Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 294
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसित 267 किया गया, प्रभावित किया हुआ - तो पु.. प्र. वि., ए. व. - यथाहमज्ज सुहितो, ... दुमपक्कानि मासितोति, जा. अट्ठ. 2.370; .... मासितोति उदुम्बरादीनि रुक्खफलानि खादित्वा असितो धातो सुहितो, जा. अट्ठ. 2.370; तत्थ हेस्सामि आसितो, जा. अट्ठ. 5.64; असितो धातो सुहितो, जा. अट्ठ. 5.69; विसमासितो, मि. प. 278. आसित/असित त्रि., आ + vसि का भू. क. कृ. [आश्रित], किसी के साथ जुड़ा हुआ, किसी का आश्रय लिया हुआ, किसी की शरण में गया हुआ - तो पु., प्र. वि., ए. व. - सन्तिं निरिसतो असितो अल्लीनो उपगतो, महानि. 53; .... सो मया भगवा आसितो उपासितो पयिरूपासितो..... चूळनि. 189; आसितोति उपसङ्कमितो, चूळनि. अट्ठ. 77; अस्सितोति आसितो विसेसेन निस्सितो, महानि. अट्ठ. 159. आसित्त त्रि., आ + सिच का भू, क. कृ. [आसिक्त], सींचा हुआ, भिगोया हुआ, लिपा हुआ, तरल किया हुआ - स्स पु., ष. वि., ए. व. - असुचिना आसित्तस्स परिळाहो वूपसम्मति, महाव. अट्ठ. 282; - त्तेहि नपुं., तृ. वि., ए. व. - कहापणेहि कण्डं तं आसित्तेहुपरुपरि म. वं. 25.100; - त्ता स्त्री., प्र. वि., ए. व. - जलधाराहि ... आसित्ता सब्बा लङ्कामही अहु, म. वं. 17.45; - त्तं नपुं, प्र. वि., ए. व. - सेय्यथापि कुम्भो निक्कुज्जो तत्र उदकं आसित्तं विवट्टति, अ. नि. 1(1).153; तेलं वा वालुकाय आसित्तं ओसीदतिमेव संसीदतिमेव, अ. नि. 1(1).313; "नासाय वो तेलं आसित्तान्ति, ध. प. अट्ठ. 1.6; अभिसेकउदक आसित्तं सूकरिमेवस्स अग्गमहेसिंकरिंसु, जा. अट्ठ. 4.311; - तेन नपुं., तृ. वि., ए. व. - पत्तं ... आसित्तेन ... सप्पिनाविज्जोतमानं ... हत्थे ठपेत्वा, स. नि. अट्ठ. 2.164; -- ते नपुं., सप्त. वि., ए. व. - यथा घते आसित्ते अग्गिम्हि अग्गिसिखा अतीव जलति, अप. अट्ठ. 2.117; - त्तानि नपुं. प्र. वि., ब. व. - सप्पिमधुसक्खराहि आसित्तानि । योजितानेव मधुरानि ओजवन्तानि होन्ति, स. नि. अट्ठ. 1.277; - उदक न., कर्म. स. [आसिक्तोदक], छिड़का हुआ जल - कं द्वि. वि., ए. व. - चङ्कवारे आसित्तउदक विय परिहायतेव, अ. नि. अट्ठ. 3.150-151; परिस्सावने आसित्तउदकं विय परिहायतेव, जा. अट्ठ. 4.96; - काल पु., तत्पु. स., सींचे जाने का समय, स्निग्ध अथवा तरल किए जाने का काल - लो प्र. वि., ए. व. - उदकस्स आसित्तगन्धतेल आसित्तकालो विय देसनाय, अ. नि. अट्ठ. 2.99; स. उ. प. के रूप में, तोयलवा. के अन्त. द्रष्ट... आसित्तक त्रि., आसित्त से व्यु. [आसिक्तक], पूरी तरह से सिञ्चित, भली भांति भिगो दिया गया अथवा तर कर दिया गया - सदिस त्रि., भिगोया हुआ जैसा - सा पु.. प्र. वि., ब. व. - तक्कं सीसे आसित्तकसदिसाव होन्ति, महाव. अट्ठ. 269; तक्कं सीसे आसित्तकसदिसाव होन्तीति यथा अदासे करोन्ता तक्केन सीसं धोवित्वा अदासं करोन्ति, एवं आरामिकवचनेन दिन्नत्ता अदासाव तेति अधिप्पायो, सारत्थ. टी. 3.219; स. उ. प. के रूप में, अना., अमता के अन्त. द्रष्ट.. आसित्तकपूर्व पु., कर्म. स. [आसिक्तकपूप], एक प्रकार का पुआ, जिसके अन्दर में पिट्ठा रखकर धीरे धीरे बड़ा आकार देकर उसे बन्द कर देते हैं, संभवतः आधुनिक मगध का ढकन-पुआ - वं द्वि. वि., ए. व. - तत्थ कपल्लकपूवन्ति आसित्तकपूर्व, तं पचन्ता कपाले पठमं किञ्चि पिट्ठ ठपेत्वा अनुक्कमेन वड्डत्वा, अन्तन्तेन परिच्छिन्दन्ति पूर्व समन्ततो परिच्छिन्नं कत्वा ठपेन्ति, दी. नि. टी. (लीन.) 2.139. आसित्तकाधार पु., चावल की गर्म खीर आदि से भरा हुआ धातुपात्र, जिसमें भोजन गर्म बना रहता था, तथा जो एक थाली से ढका रहता था - रो प्र. वि., ए. व. - तेनेव पाळियं आसित्तकूपधानन्ति वृत्तं, तस्स च पायासादीहि आसित्तकाधारोति अत्थो, वि. वि. टी. 2.220. आसित्तकूपधान नपुं, उपरिवत् - ने सप्त. वि., ए. व. - छब्बग्गिया भिक्खु आसित्तकूपधाने भुञ्जन्ति, चूळव. 243; - नं प्र. वि., ए. व. - आसित्तकूपधानं नाम तम्बलोहेन वा रजतेन वा कताय पेळाय एतं अधिवचनं, चूळव. अट्ठ. 52; पेळायाति अढससोळसंसादिआकारेन कताय भाजनाकाराय पेळाय, यत्थ उण्हपायासादिं पक्खिपित्वा उपरि भोजनपातिं ठपेन्ति, भत्तस्स उण्हभावाविगमनत्थं तादिसस्स भाजनाकारस्स आधारस्सेतं अधिवचनं, तेनेव पाळियं "आसित्तकूपधान न्ति वुत्तं, वि. वि. टी. 2.220; इदञ्च आसित्तकूपधानं पच्चन्तेसु न जानन्ति कातु, मज्झिमदेसेयेव करोन्ति, वि. वि. टी. 2.220. आसित्तगन्धतेल त्रि., ब. स., सुगन्धित तेलों से अभ्यञ्जित, सुगन्धित तेलों को लगाया हुआ व्यक्ति - लाय स्त्री., तृ. वि., ए. व. - आसितगन्धतेलाय लहं सोवण्णदोणिया, म. वं. 20.35. For Private and Personal Use Only

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