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आरम्मणूपनिज्झायन 181
आराधन आरम्मणूपनिज्झायन नपुं. तत्पु. स. , आलम्बन पर रि पु., द्वि. वि., ए. व. - अज्जतग्गे मं आयस्मन्तो ध्यान, आलम्बन पर चित्त की एकाग्रता, स. उ. प. में, - ब्रह्मचारिंधारेथ आराचारि अ. नि. 2(1).200; -- रिनो' पु.,
कसिणादिआरम्मणूपनिज्झायनतो, पारा. अट्ठ. 1.107. प्र. वि., ब. व. - ब्रह्मचारिनो धारेतु आराचारिनो विरता आरम्मणपनिस्सय पु०, उपनिस्सय-पच्चय के तीन प्रभेदों मेथुना गामधम्मा, अ. नि. 2(1).201; - रिनो' पु., वि. वि., में से वह प्रभेद जिसमें आलम्बन (कुशल धर्मों आदि के) ब. व. - ब्रह्मचारिनो धारेतु आराचरिनो, अ. नि. 2(1).201. सुदृढ़ आधार के रूप में उपनिस्सय-पच्चय बन जाते हैं - आरादेस पु., तत्पु. स., केवल व्याकरण में प्रयुक्त, व्याकरणयो प्र. वि., ए. व. - सो आरम्मणपनिस्सयो विषयक शब्द, 'आरा' का आदेश- तो प. वि., ए. व. - अनन्तरूपनिस्सयो पकतपनिस्सयोति तिविधो होति, विसुद्धि. ततो आरादेसतो सब्बेसं योनं ओकारादेसो होति सत्थारो 2.165; ... गरुकतब्बमत्तटेन आरम्मनाधिपति बलवकारणद्वेन ..., क. व्या. 205, 209. आरम्मणूपनिस्सयोति एवमेतेसं नानत्तं वेदितब्बं, तदे.; आराध क. पु., [आराध], आराधना, सम्मान-धो प्र. वि., सवितक्कसविचारो धम्मो सवितक्कसविचारस्स धम्मस्स ए. व. - आराधो मे रुओ, एवं आराधो मे राजानं, क. व्या. उपनिस्सयपच्चयेन पच्चयो- आरम्मपनिस्सयो..., पट्ठा. 279; ख. त्रि., सम्मान व्यक्त करने वाला, आराधना करने 2.80; 81-86; 138-143; 189-191; 248-250; 298-300; वाला-आराधो हं रुओ एवं आराधो हं राजानं, सद्द. 3.696%3; 335; - लक्खण नपुं.. सुदृढ़ आधार वाले आलम्बन रहने - पेक्ख त्रि., आराधना अथवा सम्मान करने की अपेक्षा का लक्षण - णेन तृ. वि., ए. व. - रखने वाला, सम्मान देने का इच्छुक - क्खो पु.. प्र. वि., आरम्मणपनिस्सयलक्खणेन उपनिस्सयपच्चये सङ्गहं गच्छति, ए. व. - आराधापेक्खो मञ्जुना सरेन गायि, महाव. 467. प. प. अट्ठ. 459.
आराधक त्रि., आ + Vराध से व्यु. [आराधक]. श. अ.. आरम्मणोक्कन्तिक त्रि., आलम्बनों का परिहार करने सफल, उत्साही, उत्सुक, सम्पादक, पूर्ण कर देने वाला, वाला, आलम्बनों को लांघ जाने वाला-कं नपुं., प्र. वि., अच्छी तरह से प्राप्त, ला. अ., प्रसन्न कर देने वाला, ए. व. -- सुखुमं... झानोक्कन्तिकं आरम्मणोक्कन्तिक, म. श्रद्धा-युक्त, सम्मानभाव देने वाला, सन्तोषप्रद, सेवानि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).153.
आराधना करने वाला - को पु., प्र. वि., ए. व. - आरा' स्त्री., [आरा], सुई, सूजा, टेकुआ - आरा तु अअतिथियपुब्बो आराधको होति, महाव. 88; कुद्धो सूचिविज्झनं, अभि. प. 528; ण-कारा, हारा, तारा, आरा, मो. आराधको होति, कुद्धो होति गरहियो, परि. 404; अभिन्नस्स व्या. 5.49; चम्मकारानं चम्मवेधने प्यारा, अभि. प. सूची 41. वा परबलस्स भेदेता भिन्नस्स वा सकबलस्स आराधको, आरा' अ., निपा. [आरात्], दूर का, (से) दूर, दूरवर्ती - जा. अट्ठ. 5.113; - कं पु., वि. वि., ए. व. - अरहन्तो
आरा दूरा च आरका, अभि. प. 1157; आरादूरेति ... आराधकं पुग्गलं अरियमग्गेन पुनन्ति, जा. अट्ठ. 4. अञ्जमञ्जवेवचनं अतिदूरेति वा दस्सेन्ती एव माह, जा. 70; - स्स पु., ष. वि., ए. व. - राजा नाम यस्स करसचि अट्ठ. 4.32; क. द्वि. वि. में अन्त होने वाले शब्द के साथ आराधकस्स पसीदित्वा वरितं वरं दत्वा कामेन तप्पयति - एवं आचिनतो दुक्खं आरा निब्बानमुच्चति, स. नि. ..., मि. प. 213; - का' पु., प्र. वि., ब. व. - भिक्खू 2(2).79; आरा सिङ्घामि वारिज, स. नि. 1(1).237; आराति आराधका अभविस्संसु. म. नि. 2.170; - का स्त्री., प्र. दूरे नाळे गहेत्वा ... वदति, स. नि. अट्ट, 1.262; ख. प... वि., ब. व. - भिक्खुनियो च आराधिका, एवमिदं ब्रह्मचरिय वि. में अन्त होने वाले शब्द के पूर्व-सर्ग के रूप में - परिपूरं तेनङ्गेन, म. नि. 2.170. आसवा तस्स वड्डन्ति आरा सो आसवक्खया, ध. प. 253; आराधन/आराधना नपुं./स्त्री., आ + vराध से व्यु., क्रि. सहनन्दी अमच्चेहि, आरा संयोजनक्खया, इतिवु. 53; ऊहते ना. [आराधना], क. कार्य का सम्पादन, कार्य की पूर्णता, चित्ते आरा चित्तं समाधिम्हाति, म. नि. 1.165; आराति दूरे सफलता, उपलब्धि, ख. अनुकूल वस्तु या व्यक्ति की म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).396.
उपलब्धि या प्राप्ति, सन्तोष - आराधनं साधने च पत्तिय आराचारी त्रि., सदाचारी, पापकर्मों से दूर रहने वाला, शुद्ध परितोसने, अभि. प. 887; - ना प्र. वि., ए. व. - कथं
आचार से सम्पन्न -री पु., प्र. वि., ए. व. - ब्रह्मचरियं आराधना होति, कथं होति विराधना, दी. नि. 2.212; .... आराचारी विरतो मेथुना गामधम्माति, दी. नि. 1.4; - आराधनाति सम्पादना, दी. नि. अट्ठ. 2.298; मिच्छत्तं
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