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आलोपभत्तहितिका
216
आळक
आलोपमत्तस्सपि भोजनपिण्डस्स दायका, पे. व. अट्ठ. देता है, खौल बौल कर देता है, मथ देता है, घालमेल कर 152.
देता है, हिला डुला देता है - न्ति ब. व. - सोण्डाय आलोपभत्तद्वितिका स्त्री., विनय की वह व्यवस्था जिसके उदकं आलोळेन्ति, अ. नि. 3(1).240; - ळेन्तो/लुलयन्तो अनुसार 'निमन्तन' के अवसर पर भिक्षुओं को एक बार में __ वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. - उदकं आलुळेन्तो, जा. भोजन का एक ही निवाला देने की अनुमति है - य तृ. अट्ठ. 1.410; - लयमानो उपरिवत्, आत्मने. - सिथिलं वि., ए. व. - ... गहेत्वा आलोपभत्तट्ठितिकाय भाजेतब, सम्मज्जनिं गहेत्वा सम्परिवत्तकं आलोळयमानो, विसुद्धि. चूळव. अट्ठ. 96; - कतो प. वि., ए. व. - 1.103; आलोळयमानो वालिकाकचवरानि आकुलयन्तो, आलोपभत्तद्वितिकतो पट्ठाय आलोपसङ्घपेन भाजेतब्ब, तदे.; विसुद्धि. महाटी. 1.118; - त्वा पू. का. कृ. - सलाकाय द्रष्ट., ठितिका, आलोपट्ठितिका तथा उद्देसभत्त के अन्त., वा.... हेट्नुपरिवसेनेव आलोळेत्वा, चूळव. अट्ठ. 97; उण्होदकेन (आगे).
फाणितं आलोलेत्वा, स. नि. 1(1).204; 2. संभ्रम में डाल आलोपसङ्केप पु., तत्पु. स., 'निमन्तन' के अवसर पर एक देता है, व्यामिश्रित करा देता है, आपस में गड्ड वड्ड करा बार में एक ग्रास या निवाले के रूप में परोसे जा रहे देता है, अव्यवस्थित बना देता है - न्ति वर्त., प्र. पु.. भोजन का विभाजन (उद्देसभत्त के अवसर पर इस प्रकार ए. व. - अभिधम्मिका पन धम्मन्तरं न आलोळेन्ति, ध, स. का विभाजन विनय-सम्मत नहीं माना गया है)- पेन तृ. अट्ठ. 31; - ळेसि अद्य., प्र. पु., ए. व. - वि., ए. व. - आलोपसङ्केपेन भाजेतब्ब, चूळव. अट्ठ. 96. अभिसम्बुज्झनकसत्तं अयं किलेसो आलोळेसि, जा. अट्ठ. 2. आलोपिक त्रि., आलोप से व्यु., निवाले भर भोजन पर 227; विसुद्धसत्तेपेस आलोलेसियेवाति, जा. अट्ट, 4.296; --
जीवित रहने वाला, स. उ. प. के रूप में, सत्ता.- सात ळेस्सति भवि., प्र. पु., ए. व. --- तादिसं कि निवालों वाले भोजन पर जीवित रहने वाला -- को पु., प्र. नालोलेरसती ति, जा. अट्ठ. 2.227; 3. (ग्रन्थ का) वि., ए. व. - सत्तागारिको वा होति सत्तालोपिको, म. नि. मन्थन करता है, खंगालता है - त्वा पू. का. कृ. -
इमिस्सा गाथाय अत्थं पिटकत्तय आलोलेचा संवण्णेही ति, आलोळ' पु./नपुं.. आ + Vलुळ से व्यु. [आलोड], 1. सा. वं. 28; तीसु वेदेसु आलोळेत्वा पहं पुच्छि, सा. वं. हिला देना, 2. घालमेल कर देना, क्षोभ, 3. व्यग्रता, संभ्रम, 28. खलबलाहट - ळं द्वि. वि., ए. व. - 'एस गन्वा किञ्चि आळ/अळ नपुं.. [अल]. बिच्छू का डंक - ळं प्र. वि., ए. आलोळ करेय्या ति, ध. प. अट्ठ. 1.26.
व. - आळं विच्छिक - नकुलं, अभि. प. 621 पर सूची. आलोळ त्रि., [आलोल], चञ्चल, व्यग्र, अस्थिर, हिलडुल आळक' पु./नपुं., क. पशुओं को बन्द करके रखने हेतु रहा, स. उ. प. के रूप में, दोला.- - ला पु., प्र. वि., प्रयुक्त बांडा या व्रज, वह घिरा हुआ क्षेत्र जिसके भीतर ब. व. - दोळालोलाव ते कण्णा, वेवण्णं समुपागता, अप. पशुओं को खूटों अथवा पगहों में बांध कर रखा जाता है, 2245.
पशुशाला, गोशाला, गोढ - कं द्वि. वि., ए. व. - उसभोव आलोळित त्रि., आ + Vलुळ का प्रेर., भू. क. कृ. [आलोडित], आळकं भेत्वा, पत्तो सम्बोधिमुत्तम, बु. वं. 26.2; आळकन्ति व्यग्र, विक्षोभित या बेचैन कर दिया गया, बाधित, मथ दिया गोद यथा उसभो गोट्ट भिन्दित्वा .... बु. वं. अट्ठ. 303; - गया, दुष्प्रभावित कर दिया गया - तं प., वि. वि., ए. व. के सप्त. वि., ए. व. - पक्खिपन्तं ममाळके, चरिया. - मत्तकुञ्जरेहि... आलोळितपदेसं थेरीगा. अट्ठ. 277. 2.1.9(पृ.385); ममाळकेति आलानत्थम्भे, चरिया. अट्ठ. 1093; आलोळी स्त्री., आ + Vलुळ से व्यु., तरल मिश्रण, स. उ... ख. बाण या तीर को सीधा करने हेतु प्रयुक्त उपकरण - प. में प्राप्त, सीता.- ठण्डा तरल मिश्रण – ळिं द्वि. वि., कं द्वि. वि., ए. व. - इस्सासो आळकं परिहरति ए. व. - तेन खो पन समयेन अञ्जतरस्स भिक्खुनो वजिम्हकुटिलनाराचरस उजुकरणाय, मि. प. 391; यथा घरदिन्नकाबाधो होति, भगवतो एतमत्थं आरोचेसं अनुजानामि नाम उसुकारो अरञतो एक वङ्कदण्डकं आहरित्वा नित्तचं भिक्खवे, सितालोळि पायेतुन्ति, महाव. 282.
कत्वा कब्जियतेलेन मक्खेत्वा अङ्गारकपल्ले तापेत्वा आलोळेति/आलोलेति/आलुळेति आ + Vलुळ का रुक्खालके उप्पीत्वा निव उजं वालविज्झनयोग्गं करोति, प्रेर., वर्त, प्र. पु., ए. व. [आलोडयति], 1. आलोड़ित कर ध. प. अट्ठ. 1.163; ग. एक पौधे या झाड़ीदार पादप का
2.5.
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