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आलोकना
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आलोकसञ्जानन
कसिणादिकम्मट्ठानिकेहि वा पन कम्मट्ठानसीसेनेव आलोकनविलोकनं कातब्ब, म. नि. अट्ट (मू.प.) 1(1).272; स. प. के रूप में, - रूपे अभिक्कमपटिक्कमआलोकनविलोकनसमिजनपसारणवसेन, विसुद्धि. 2.255. आलोकना स्त्री., सूक्ष्म परीक्षण, गम्भीर अन्वेषण – ना प्र. वि., ए. व. - इमेसं तिण्णं नयानं अट्ठारसन्नं मूलपदानं
आलोकना, पेटको. 334. आलोकनिमित्त नपुं., तत्पु. स. [आलोकनिमित्त], आलोक का मानसिक प्रतिविम्ब, प्रकाश का मानसिक चित्र - त्ते सप्त. वि., ए. व. - आलोकसञ्जन्ति आलोकनिमित्ते उप्पन्नसञ्ज. अ. नि. अट्ठ. 3.105; आलोकसाति ....
आलोकनिमित्ते सञ्जा, पटि. म. अट्ठ. 1.89. आलोकनिस्सय पु., तत्पु. स. [आलोकनिःश्रय], आलोक पर आश्रित रहना, प्रकाश-निर्भरता - येन तृ. वि., ए. व. - असम्भोंदेन चक्खुस्स, रूपापाथगमेन च, आलोकनिस्सयेनापि, समनक्कारहेतना, ... जायते चक्खुविआणं, अभि. अव. (पृ.) 69. आलोकपज्जोतकर त्रि., दिन के प्रकाश को लाने वाला (सूर्य) - रो पु., प्र. वि., ए. व. - आलोकपज्जोतकरो पभङ्करो, ... भाणुमा, जा. अट्ठ. 1.183. आलोकपुञ्ज पु., तत्पु. स. [आलोकपुञ्ज], बहुत सारा प्रकाश, प्रकाश की राशि या ढेर, स. प. के अन्त. - पटिभागनिमित्तं घनविप्पसन्नआलोकपुञ्जसदिसं विसुद्धि. 1.167. आलोकफरण पु., तत्पु. स. [आलोकस्फरण], शा. अ., प्रकाश का प्रसार, आलोक का विस्तार अथवा व्यापक फैलाव, ला. अ., प्रज्ञा का प्रसार या फैलाव - णो प्र. वि., ए. व. - यो च आलोकफरणो यञ्च पच्चवेक्षणानिमित्तं नेत्ति. 74; - णेन तृ. वि., ए. व. - दिब्बचक्खु नाम आलोकफरणेन उप्पन्नं आणं, स. नि. अट्ठ. 3.2; - णे सप्त. वि., ए. व. - आलोकफरणे उप्पज्जतीति दिब्बचक्खुपजा आलोकफरणता नाम, दी. नि. अट्ट. 3.224; - समत्थ त्रि., तत्पु. स. [आलोकस्फरणसमर्थ]. आलोक अथवा प्रभा के फैलाव में सक्षम -त्थो पु.. प्र. वि., ए. व. - तीसु दीपेसु एकस्मिं खणे आलोकफरणसमत्थो
आदिच्चो, उदा. अट्ठ. 78. आलोकफरणता स्त्री., आलोकफरण का भाव. [आलोकस्फरणत्व, नपुं.], प्रकाश अथवा प्रज्ञा की दीप्ति
का व्यापक प्रसार होना, दिव्य-चक्षु, प्रज्ञा, सम्मासमाधि के पांच अङ्गों में से प्रथम के रूप में निर्दिष्ट - ता प्र. वि., ए. व. - पञ्चङ्गिको सम्मासमाधि... आलोकफरणता .... दी. नि. 3.223; आलोकफरणे उप्पज्जतीति दिब्बचक्खुपा
आलोकफरणता नाम, दी. नि. अट्ठ. 3.224. आलोकफरणब्रह्म पु., आलोक का व्यापक विस्तार करने वाला ब्रह्मा – हा प्र. वि., ए. व. - लोकधातुसतसहस्सम्हि
आलोकफरणब्रह्मा, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.107. आलोकबहुल त्रि., ब. स. [आलोकबहुल], प्रज्ञा के प्रकाश
की बहुतायत वाला, अत्यधिक मात्रा में प्रज्ञा के आलोक से युक्त, महन्तत्त एवं वेपुलत्त की प्राप्ति के लिए आधारभूत छ गुणों से युक्त, ज्ञान के प्रकाश से प्रदीप्त - लो पु., प्र. वि., ए. व. -भिक्खु आलोकबहुलो च होति.... अ. नि. 2(2). 133; आलोकबहुलोति जाणालोकबहुलो अ. नि. अट्ठ. 3.141. आलोकभूत त्रि., [आलोकभूत]. तेजस्वी, ओजस्वी, ज्योति से प्रदीप्त - तो पु., प्र. वि., ए. व. - ... जोतिना युत्ततो जोति, आलोकीभूतोति वुत्तं होति, स. नि. अट्ठ. 1.143; - तं' द्वि. वि., ए. व. - पस्स ... आलोकभूतं तिद्वन्तं, उमङ्ग साधु मापितान्ति, जा. अट्ठ. 6.289; - तं न., प्र. वि., ए. व. - आलोकजातन्ति आलोकभूतं. जातालोकं वा, विसुद्धि. महाटी. 2.23. आलोकलेन नपुं.. व्य. सं., श्रीलङ्का में आधुनिक नगर कैण्डी
के लगभग पन्द्रह मील-उत्तर की ओर अवस्थित मातले के निकट में विद्यमान आधुनिक आळुविहार, जहां वट्टगामणि अभय के शासनकाल (89-77 ई. प.) में पालि तिपिटक एवं अट्ठकथाओं को पहली बार लिपिबद्ध किया गया, उत्तरकालीन सिंहली पालि-रचनाओं में ही उल्लिखित म. वं. एवं दी. वं. में इसका कोई भी उल्लेख अप्राप्त - ने सप्त. वि., ए. व. - आलोकलेने निसिन्ना जनपदाधिपतिना कतारक्खा पोत्थकेसु लिखापयु, जिना. 61; स. प. के अन्तः, - राजा मातुलरट्ठस्मि आलोकलेनआदिस्, तेस तेसु च रहेसु गिरिलेने तहिं तहिं चू.वं. 98 आलोकविद्धंसनसदिसता स्त्री., भाव., प्रकाश के विखराव
की समानता, उजाला के फैल जाने जैसा - ता प्र. वि., ए. व. - जाणालोकपरिवहनताय मग्गभावनाय आलोकविद्धंसनसदिसता, विसुद्धि, महाटी. 2.474; पाठा. आलोकविदंसनसदिसता. आलोकसञ्जानन नपुं, तत्पु. स., आलोक को सम्यकरूप से जानना, स. प. के अन्त. - विभूतं कत्वा
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