Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

View full book text
Previous | Next

Page 277
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आसङ्का अना, निरा, स्तुप्पलग्गसदिसा, सम्पयोगा, सा. के अन्त द्रष्ट.. आसङ्का' स्त्री. व्य. सं. एक तपस्वी की दत्तक पुत्री का नाम. प्र. वि. ए. व. आसष्ट्रा कुमारिका त दिवस फलिकवातपानं, जा. अड. 3.219. आसहिदय त्रि०, ब० स०, आशंका से ग्रस्त हृदय वाला, शङ्कालु हृदय वाला नियतं आसहिदया भुसं, चू. वं. 65. 14 स. उ. प. के रूप में, गमना, भया, भेदा, के अन्त द्रष्ट.. " आसङ्कित त्रि, आ + √संक से व्यु० [आशङ्कित ], संदिग्ध, आशंका का विषय सन्देह का पात्रता स्त्री. प्र. वि., ए. व. "अतिचारिनी "ति आसङ्किता, वि. व. अट्ठ. 88; - परिसङ्कित त्रि., आशंका अथवा भय एवं सन्देह से परिपूर्ण तोपु. प्र. वि., ए.व. आसङ्कितपरिसङ्गितोव होमि, ध. प. अ. 1. 127; वायसो आसहितपरिसहितो यतप्पयत्तो योगिना योगावचरेन आसङ्गितपरिसङ्कितेन यत्तपयत्तेन उपट्टिताय. मि. प. 339; समाचार त्रि०, ब० स०, संदिग्ध आचरण वाला, दूसरो पर सन्देह करने वाला, शङ्कालु प्रकृति वाला रो पु. प्र. वि. ए. व. - सङ्करसराचारोति आसङ्कितसमाचारो, स. नि. अड. 1.113. आसङ्ग पु.. [आसङ्ग], आसक्ति अथवा लगाव करण क्रि लगाव अथवा आसक्ति को उत्पन्न करने वाला, आसक्तिजनक णो पु. प्र. वि. ए. व. आसङ्गीति आसङ्गकरणो, जा० अट्ठ. 4.11; स. उ. प. के रूप में, अनङ्गा, उत्तरा के अन्त. द्रष्ट.. आसङ्गी त्रि.. आसङ्ग से व्यु. [आसङ्गिन् ] लगाव पैदा करने वाला, आसक्ति - जनक डी प्र. वि. ए. व. - आसङ्गीति आसङ्गकरणो जा. अट्ठ. 4.11. - www.kobatirth.org - - आसच्छेद पु. तत्पु, स. [आशाछेद ]. आशा का विनाश, आशा का उच्छेद- दंद्वि. वि. ए. व. मा आसच्छेद करोहीति, जा. अड. 3.220 - नकम्म नपुं. आशा को नष्ट कर देने वाला काम, निराशाजनक कर्म - म्मं द्वि. वि., ए. व. तेसम्पि आसच्छेदनकम्मं त्वमेव करोसीति अट्ठ 250 वदति, जा० अट्ठ० 5.397. आसज्ज आ + √सद का सं. कृ. [ आसाद्य]. क. प्राप्त करके, समीप जा कर पहुंच कर आमने सामने हो कर, ख. आक्रमण कर, अपमानित कर उत्तेजित कर उदविग्न बना कर, असभ्य रूप से आचरण कर, प्रहार कर तं भगवन्तं गोतमं एवं आसज्ज आसज्ज अवचासि दी. नि. आसत्त 1.93; यावञ्चिदं भोतो गोतमस्स एवं आसज्ज आसज्ज वुच्चमानस्स म. नि. 1.318; आसज्ज आसज्जाति घट्टेत्वा घट्टेत्वा दी. नि. अट्ठ 1.223; आसज्ज उपनीय वाचा भासिता, अ. नि. 1 ( 1 ).200; म. नि. 3. 191; न त्वेव भवन्तं गोतमं आसज्ज सिया पुरिसस्स सोत्थिभावो म.नि. 1.301; सो आसज्ज डहे बाल, स. नि. 1 (1).85; आसज्जाति पत्या स. नि. अ. 1.118 काकोव सेलमासज्ज स.नि. 1 ( 1 ) 145; अनरियं गुणमासज्ज अ. नि. 1 ( 1 ) . 228: तं खुरचक्क आसज्ज पापुणित्वा जा. अड. 1.347; पाणमासज्ज पाणिभि, जा. अट्ट. 5.363. आसञ्जन नपुं. आज से व्यु क्रि. ना. [आसञ्जन]. आकर सट जाना, किसी के प्रति लाग-लगाव या किसी के साथ दृढभाव से चिपकाव - नट्ठ पु०, लगाव या चिपकाव का अर्थ द्वेन तृ. वि. ए. व. रूपादीसु आसञ्जनद्वेन आसत्तियो, सारत्थ. टी. 3.361. - " आसति आस का वर्त. प्र. पु. ए. व. [आस्ते]. बैठता है, ठहरता है, रुकता है, रह जाता है सेति चेव आसति च एत्थाति सेनासनं, दी. नि. अड. 1.170; अ. नि. अट्ठ 2.379; सीयते कर्म वा वर्त. प्र. पु. ए. व. - आसीयते आसितब्ब आसनीयं क. व्या. 542 - सेथ विधि, प्र. पु. ब. व आत्मने. सुख मनुस्सा आसेध, जा. अड. 5.209 सेय्युं उपरिवत् परस्मै. आसेधाति आसेप्युं निसीदेव्युं, जा. अड्ड. 5.215 - सित्थ अद्य, प्र. पु. ब. व.. आत्मने. तुम्ही मासित्थ उभयो, न सञ्चलेसुमासना जा. अड. 5.334 - सितुं निमि. कृ. तुम्ही मासितुं पतिरूपन्ति दी. नि. अ. 2.198 सितब्बं / सनीयं सं० कृ०, नपुं. प्र. वि., ए. व. आसितब्ब, आसनीयं, क. व्या. 542. आसत्त त्रि. आ + √सज्ज से व्यु.. भू. क. कृ. [आसक्त ]. 1. लगावयुक्त, विषय-भोगों के प्रति प्रबल तृष्णा रखने वाला, 2. किसी स्थान के साथ बराबर जुड़ा रहने वाला ( स्थायी रूप से वहां रहने वाला) आसत्तो तु च तप्परो, अभि. प. 726 सत्तायं च जने सत्तो आसते सो तिलिङ्गिको, अभि. प. 816 - तो पु०, प्र. वि., पु. प्र. वि. ए. व. सत्तो गुहायन्ति गुहायं सत्तो विसत्तो आसतो लग्गो लग्गितो पलिबुद्धो महानि. 17:बोधियं सत्तो आसत्तोतिपि बोधिसत्तो, स. नि. अ. 2.19; त्ता ब.व. सत्ताति आसत्ता विसत्ता लग्गा लग्गिता... जा. अट्ठ. 3.213; ता स्त्री०, भाव०, आसक्ति या लगाव की अवस्था, आसक्तिभाव यतृ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only - - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402