________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आरम्मणविमुत्ति
178
आरम्मणसमतिक्कम
आरम्मणविमुत्ति स्त्री., तत्पु. स., रूप आदि आलम्बनों के प्रति राग से छुटकारा - त्तीसु सप्त. वि., ब. व. - आरम्मणविमुत्तीसु, सभावदस्सनो मुनि, अप. 1.352. आरम्मणवियोग पु., तत्पु. स., आलम्बनों से बिलगाव - स्स ष. वि., ए. व. - आरम्मणवियोगस्स चेव दक्खवियोगस्स च अप्पदानतो योगातिपि तेस व अधिवचनं, विसृद्धि. 2.322. आरम्मणविसभागता स्त्री., आलम्बन की भिन्नता - य त. वि.,
ए. व. - ... कस्मा? आरम्मणविसभागताय विसुद्धि. 1.307. आरम्मणवीथि स्त्री., आलम्बनों को ग्रहण करने अथवा उनका ज्ञान करने की प्रक्रिया वाला मार्ग, स. उ. प. के रूप में, पञ्चा.- चक्षु आदि पांच इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य रूप आदि पांच आलम्बनों के ग्रहण की प्रक्रिया -या ष. वि., ए. व. - इट्ठमज्झत्ते पञ्चारम्मणवीथिया सन्तीरणं हुत्वा ..., अभि. अव. 11. आरम्मणसङ्कन्ति स्त्री., तत्पू. स. [आलम्बनसंक्रान्ति], ध्यान के क्रम में किसी एक आलम्बन को छोड़कर दूसरे आलम्बन का ग्रहण, विभिन्न आलम्बनों का एक ही ध्यान में संक्रमण, पठवीकसिण, आपोकसिण आदि सभी कसिणों का एक ही ध्यान में आलम्बन के रूप में ग्रहण - न्ति प्र. वि., ए. व. - ... सुखुमं पन चित्तन्तरं खन्धन्तरं ... अङ्गसङ्कन्ति आरम्मणसङ्कन्ति एकतोवड्वनं उभतोबड्डनन्ति आभिधम्मिकधम्मकथिकस्सेव पाकट, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).153; पठवीकसिणे पठमं झानं समापज्जित्वा तदेव आपोकसिणेति एवं सब्बकसिणेसु एकस्सेव झानस्स समापज्जनं आरम्मणसङ्कन्ति, म. नि. टी. (मू.प.) 1(2). 179; तस्स तस्सेव हि झानस्स आरम्मणन्तरे पवत्ति
आरम्मणसङ्कन्ति, विसुद्धि. महाटी. 2.4. आरम्मणसङ्कन्तिक त्रि., सभी कसिणों (कृत्स्नों) अथवा आलम्बनों पर किसी एक ही ध्यान की प्राप्ति से सम्बन्धित - कं नपुं., प्र. वि., ए. व. - "सब्बकसिणेसु एकस्सेव झानस्स समापज्जनं आरम्मणसङ्कन्तिकं नामा"ति, विसुद्धि. महाटी. 2.4; - तो प. वि., ए. व. - तस्मा इद्धिविधं ताव सम्पादेतुकामो... अङ्गसङ्कन्तिकतो आरम्मणसङ्कन्तिकतो... इमेहि चुद्दसहि आकारेहि चित्त परिदमेत्वा ..., पटि. म. अट्ठ. 1.277. आरम्मणसङ्ख्यात त्रि, आलम्बन के रूप में विख्यात, तथाकथित आलम्बन - तानं स्त्री., ष. वि., ब. व. - एतेसञ्च पथवी
कसिणादिवसेन नवन्न आरम्मणसङ्घातानं रूपस आनं, सब्बाकारेन अनवसेसानं वा विरागा च निरोधा च .... विसुद्धि. 1.318. आरम्मणसञ्जानन नपुं., तत्पु. स., आलम्बनों का समुचित
रूप में ज्ञान – नं प्र. वि., ए. व. - आरम्मणसञ्जाननञ्चेव विपस्सनाय च विसयभावं उपगन्त्वा निबिदाजनन, ध. स. अट्ठ. 252; - मत्त नपुं., केवल आलम्बन का ज्ञान - त्तं द्वि. वि., ए. व. - सा "नील पीतक"न्ति
आरम्मणसञ्जाननमत्तमेव होति, विसुद्धि. 2.63. आरम्मणसन्तता स्त्री., ध्यान के आलम्बन का शान्त भाव, आलम्बन की परम सूक्ष्मता – य तृ. वि., ए. व. - अपि च खो आरम्मणसन्ततायपि सन्तो वपसन्तो निबुतो..., स. नि. अट्ठ. 3.300; अङ्गसन्तताय आरम्मणसन्तताय
सब्बकिलेसदरथसन्तताय च सन्तो, दी. नि. अट्ट. 3.225. आरम्मणसभागता स्त्री., आलम्बन की समरूपता, आलम्बन की समानता - य तृ. वि., ए. व. - मेत्तादीसु उप्पन्नततियज्झानस्से व पन उप्पज्जति, आरम्मणसभागतायाति, विसुद्धि. 1.307; कम्मसभागताय वा आरम्मणसभागताय वा तस्सेव कम्मरस विपाकावसेसो ति, पारा. अट्ठ. 2.88; आरम्मणसभागतायाति आरम्मणस्स
सभागभावेन सदिसभावेन, सारत्थ. टी. 2.261. आरम्मणसभाव पु., आलम्बनों की यथार्थ प्रकृति, आलम्बनों
का वास्तविक स्वभाव - मोहो चित्तस्स अन्धभावलक्खणो ... आरम्मणसभावच्छादनरसो वा, ... सब्बाकुसलानं मूलन्ति
दट्टब्बो, विसुद्धि. 2.96. आरम्मणसमतिक्कम पु., आलम्बनों का उल्लंघन, आलम्बनों पर विजय, चार प्रकार के अरूप ध्यानों में आका । की अनन्तता आदि आलम्बनों का अतिक्रमण - मो प्र. वि., ए. व. - समतिक्कमोतिद्वे समतिक्कमा अङ्गसमतिक्कमो च आरम्मणसमतिक्कमो च, विसद्धि. 1.108; - मं द्वि. वि., ए. व. - आरम्मणसमतिक्कम अवत्वा ... सानंयेव समतिक्कमो वुत्तो, ध. स. अट्ट. 245; - मेन तृ. वि., ए. व. - आरम्मणसमतिक्कमेन पत्तब्बा एता समापत्तियो, ध. स. अट्ठ. 246; - स्स प. वि., ए. व. - कसिणादिआरम्मणसमतिक्कमस्स पाकटत्ता तं अवत्वा सत्तन्तेसु वुत्तरूपसादिसमतिक्कमो वृत्तो, पटि. म. अट्ठ. 2.139-140; - भूत त्रि., आलम्बनों का अतिक्रमण कर चुका -- तं नपुं.. द्वि. वि., ए. व. - ... अङ्गेसु समतिक्कमितब्बाभावेन आरम्मणसमतिक्कमभूतं
For Private and Personal Use Only