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आवाहक
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आवि
आहरणं पारा. अट्ठ. 2.126; इमस्स गहपतिस्स आवाहो वा भविस्सति, विवाहो वा भविस्सति, चूळव. 282; आवाहो वा होति, विवाहो वा होति, दी. नि. 1.86; - हं द्वि. वि., ए. व. - यसोपिस्स महा अहोसि, आवाहमस्स कातुं वट्टतीति, जा. अट्ठ. 6.192; सो चतुन्नं पुत्तानं आवाहं कत्वा चत्तारि सतसहस्सानि अदासि, स. नि. अट्ठ. 1.229; ध. प. अट्ठ. 2.286; मातापितरो आवाहं कत्वा, ध. प. अट्ठ. 2.151; आवाहं ते करिस्सामा, ध, प. अट्ठ. 2.164; साधूति सम्पटिच्छिते दिवसं ठपेत्वा आवाहं करिसु, ध, प. अट्ठ.2.170; - हानि द्वि. वि., ब. व. - एतेनेव उपायेन आवाहानिपि कारापेति, विवाहानिपि कारापेति, वारेय्यानिपि कारापेति, पारा. 200;
द्रष्ट. विलो. विवाह के अन्त.. आवाहक त्रि., आ + Vवह से व्यु. [आवाहक], शा. अ.,
आवहन करने वाला, ले आने वाला, ला. अ., कन्या को पुत्र के लिए ग्रहण कर वर के घर लाने वाला - का पु.. प्र. वि., ब. व. - आवाहविवाहकानन्ति आवाहका नाम ये
तस्स घरतो दारिकं गहेतुकामा, दी. नि. अट्ठ. 3.117. आवाहन नपुं, आ + Vवह से व्यु., क्रि. ना., कन्या को वर के घर ले आना, वर के लिए कन्या का ग्रहण एवं वर के घर ले आना, विवाह का ही एक प्राचीन स्वरूप - नं प्र. वि., ए. व. -- आवाहनं विवाहनं संवरणं विवरणं संकिरणं, विकिरणं, दी. नि. 1.10; 61; असुकनक्खत्तेन दारिकं
आनेथाति आवाहकरणं, दी. नि. अट्ठ. 1.85. आवाहमङ्गल नपुं., तत्पु. स., विवाह का मांगलिक पर्व, विवाह का मङ्गलमय उत्सव - लं' प्र. वि., ए. व. - आभरणमङ्गलं अभिसेकमङ्गलं आवाहमङ्गलन्ति तीणि मङ्गलानि अकंसु, सु. नि. अट्ठ. 1.227; - लं' द्वि. वि., ए. व. - मिगारसेडिपि पुत्तस्स आवाहमङ्गलं करोन्तो....ध. प. अट्ठ. 1.223; - ले सप्त. वि., ए. व. - आवाहमङ्गले तत्थ सत्ताह
उस्सवो महा, म. वं. 7.34. आवाहयुत्त त्रि., विवाह के लिए उपयुक्त, विवाह करने योग्य - त्तं पु., द्वि. वि., ए. व. - अनावरहन्ति न आवाहयुत्तं, दी. नि. अट्ठ. 3.136. आवाहविवाह पु./नपुं॰, द्व. स. [आवाहविवाह], 1. विवाह
के प्राचीन काल के दोनों स्वरूप, क. वह विवाह जिसमें वधू को ग्रहण कर वर के घर लाया जाता था, ख. वह विवाह जिसमें वधू का कन्यादान किया जाता था, 2. विवाहोत्सव, 3. वर एवं वधू का आपस में विवाह - आवाहोति कागहणं विवाहोति कञआदानं, म. नि. अट्ठ.
(म.प.) 2.282; - हं द्वि. वि., ए. व. - तेसं आवाहविवाह करिस्सामा ति, जा. अट्ठ. 6.86; तेसं अनिच्छमानान व अञमज आवाहविवाहं करिंस, जा. अट्ठ. 4.21; चरिया. अट्ठ. 233; तादिसे काले तं आनेत्वा आवाहविवाहं अकंस,
वि. व. अट्ठ. 87; - क त्रि., आवाह करने वाला एवं विवाह ___ करने वाला, अपने पुत्र को अथवा अपनी पुत्री को विवाह
में देने वाला-कानं पु.. ष. वि., ब. व. - आवाहविवाहकानं अपत्थितो, दी. नि. 3.139; आवाहविवाहकानन्ति आवाहका नाम ये तस्स घरतो दारिक गहेतुकामा ..., दी. नि. अट्ट. 3.117. आवाहविवाहविनिबद्ध त्रि., शा. अ., विवाह-सम्बन्ध द्वारा
एक दूसरे के साथ जुड़े हुए, ला. अ., एक दूसरे के साथ गहराई के साथ जुड़े हुए -द्धा पु., प्र. वि., ब. व. - ये हि केचि... आवाहविवाहविनिबद्धा वा..., दी. नि. 1.86. आवाहविवाहसम्बन्ध पु., विवाह द्वारा आपस में सम्बन्ध, घनिश्ट सम्बन्ध, परस्पर-सम्बन्ध, दो व्यक्तियों के बीच उपयुक्त सम्बन्ध - धो प्र. वि., ए. व. - आवाहविवाहसम्बन्धो नाम महञ्च तया तरहञ्च मया सद्धि पतिरूपो, जा. अट्ठ. 1.432; कस्सपकोण्डानञ्च अञ्जमझं आवाहविवाहसम्बन्धो अत्थि जा. अट्ट. 2.299; - धं द्वि. वि., ए. व. - विवाहन्ति आवाहविवाहसम्बन्धं जा. अट्ठ. 3.413. आवाहेति आ + Vवह का प्रेर., वर्त.. प्र. पु., ए. व., ले आने हेतु प्रेरित करता है, विवाह कराता है, आवहति के अन्त., द्रष्ट.. आवि/आवी/आविं अ., निपा. [आविः], एक दम सुस्पष्ट, पूरी तरह से साफ सुथरा, आखों के सामने, प्रत्यक्ष रूप में, खुले रूप में - था वि पातु च, अभि. प. 1149; सम्मुखा त्वा वि पातु च, अभि. प. 1157; 2 रूपों में प्रयोग में प्राप्त, 1. विलो. 'रहो' (छिपे रूप में, पीछे) के साथ, आंखों के सामने, पीछे छिपे रूप में, प्रकट रूप में अथवा गुप्त रूप में - आवी रहोति सम्मुखा च परम्मुखा च, जा. अट्ठ. 3.231; आवी रहो वापि मनोपदोसं नाहं सरे जातु मलीनसत्ते, जा. अट्ठ. 5.26; माकासि पापकं कम्म, आवि वा यदि वा रहो, स. नि. 1(1).241; आवि वा परेसं पाकटभाववसेन अप्पटिच्छन्नं कत्वा, उदा. अट्ठ. 240; 2. Vकर एवं भू के साथ स. प. के रूप में प्रयुक्त, क. (कर के साथ, प्रकट करता है, सुप्रकाशित कर देता है, प्रयोग आगे द्रष्ट; ख. Vभू के साथ, प्रकट अथवा प्रकाशित होता है, प्रयोग द्रष्ट,
आगे.
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