Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

View full book text
Previous | Next

Page 249
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवज्जनकिच्च 222 आवज्जनता आवज्जनतदारम्मणक्खणे अब्याकतोति वेदितब्बो, पारा. अट्ठ. 2.98%; स. उ. प. के रूप में, अन., असुभा., उपेक्खा ., उप्पन्ना., आनन्तर., एका., कसिणा., चक्खुद्वारिका., जवना., झानङ्गा, समत्थता., नाना., पञ्चद्वारा., पटिसन्धि., पठमा., भवङ्गा., मनोद्वारा., मनोद्वारिका., मनोधाता., वोट्ठपना. ... किच्च०, वोट्ठपना., सहा., सा. के अन्त. द्रष्ट... आवज्जनकिच्च नपुं, तत्पु. स., आलम्बन की ओर चित्त के मुड़ जाने की क्रिया, आलम्बन पर ध्यान देने की चित्त क्रिया - च्चं द्वि. वि., ए. व. - किरियमनोधातु आवज्जनकिच्चं साधयमाना उप्पज्जित्वा निरुज्झति, विसुद्धि. 1.21; भवङ्ग विच्छिन्दमानाविय आवज्जनकिच्चं साधयमाना, विसुद्धि. 2.85. आवज्जनकिरियाचित्त नपुं., पञ्चद्वारावज्जन-वीथि एवं मनोद्वारावज्जन-वीथि की प्रक्रिया में उस क्षण का चित्त, जब चित्त विषय की ओर मुड़ने अथवा आवर्जित होने की क्रियामात्र करता है, मनसिकार मात्र करने वाला वीथिचित्त, 2 प्रकार के अहेतुक क्रियाचित्त – तं प्र. वि., ए. व. - आवज्जनक्रियाचित्तं समनक्कारोति सञ्जितं अभि. अव. 510.. आवज्जनकिरियाब्याकत त्रि., उपेक्षासहगत पञ्चद्वारावज्जनचित्त तथा मनोद्वारावज्जनचित्त, जो 3 प्रकार के अहेतुक क्रिया के अन्त., परिगणित है, तथा जिसका अकुशल अथवा कुशल विपाक नहीं होता है - दस्सनत्थाय आवज्जनकिरियाब्याकता विआणचरिया रूपेसु. पटि. म. 73; आवज्जनकिरियाब्याकताति भवङ्गसन्तानतो अपनेत्वा रूपारम्मणे चित्तसन्तानं आवज्जेति-नामेतीति आवज्जनं विपाकाभावतो करणमत्तन्ति किरिया, कुसलाकुसलवसेन न ब्याकताति अब्याकता, पटि. म. अट्ठ 1.240; आवज्जनकिरियाब्याकताति मनोद्वारावज्जनचित्तं, पटि. म. अट्ठ. 1.241. आवज्जनक्खण नपुं.. तत्पु. स. [आवर्जनक्षण], विषय या आलम्बन की ओर चित्त के प्रवृत्त होने का क्षण, आलम्बन के मनसिकार करने का क्षण, चित्त-वीथि पूरा होने में लगने वाले 16 चित्त क्षणों में से 1 क्षण –णे सप्त. वि., ए. व. - आवज्जनक्खणे किरियमनोधातु, स. नि. अट्ठ. 2.239; स. प. के अन्त., - द्वीहि अन्तहि मुत्तो आवज्जनतदारम्मणक्खणे अव्याकतोति वेदितब्बो, पारा. अट्ठ. 2.98. आवज्जनचित्त नपुं., पञ्चद्वारावज्जन-वीथि का वह चित्त, जो पूर्वकाल की चित्त-सन्तति का विच्छेद होने के उपरान्त इन्द्रियों के आपाथ में आपतित अभिनव आलम्बन की ओर प्रवृत्त होता है, मनोद्वारावज्जन-वीथि में मनोधात् विषयों के ज्ञान की प्रक्रिया की वीथि का प्रथम मन्द चित्त, मनसिकार, 89 प्रकार के चित्तों में 2 प्रकार के चित्त - त्तं प्र. वि., ए. व. - मनोद्वारे “मनोधातू ति आवज्जनचित्तं गहितं. स. नि. अट्ठ. 3.40; - स्स ष. वि., ए. व. - तं निरुद्धम्पि आवज्जनचित्तस्स पच्चयो भवितुं असमत्थं मन्दथामगतमेव पवत्तमानम्पि परिभिन्नं नाम होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).129. आवज्जनजवन नपुं.. द्व. स., वीथि चित्तों में आवज्जनचित्त एवं जवनचित्त, मनोविज्ञान धातु, विषयकी ओर प्रवृत्त चित्त एवं विषयों का निश्चयात्मक ज्ञान करने वाला चित्त - येन च चित्तेन आवज्जति येन च जानाति, तेसं द्विन्नं सहठानाभावतो आवज्जनजवनानञ्च अनिट्ठट्ठाने ... पटिक्खित्त, विसुद्धि. 2.60; तुल., मनोविज्ञआणन्ति आवज्जन वा जवनं वा, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).391. आवज्जनट्ठ पु., तत्पु. स., आवर्जन का अर्थ, चित्त के आलम्बन में प्रवृत्त होने का तात्पर्य - @ो प्र. वि., ए. व. -- एकत्ते आवज्जनट्ठो अभिज्ञेय्यो, पटि. म. 16; चित्तस्स एकग्गट्ठो अभिज्ञेय्यो, आवज्जनट्ठो अभि य्यो, पटि. म. 16; द्विन्नं चित्तानं आवज्जनढो, पटि. म. अट्ठ. 1.85; - टुं वि. वि., ए. व. - आवज्जनहुँ बुज्झन्तीति, बोज्झङ्गा, पटि. म. 296; - आवज्जनक नपुं., आवज्जन से व्यु., स. उ. प. में ही प्रयुक्त, सहा.- त्रि., आवज्जनचित्त-सहित - कं नपुं., प्र. वि., ए. व. - सहावज्जनक जवनं निब्बत्तति, विभ. अट्ठ. 75; सा.- त्रि., उपरिवत् - कं नपुं., प्र. वि., ए. व. - सावज्जनकं भवङ्गचित्तं, स. नि. अट्ठ. 1.159. आवज्जनट्ठान नपुं. तत्पु. स., विषय की ओर चित्त के प्रवृत्त होने का स्थान – ने सप्त. वि., ए. व. - ठत्वा आवज्जनहाने, तमनावज्जनम्पि च, अभि. अव. 1331; तं गोत्रभुचित्तं अनावज्जनम्पि मग्गस्स आवज्जनहाने ठत्वा, अभि. अव. पु. टी. 113; पञ्चन्नं विचआणानं आवज्जनहाने ठत्वा, विभ. अट्ठ. 382. आवज्जनता स्त्री., आवज्जन का भाव., विषय की ओर चित्त का मुड़ जाना अथवा उसके ग्रहण में प्रवृत्त हो जाना, स. उ. प. के रूप में; अना.- निषे., विषय की ओर चित्त का नहीं मुडना, चित्त का विमखीभाव-य त. वि.. ए. व. - कस्मा ? अनावज्जनताय, स. नि. अट्ठ 1.158; For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402