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आलोकसञत्थ
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आलोकसञ्जामनसिकार मनसिकरणेनउपद्वितआलोकसजाननेन, विसुद्धि. महाटी. आलोकसाधिट्टानं थिनमिद्धेन सुझं पटि. म. 358; 1.72-73; - समत्थ त्रि., तत्पु. स., आलोक का पूर्ण ज्ञान रोचितानियेव पविसित्वा तिट्ठनतो अधिट्ठानन्ति, पटि. म. प्राप्त करने में सक्षम - त्थाय स्त्री., तृ. वि., ए. व. - अट्ठ. 2.226. रत्तिम्पि दिवादिट्ठालोकसञ्जाननसमत्थाय ... सञआय आलोकसाधिपतत्त नपुं., भाव., आलोक संज्ञा पर पूर्ण रूप समन्नागतो, दी. नि. अठ्ठ. 1.172.
से आधिपत्य - त्ता प. वि., ए. व. - आलोकसाधि - आलोकसञत्थ पु., तत्पु. स., आलोकसंज्ञा का महत्त्व या पतत्ता पञआ थिनमिद्धतो सआय विवट्टतीति, पटि. म. 99. प्रयोजन, आलोकयुक्त परिशुद्ध चेतना की महत्ता - त्थं आलोकसञ्जाधिमुत्त त्रि., आलोकमयी संज्ञा अथवा जागरूक द्वि. वि., ए. व. – थिनमिद्धं पजहन्तो आलोकसञत्थं चेतना की प्राप्ति हेतु स्वयं को पूरी तरह से लगाया हुआ सन्दस्सेति, पटि. म. 96.
- त्तो पु., प्र. वि., ए. व. - 'अयं पुग्गलो आलोकसञा स्त्री., तत्पु. स. [आलोकसंज्ञा], शा. अ., आलोकसागरुको आलोकसञआसयो थीन (स्त्यान, चित्त की शिथिलता) एवं मिद्ध (मृद्ध, चेतसिकों आलोकसञआधिमुत्तो ति..... पटि. म. 113. की शिथिलता) के प्रतिपक्षभूत आलोक या प्रकाश को आलोकसापटि लाभ पु., तत्पु. स. निमित्त बनाकर उत्पन्न संज्ञा (चेतना), ला. अ. द्वितीय [आलोकसंज्ञाप्रतिलाभ], आलोकमयी संज्ञा की प्राप्ति, समाधिभावना जो आणदस्सनपटिलाभ की स्थिति को प्राप्त जागरूक चेतना की प्राप्ति - भो प्र. वि., ए. व. - करा देती है, प्र.वि., ए. व. - आलोकसाति थिनमिद्धस्स आलोकसञआपटिलाभो थिनमिद्धेन सुओ, पटि. म. 357; पटिपक्खे आलोकनिमित्ते सञ्जा, पटि. म. अट्ठ. 1.89; परिग्गहितानि पत्तिवसेन पटिलभन्तीति पटिलाभोति, पटि. आलोकसा अरियानं निय्यानं, पटि. म. 157; थिनमिद्धं म. अट्ठ. 2.226. असल्लेखो, आलोकसञआ सल्लेखो, पटि. म. 95; - नं आलोकसापटिवेध पु., तत्पु. स., आलोकसंज्ञा का द्वि. वि., ए. व. - भिक्खु आलोकसञ्जमनसि करोति, दी. प्रतिवेध-ज्ञान, आलोक संज्ञा के कारण प्राप्त गम्भीर प्रतिवेध नि. 3.178; आलोकसञ्जमनसिकरोतीति दिवा वा रत्तिं वा ज्ञान - धो प्र. वि., ए. व. - आलोकसञआप्पटिवेधो सूरियचन्दपज्जोतमणिआदीनं आलोक आलोकोति थिनमिद्धेन सुओ, पटि. म. 357; पटिलद्धानि आणवसेन मनसिकरोति, दी. नि. अट्ठ. 3.172; आलोकसञ्जन्ति पटिविज्झीयन्तीति पटिवेधोति च वुत्तानि, पटि. म. अट्ठ. आलोकनिमित्ते उप्पन्नसङ्ख अ. नि. अट्ठ. 3.105; - आय 2.226; द्रष्ट, पटिवेध के अन्त... ष. वि., ए. व. - इदं उभयं आलोकसआय उपकारत्ता आलोकसञआपरिग्गह पु., तत्पु. स., आलोकमयी संज्ञा वुत्तं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).117; - जाय तृ. वि., का पूर्णरूप से ग्रहण अथवा प्राप्ति – हो प्र. वि., ए. व. ए. व. - आलोकसञआय थीनमिद्धस्स... भावेतब भावेन्तो - आलोकसापरिग्गहो, थिनमिद्धेन सओ, पटि. म. सिक्खति, पटि. म. 41.
357; पुब्बभागे एसितानि अपरभागे परिग्गरम्हन्तीति परिग्गहोति, आलोकसञ्जाखन्ति स्त्री., प्र. वि., ए. व., आलोकसंज्ञा की। पटि. म. अट्ठ. 2.226. प्रवृत्ति, आलोकसंज्ञा की प्रवणता - आलोकसञआखन्ति आलोकसञआपरियो गाहन नपु., तत्पु. स. थिनमिद्धेन सुआ पटि. म. 358; .... खमनतो रुच्चनतो [आलोकसञ्जपर्यवगाहन], आलोकसंज्ञा का पूर्णरूप से खन्तीति, पटि. म. अट्ठ. 2.226.
अवगाहन, आलोक संज्ञा में प्रवेश कर यथारुचि सेवन - आलोकसञ्जागरुक त्रि., जागरूक संज्ञा अथवा चेतना की नं प्र. वि., ए. व. - आलोकसञआपरियोगाहणं थिनमिद्धेन गुरुता से युक्त, थीन एवं मिद्ध से मुक्त - को पु., प्र. वि., सुझं, पटि. म. 358; पविसित्वा ठितानं यथारुचिमेव ए. व. - 'अयं पुग्गलो आलोकसञआगरुको सेवनतो परियोगाहनन्ति च वृत्तानि, पटि. म. अट्ठ. आलोकसञआसयो आलोकसाधिमत्तो ति, आलोकसञ्ज 2.226. सेवन्त व जानाति, पटि. म. 113.
आलोकसञआमनसिकार पु., तत्पु. स., आलोकसंज्ञा को आलोकसाधिद्वान नपुं.. तत्पू. स., आलोकसंज्ञा के मन में कर लेना अथवा मन द्वारा आलोकसंज्ञा का ग्रहण, विषय में दृढ़ निश्चय, जागरूक संज्ञा अथवा आलोकसंज्ञा आलोक संज्ञा की ओर मन का ध्यान --रो प्र. वि., ए. व. का आधार-स्थ ल -- नं म. वि., ए. व. - - अतिभोजने निमित्तग्गाहो इरियापथसम्परिवत्तनता
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