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आसन्नट्ठान
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आसन्नवितक्कविचारपच्चत्थिक
आसन्नचुतिका इदानि चविस्सन्ति ते चवमाना ..., पारा. अट्ठ. 1.123. आसन्नट्ठान नपुं., कर्म. स. [आसन्नस्थान), सीमावर्ती स्थान – ने सप्त. वि., ए. व. - तस्स विजिते आसन्नहाने एकस्मिं सरतीरे विस्सज्जापेसिध. प. अट्ठ. 1.112; पुरिमपस्से विज्झितुकामो विय आसन्नट्ठानेयेव ठितकण्टको, स. नि.
अट्ठ. 3.94. आसन्नतक्कचारारि त्रि., निकट में स्थित वितर्क एवं विचार नामक ध्यानाङ्गों से मुक्त - रि स्त्री., प्र. वि., ए. व. -
आसन्नतक्कचारारि समापत्ति अयं इति, अभि. अव. 947. आसन्नदूर त्रि., निकटवर्ती एवं दूर में स्थित - वसेन त वि., क्रि. वि., समीपता एवं दूरी के कारण से -
आसन्नदूरवसेन द्वे द्वे पच्चत्थिका, विसुद्धि. 1.309. आसन्ननीवरणपच्चत्थिक त्रि., ब. स., समीपस्थ नीवरणों का प्रतिपक्षीभूत - का स्त्री., प्र. वि., ए. व.- अयं समापति आसन्ननीवरणपच्चत्थिका, विसद्धि. 1.149. आसन्नपच्चक्ख त्रि., द्व. स., निकट में एवं आंखों के
सामने स्थित - वचन नपुं., समीपता एवं प्रत्यक्षता के अर्थों को कहने वाला सङ्केतक सर्वनाम - नं प्र. वि., ए. व. - आसन्नपच्चक्खवचनं, उदा. अट्ठ. 170. आसन्नपच्चत्थिक त्रि., ब. स. [आसन्नप्रत्यर्थिक], निकटस्थ शत्रु जैसा, पास में मौजूद अहितकारी विरोधी जैसा - को पु., प्र. वि., ए. व. - ... गुणदस्सनसभागताय रागो आसन्नपच्चत्थिको, विसुद्धि. 1.309; तस्मा मित्तमुखसपत्तो विय तुल्याकारेन दूसनतो रागो मेत्ताय आसन्नपच्चत्थिको, विसुद्धि. महाटी. 1.359; - केन पु., तृ. वि., ए. व. - आसन्नपच्चत्थिकेन रागेन अनाकडनियं, थेरगा. अट्ठ. 2.204; - का स्त्री., प्र. वि., ए. व. - उपेक्खाब्रह्मविहारस्स... अानपेक्खा... आसन्नपच्चत्थिका, विसुद्धि. 1.310. आसन्नपठमारूपचित्तपच्चत्थिक त्रि., निकटस्थ शत्रु के रूप में प्रथम आरूप्यचित्त से युक्त - त्थिकं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - आसन्नपठमारुप्प चित्तपच्चत्थिकन्ति च, अभि. अव. 1008. आसन्नपदेस पु., कर्म. स. [आसन्नप्रदेश], समीपवर्ती प्रदेश, निकट में स्थित क्षेत्र - सो प्र. वि., ए. व. - यथागामादीनं आसन्नपदेसो गामूपचारो नगरूपचारोति वुच्चति, विसुद्धि. 1.134; - से सप्त. वि., ए. व. -
आसन्नपदेसे अनुगतवेधं, स. नि. अट्ठ. 3.114; मातापितून आसन्नपदेसे निसिन्न, चरिया. अट्ठ. 194. आसन्नपीतिपच्चत्थिक त्रि., समीपवर्ती शत्रु के रूप में प्रीति को रखने वाला, वह, जिसमें प्रीति ही निकटस्थ शत्रु के रूप में रहे - का स्त्री, प्र. वि., ए. व. - "अयं समापत्ति आसन्नपीतिपच्चत्थिका, विसुद्धि. 1.158. आसन्नभवङ्गत्त नपुं., भाव., भवङ्गों की निकटता अथवा सामीप्य - त्ता प. वि., ए. व. - न ततो परं
आसन्नभवङ्गत्ताति पटिक्खित्तं, विसुद्धि. 2.313. आसन्नभूत त्रि. [आसन्नभूत], समीपवर्ती बन चुका, निकटस्थ हो चुका - त्त नपुं., भाव., निकटता, समीपवर्तिता - त्ता प. वि., ए. व. - आसन्नभूतत्ता समं पटिपज्जति, पटि. म. अट्ठ. 1.201. आसन्नमरण त्रि., ब. स. [आसन्नमरण], मरणासन्न लगभग मरने वाला, शीघ्र प्राण त्यागने वाला - णो पु., प्र. वि., ए. व. - पुत्तसोकेन विप्पलपन्तोयेव आसन्नमरणो हुत्वा, ध. प. अट्ट, 2.137; यहि आसन्नमरणो अनुस्सरितुं सक्कोति, विसुद्धि. 2.235; - णं द्वि. वि., ए. व. - सा गन्त्वासन्नमरणं म. वं. 22.35; - णेन तृ. वि., ए. व. - कतं चिन्तितमासन्न - मासन्नमरणेन तु, ना. रू. प. 351; - स्स पु., ष. वि., ए. व. - अतीतस्मिं भवे तस्स आसन्नमरणस्स हि, अभि. अव. 592; - णे सप्त. वि., ए. व. - यंपन कुसलाकुसलेस आसन्नमरणे अनुस्सरितुं सक्कोति, तं यदासन्नं नाम, अ. नि. अट्ठ. 2.108; - णा पु., प्र. वि., ब. व. - एकन्तमरणधम्मताय आतुरा आसन्नमरणा पण्डितमनुस्सा, जा. अट्ट. 3.174; - णेसु पु., सप्त. वि., ब. व. - विसवेगेन आसन्नमरणेसु. जा. अट्ठ. 3.174. आसन्नरूपावचरज्झानपच्चत्थिक त्रि., ब. स., निकटस्थ
शत्रु के रूप में रूपावचर-ध्यान से युक्त, वह, जिसमें रूपावचर ध्यान समीपवर्ती प्रत्यर्थी के रूप में प्राप्त हो - का स्त्री॰, प्र. वि., ए. व. - आसन्नरूपावचरज्झानपच्चत्थिका अयं समापत्ति, विसुद्धि. 1.321; - कं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - आसन्नरूपावचरज्झानपच्चत्थिकन्ति च, अभि. अव. 998. आसन्नवितक्कविचारपच्चत्थिक त्रि., ब. स., वह, जिसमें वितर्क एवं विचार निकटस्थ प्रत्यर्थी या शत्रु के रूप में विद्यमान हों, समीपस्थ शत्रु जैसे वितर्क एवं विचार से युक्त - त्थिका स्त्री., प्र. वि., ए. व. - "अयं समापत्ति आसन्नवितक्कविचारपच्चत्थिका, विसुद्धि. 1.152.
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