं तेसुंगामेसु आसनसालायं वा न तं आसनमत्थि, दी. नि. अट्ठ. 1.154; आसानसालायं वा गेहे वा निसीदापेत्वा, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).266; - य ष. वि., ए. व. - आसनसालाय सम्मज्जन उपलेपनादीनि करोन्ता, अ. नि. अट्ठ. 2.135; स. उ. प. के रूप में, अम्बलकोट्ठका., जिण्णा., महेजा. के अन्त. द्रष्ट... आसनामिहार पु., तत्पु. स., आसन पर बैठने हेतु निवेदन -रं द्वि. वि., ए. व. - आसनाभिहारं सादियति, चूळव. 50; आसनाभिहारं अरहति, जा. अट्ठ. 1.90. आसनारह त्रि., तत्पु. स. [आसनाह], क. आसन प्रदान । करने योग्य (सम्माननीय व्यक्ति) - हो पु., प्र. वि., ए. व. - अस्थि पुग्गलो आसनारहो, परि. 250; - स्स पु., ष. वि., ए. व. - आसनारहस्स न आसनं देति, म. नि. 3.253; ख. बैठने के लिए उपयुक्त (आसन)- हं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - आसनारहं धम्मासनं पापेत्वा, पारा. अट्ठ. 1.9; आसनारहन्ति निसीदनारह, सारत्थ. टी. 1.52. आसनिक त्रि., केवल स. उ. प. में आसनासनिक रूप में प्रयुक्त, आसन पर आसीन, आसन को ग्रहण किया हुआ, अग्गासना., असमानासना०, एकासना., समानासना. के अन्त. द्रष्ट.. आसनिय त्रि., थेरों के नामों के उपनाम के रूप में उ. प. में प्रयुक्त, आसन वाला, एका., कुसुमा., पुष्फा. जैसे थेरनामों के अन्त. द्रष्ट.. आसनीय त्रि., Vआस का सं. कृ., बैठने या बैठाने योग्य - यं नपुं, प्र. वि., ए. व. - भावकम्मेसु तब्बानीया ..., आसनीयं, क. व्या. 542. आसनुपट्ठाहक पु., व्य. सं., एक स्थविर का नाम, - रो प्र. वि., ए. व. - इत्थं सुदं आयस्मा आसनुपट्ठाहको थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति, अप. 1.145. आसनूदक नपुं., द्व. स. [आसनोदक], (आए हुए अतिथि को सम्मान के रूप में दिया जाने वाला) आसन एवं जल - कं द्वि. वि., ए. व. - न तादिसी अरहति आसनूदक, जा. अट्ठ. 5.395; - दायी त्रि., आसन एवं जल प्रदान करने वाला - नं पु, रा. वि., ब. क. - आसनूदकदायीनन्ति अभागतानं आसनञ्च उदकञ्च दानसीलानं जा. अठ्ठ. 4.394. आसनूपगत त्रि., तत्पु. स. [आसनोपगत], आसन पर बैठा हुआ, आसीन - तो पु., प्र. वि., ए. व. - उपद्वितो रुक्खमूलस्मिं आसनूपगतो मुनि, सु. नि. 713. आसनोदक नपुं., द्व. स. [आसनोदक], आसन एवं जल - केन तृ. वि., ए. व. - अब्भागते च आसनोदकेन पटिपूजेस्सामा ति, अ. नि. 2(1).33; - दानादि त्रि., आसन एवं जल का प्रदान आदि, नपुं, प्र. वि., ए. व. - आसनोदकदानादि वेय्यावच्चन्ति सञ्जितं, सद्धम्मो. 222. आसन्दि/आसन्दी स्त्री., आ + /सद से व्यु. [आसन्दी, आसद्यते, अस्याम् इति], 1. तकियेदार आरामकुर्सी, आराम के साथ बैठने हेतु प्रयोग में लाया जाने वाला चार पायों वाला बड़ा आसन अथवा चार कोनों वाला विशाल पीठ, 2. विनय के सन्दर्भ में विशेष अर्थ, भिक्षु के लिए बुद्ध द्वारा वर्जित ऊंचे आसनों की सूची में एक, आठ सुगत अङ्कुलों की माप से अधिक ऊंचाई वाला आसन या पलंग, प्र. वि., ए. व. - दुतिये आसन्दी नाम अतिक्कन्तप्पमाणा वुच्चति, कसा अट्ठ. 318; आसन्दीआदीसु आसन्दीति पमाणातिक्कन्तासन, महाव. अट्ठ. 347; - न्दिं द्वि. वि., ए. व. - आसन्दिं सकतं कत्वा, अप. 1.415: आसन्दि कुटिकं कत्वा, ओगयह अञ्जनं वनं. थेरगा. 55: आसन्दीनाम दीघपादकं चतुरस्सपीठं, आयतं चतुरस्सम्पि अत्थियेव, यत्थ निसीदितुमेव सक्का, न निप्पज्जितं तं आसन्दि कुटिक कत्वा ..., थेरगा. अट्ठ. 1.136; - या ष. वि., ए. व. - आसन्दिया पादे छिन्दित्वा ... परिभुञ्जन्तिया, ... अनापत्ति, कङ्खा. अट्ठ. 318; "अनुजानामि, भिक्खवे, आसन्दिया पादे छिन्दित्वा परिभुञ्जितुं.... चूळव. 299; पादे आसन्दिया छेत्वा, विन. वि. 2285; 3. अर्थी - पञ्चम त्रि., ब. स., For Private and Personal Use Only

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