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आवज्जनपटिवद्ध
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आवज्जनवसिता
अनावज्जनताय मुहुत्तमतके काले सति नप्पहोति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.63; निरा.- उपरिवत् - निरावज्जनताय पमादेन निसिन्नं, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.63. आवज्जनपटिवद्ध त्रि, तत्पु. स., मानसिक अनुचिन्ता पर निर्भर, आवज्जन पर पूरी तरह से आश्रित - द्धा पु., प्र. वि., ब. व. - सब्बे धम्मा बुद्धस्स भगवतो आवज्जनपटिबद्धा ...., महानि. 131, 263; 339; आवज्जनप्पटिबद्धाति मनोद्वारावज्जनायत्ता आवज्जितानन्तरमेव जानातीति अत्थो, पटि. म. अट्ठ. 2.237; - लु' नपुं., प्र. वि., ए. व. - आवज्जनपटिबद्ध भगवतो सब्ब तत्राणं, मि. प. 112; 115; 116; एतकम्हि थेरस्स धुवसेवनं आवज्जनपटिबद्ध, म. नि. अट्ट (मू.प.) 1(2).152; आवज्जनपटिबद्धं खीणासवानं जाननं दी. नि. अट्ठ. 2.170; - द्धं द्वि. वि., ए. व. - आवज्जनपटिबद्धं कम्मट्टानं कत्वा, विसुद्धि. 1.115; - द्धेन तृ. वि., ए. व. - आवज्जनपटिबद्धन सब्ब तआणेन निच्चं पज्जलितग्गि, स. नि. अट्ठ. 1.208. आवज्जनपमाण नपुं.. तत्पु. स., चित्तवीथि में आवज्जनचित्त
की विद्यमानता की समयावधि, विषय की ओर चित्त की प्रवृत्ति की समयसीमा, एक चित्तक्षणमात्र की समयावधि - णं प्र. वि., ए. व. - तस्मिं विज्ञआते विजातमत्तन्ति आवज्जनपमाणं. स. नि. अट्ठ. 3.29; - णे सप्त. वि., ए. व. - यथा आवज्जनं न रज्जति, न दुस्सति, न मुव्हति एवं रज्जनादिवसेन च उप्पज्जितुं अदत्वा आवज्जनप्पमाणेनेव चित्तं ठपेस्सामी ति, उदा. अट्ठ. 72. आवज्जनपरियाय पु., आवज्जन का प्रकार, विषय की ओर चित्त की प्रवृत्ति की प्रकृति – यो प्र. वि., ए. व. - आवज्जनपरियायो नाम ल« वट्टति, दुतियततियचित्तवारे एव जानिस्सती ति, दी. नि. अट्ठ. 2.20. आवज्जनमन नपुं.7 प्रकार के वीथिचित्तों में से विषय के ग्रहण अथवा विषय को मन में ले आने के काम में लगने वाला आवज्जन-चित्त, जो 3 अहेतुक क्रिया चित्तों में से 2 के रूप में स्वीकृत है- नो प्र. वि, ए. व. - यदा परस्स चित्तव्हि
आतुमावज्जतिद्धिमा आवज्जनमनो तस्स, अभि. अव. 1135. आवज्जनमनसिकार पु., विषय अथवा आलम्बन की ओर पूर्ण रूप से मुड़ा हुआ मन, पूर्ण ध्यान, विषय पर मन का पूरा पूरा ध्यान - रो प्र. वि., ए. व. - सब्बत्थ मनसिकारो आवज्जनमनसिकारो, विसुद्धि. महाटी. 2.168.
नोधात् स्त्री., मनोधात के रूप में आवज्जनचित्त, धर्मों के 18 धातुओं वाली विभाजन-योजना में मनोधात
नामक धातु का एक प्रभेद, वीथिचित्त की योजना की दृष्टि से मनोधातु का वह स्तर जिसमें मन आलम्बन के प्रति सचेत होता है - पञ्चन्नं पन नेसं आवज्जनमनोधातु अनन्तरसमनन्तर ... होति, विसुद्धि.2.116. आवज्जनमनोविज्ञआणधातु स्त्री., धर्मों के 18 धातुओं वाले वर्गीकरण में मनोविज्ञान धातु का वह प्रभेद, जिसमें आलम्बन के प्रति अत्यन्त प्रारम्भिक रूप में मानसिक संचेतना या मनोविज्ञान उत्पन्न होता है - या ष. वि., ए. व. - मनोद्वारे पन भवङ्गमनोविआणधातु आवज्जनमनोविज्ञाण धातुया, विसुद्धि. 2.116. आवज्जनमन्त पु., [आवर्जनमन्त्र], एक विशेष प्रकार का मन्त्र, वशीकरण मन्त्र, दूसरे को अपनी ओर मोड़ देने वाला मन्त्र - न्तो प्र. वि., ए. व. - पथवीजयमन्तोति
आवट्टनमन्तो वुच्चति, जा. अट्ठ. 2.204; पाठा. आवट्टनमन्तो, आवज्जनरस त्रि., ब. स., विषय की ओर उन्मुख होने
अथवा विषय का मानसिक संप्रत्यय करने का काम करने वाला/वाली, स. उ. प. में, बोट्ठबना.पञ्चद्वारावज्जनवीथि में व्यवस्थापन (निश्चयात्मक ज्ञान) एवं मनोद्वारावज्जन-वीथि में आवर्जन (विषय का मानसिक संप्रत्यय) का काम करने वाला/वाली - सा स्त्री., प्र. वि., ए. व. - किच्चवसेन पञ्चद्वारमनोद्वारे सु वोहब्बनावज्जनरसा, विसुद्धि. 2.84; वोहब्बनावज्जनरसाति पञ्चद्वारे सन्तीरणेन गहितारम्मणं ववत्थपेन्ती विय पवत्तनतो वोहब्बनरसा, मनोद्वारे पन वुत्तनयेन आवज्जनरसा, विसुद्धि. महाटी. 2.121. आवज्जनवस पु., तत्पु. स., विषय की ओर उन्मुख होने अथवा विषय की मानसिक संचेतना करने का बल, ध्यान के अङ्गों की ओर चित्त के निरन्तर उन्मुख बने रहने का बल, चित्त को उपयुक्त आलम्बन की ओर मोड़ देने का बल - सो प्र. वि., ए. व. - आवज्जनाय वसो आवज्जनवसो, सो अस्स अत्थीति आवज्जनवसी, पटि. म. अट्ठ. 1.258; - सेन तृ. वि., ए. व. - आवज्जनवसेन चक्खुविज्ञाणस्स पुरेचारी हुत्वा, अभि. अव. 14; स. उ. प. के रूप में, कसिना.- कृत्स्नों (ध्यान के आलम्बनों) की मानसिक संचेतना करने का बल – सेन त. वि., ए. व. - कसिनावज्जनवसेन आवज्जनवसिता वुत्ता होति, पटि. म. अट्ठ. 1.197. आवज्जनवसिता स्त्री., 5 प्रकार की क्षमताओं अथवा आभ्यन्तरिक शक्तियों में प्रथम, ध्यान के 5 अङ्गों में से चित्त
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