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आवट्टसीस
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आवत्तति
आवट्टसीस त्रि., ब. स. [आवर्तशीर्ष], धुंघराले केशों से युक्त शिर वाला - सो पु., प्र. वि., ए. व. - आवट्टसीसो वा गुन्न सरीरे आवट्टसदिसेहि उद्धग्गेहि केसावट्टेहि
समन्नागतो, महाव. अट्ठ. 294. आवट्टित त्रि., आ + Vवट्ट का भू. क. कृ. [आवर्तित], 1. किसी की ओर उन्मुख अथवा झुका हुआ, किसी के प्रति खिंचाव या आकर्षण रखने वाला, अभिभूत, ग्रस्त, गुमराह या पथभ्रष्ट कर दिया गया - तो पु., प. वि., ए. व. - समणस्स गोतमस्स आवट्टनिया मायाय आवट्टितो सरणं गमिस्सति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.293; - ता ब. व. - अन्वाविठ्ठाति आवट्टिता, म. नि. अट्ठ. 1(2).311; अन्वाविट्ठा, म. नि. 1.419; 2. आलम्बन या विषय की ओर प्रवृत्त, विषय की ओर मुड़ा हुआ - ते सप्त. वि., ए. व. - सचे पन भवङ्ग आवद्देति, किरियमनोधातुया भवङ्गे आवट्टिते । ..., धस. अट्ठ. 307. आवट्टितत्त नपुं., आवट्टित का भाव. [आवर्तितत्व], अभिभूत अथवा ग्रस्त होने की अवस्था - त्ता प. वि., ए. व. - सकलनगरवासीनं मारेन आवट्टितत्ता एक भिक्खाम्पि
अलभित्वा, ध. प. अट्ठ. 1.114. आवट्टी त्रि., विषयों अथवा कामभोगों की ओर मन को मोड़ देने वाला - ट्टिनो पु., च. वि., ए. व. - आवट्टिनो साभोगोयेव होति. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).374; स. उ. प. में, अना.- निषे., विषयों की ओर मन को न मोड़ने वाला, प्र. वि., ए. व. - अथ खो सो... नेव ताव कामेस
अनावट्टी होति, म. नि. अट्ट. (मू.प.) 1(1).374. आवद्देति आ + Vवट्ट का प्रेर., वर्तः, प्र. पु., ए. व., 1. फुसलाता है, बहका देता है, लुभाता या ललचाता है, वश में कर लेता है - अतिथियानं सावके आवट्टेतीति, म. नि. 2.43, 50; - त्वा पू. का. कृ. - आवडेतीति आवदे॒त्वा परिक्खिपित्वा गण्हाति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.40; 2. आलम्बन या विषय की ओर चित्त को मोड़ देता है, विषय पर चित्त का ध्यान ले जाता है - सचे पन भवङ्ग आवद्देति, ध. स. अट्ठ. 307; - यमाना स्त्री., वर्त. कृ., आत्मने., प्र. वि., ए. व. - भवङ्ग आवट्टयमाना उप्पज्जति, अभि. अव. 14; - दे॒त्वा पू. का. कृ. - भवङ्ग आवदे॒त्वा, विसुद्धि. 2. 306; भवङ्ग आवदे॒त्वा उप्पजनमनसिकारो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).128. आवत्त' त्रि., आ + Vवत्त का भू. क. कृ. [आवर्त], शा. अ., पीछे की ओर पलटा हुआ, वापस मुड़ा हुआ, पतित,
भ्रष्ट, गिरा हुआ, ला. अ., गृहस्थ जीवन की हीन या तुच्छ अवस्था में पुनः वापस आया हुआ - त्तो पु., प्र. वि., ए. व. - बाहुल्लिको पधानविब्भन्तो आवत्तो बाहुल्लाय, म. नि. 1.231; महाव. 12; अयं जिनसासने पब्बजित्वा तत्थ
पतिद्वं अलभित्वा हीनायावत्तो, मि. प. 232; 233. आवत्त पु., [आवर्त]. भंवर, चक्कर, जलावर्त - त्तेन तृ. वि., ए. व. - नावत्तेन सुवानयोति न कोधावत्तेन सुआनयो, स. नि. अट्ठ. 1.309; नावत्तेन सुवानयो, स. नि. 1(1).276; स. उ. प. के रूप में, कोधा., चरिया., दक्खिणा., नङ्गला., वारिया.. आवत्तगङ्गा स्त्री., एक प्राचीन जलप्रणाली (नहर) का नाम -गव्ह त्रि., आवत्तगङ्गा नाम वाला/वाली-व्ह नपुं..प्र. वि., ए. व. -- ततो आवतगङ्गव्हं निग्गतं दक्खिणामुखं चू. वं. 79.50. आवत्तति आ + Vवत्त/वट्ट का वर्त., प्र. पु., ए. व., प्रायः आवट्टति के अप. के रूप में प्रयुक्त [आवर्तते], 1. चारों तरफ चक्कर लगाता है, परिक्रमा करता है, परिधि या मण्डल के रूप में घेरा बना देता है, चारों ओर से घेर लेता है, उलटता पुलटता है -(उदरवातो) अधिवासेत असक्कोन्तो आवत्तति परिवत्तति म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).86; आवत्तती च परिवत्तती च, वसुलोपी सम्मुखा रओ, जा. अट्ट. 6.143(रो.); - न्ति ब. व. - उच्छङ्गे आवत्तन्ति विवत्तन्ति, जा. अट्ठ. 7.335; 2. पलटकर वापस आता है, गृहस्थ जीवन की हीन अवस्था में पुनः वापस लौट आता है - सिक्खं पञ्चक्खाय हीनायावत्तति, म. नि. 2.132; अ. नि. 1(1).171; - न्ति ब. व. - सिक्खं पञ्चक्खाय हीनायावत्तन्ति, म. नि. 2.207; इमे दुज्जना ताव तत्थ सासने विसुद्ध पब्बजित्वा पटिनिवत्तित्वा हीनायावत्तन्ति, मि. प. 231; जिनसासने पब्बजित्वा हीनायावत्तन्ति, मि. प. 235; - माना वते. कृ., आत्मने, पु.. प्र. वि., ब. व. -आवत्तमानापि ते जिनसासनस्स सेट्ठभावं येव परिदीपेन्ति, मि. प. 236; - त्तेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. -- न सिक्खं पच्चक्खाय हीनायावत्तेय्याति अयं थेरस्स अधिप्पायो, स. नि. अट्ठ. 2.54; - तिस्सति भवि०, प्र. पु., ए. व. - विहरन्तो सिक्खं पच्चक्खाय हीनायावत्तिस्सतीति. स. नि. 2(2).191; - तिस्ससि म. पु., ए. व. -- सिक्खं पच्चक्खाय हीनायावत्तिस्ससि, उदा. 93; - तिस्सामि उ. पु., ए. व. - सिक्खं पच्चक्खाय हीनायावत्तिस्सामी ति, उदा. 92; म. नि. 2.97; - त्तित्वा पू. का. कृ. - तात
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