Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 207
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आरम्मणानन्तर 180 आरम्मणूपनिज्झान व. - गरुकत्वा अस्सादनकाले आरम्मणाधिपतिआरम्मणूप निस्सयेहि, विसुद्धि. 2.170; - णूपनिस्सयपच्चय पु., उपरिवत् -- येहि तृ. वि., ब. व. - आरम्मणाधिपति आरम्मणूपनिरसयपच्चयेहि रूपस्स पच्चयभावो दस्सितो, ध. स. अट्ठ. 344; - पच्चय पु., अधिपति-प्रत्यय के दो प्रभेदों में से एक, अधिपतिभूत आलम्बन, चित्त एवं चैतसिकों का वह (कुशल) आलम्बन अथवा ग्राह्य विषय जो अन्य आलम्बनों की अपेक्षा अधिक गुरु अथवा महत्त्वपूर्ण बन गया हो - येन तृ. वि. ए. व. - अधिपतिपच्चयेनाति आरम्मणाधिपतिपच्चयेन, विसुद्धि. महाटी. 2.255; - पच्चयता स्त्री॰, भाव., आरम्मणाधिपति – नामक प्रत्यय होने की स्थिति - य तृ. वि., ए. व. - निब्बानं आरम्मणाधिपतिपच्चयताय अत्तनि अनवज्जधम्मे नामेति, ध. स. अट्ठ. 414. आरम्मणानन्तर पु., द्व. स., आरम्मण-प्रत्यय एवं अनन्तर- प्रत्यय - रेहि तृ. वि., ब. व. - आरम्मणानन्तरेहि असम्मिस्सोति अत्थो, विसुद्धि. 2.165. आरम्मणानुभवन नपुं, तत्पु. स., आलम्बनों अथवा विषय का अनुभव, स. प. के रूप में, अनिट्ठ- न, अप्रिय आलम्बन का अनुभव - लक्खण त्रि., वह, जिसका लक्षण अप्रिय आलम्बन का अनुभव करना हो- णं नपुं., प्र. वि., ए. व. - अनिट्ठारम्मणानुभवनलक्खणं दोमनस्सं विसुद्धि. 2.88. आरम्मणानुमज्जन नपुं., तत्पु. स., आलम्बन का बारम्बार अनुचिन्तन - लक्खण त्रि., वह, जिसका लक्षण आलम्बन का पुनः पुनः अनुचिन्तन हो- णो पु., प्र. वि., ए. व. - विचरणं विचारो, ... स्वायं आरम्मणानुमज्जनलक्खणो, विसुद्धि. 1.137. आरम्मणान्वय पु.. तत्पु. स., आलम्बन का अनुगमन - येन तृ. वि., ए. व. - आरम्मणअन्वयेन, उभो एकववत्थना, विसुद्धि. 2.276. आरम्मणाभिमुख त्रि., ब. स., आलम्बन की ओर उन्मुख, आलम्बन के ग्रहण में प्रवृत्त - खा पु., प्र. वि., ब. व. - चत्तारो खन्धा नाम, ते हि आरम्मणाभिमुखा नमन्ति, ध. स. अट्ठ. 414; - खं' स्त्री., द्वि. वि., ए. व. - आरम्मणाभिमुखं सतिं ठपयित्वा, उदा. अट्ठ. 152; - खं' क्रि. वि. - आरम्मणाभिमुखं नमनतो चित्तस्स च नतिहेतुतो सब्बम्पि अरूपं नामन्ति वुच्चति, खु. पा. अट्ठ. 61; - नमन नपुं.. आलम्बन की ओर झुकाव, रूप आदि विषयों की ओर प्रवृत्ति - नं प्र. वि., ए. व. - आरम्मणाभिमुखनमनं आरम्मणेन विना अप्पवत्ति, तेन नमनटेन नामकरणद्वेन, विसुद्धि, महाटी. 2.329; - तो प. वि., ए. व. -- आरम्मणाभिमुखं नमनतो नमनटेन नाम, विसुद्धि. 2.220; - प्पवत्तसति त्रि., आलम्बन की ओर अभिमुख होकर प्रवृत्त स्मृति से युक्त, जागरुक स्मृति से युक्त - नं पु., ष. वि., ब. व. - निच्चं आरम्मणाभिमुखप्पवत्तसतीनमेतं अधिवचनं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).198; - भाव पु., आलम्बन की ओर अभिमुख या जागरुक होना- वेन तृ. वि., ए. व. - सतिपि मे आरम्मणाभिमुखभावेन उपट्टिता अहोसि, अ. नि. अट्ठ. 3.205. आरम्मणाभिमुखीभाव पु., आलम्बन की ओर प्रवृत्ति, आलम्बन के प्रति जागरूकता - वेन तृ. वि., ए. व. - सतिपि मे आरम्मणाभिमुखीभावेन उपद्विता अहोसि, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).131. आरम्मणिक त्रि., आरम्मण + इक के योग से व्यु., केवल स. उ. प. में ही प्रयुक्त [आलम्बनिक], आलम्बन से सम्बद्ध, रूप आदि छ आलम्बनों के साथ जुड़ा हुआ, छळा.- त्रि., छ आलम्बनों से सम्बद्ध - का पु., प्र. वि., ब. व. - इधेकचत्तालीसेव, छळारम्मणिका मता, अभि. अव. 364; तदा.- त्रि., उसे अपना आलम्बन बनाने वाला - तदारम्मणकं भवे. तदे. 444. आरम्मणिय त्रि., आ + (रम का सं. कृ. [आरमणीय], आनन्द लेने योग्य, आमोद-प्रमोद से भरपूर - यं नपुं. प्र. वि., ए. व. - उद्धच्चकुक्कुच्चरस रजनीयं आरम्मणियं अरसादियाकिन्द्रियं ताव अपरिपूण्णञ्च आणं पच्चयो, पेटको. 273. आरम्मणूपनिज्झान नपुं.. तत्पु. स., आलम्बन के विषय में अनुचिन्तन, आलम्बन पर चित्त की एकाग्रता, आलम्बन पर ध्यान लगाना - नं' प्र. वि., ए. व. - आरम्मणूपनिज्झानं, लक्खणूपनिज्झानन्ति दुविधं होति, पारा. अट्ट, 1.107; - नं द्वि. वि., ए. व. - झायस्सु आरम्मणूपनिज्झानं अनुयुञ्ज, थेरगा. अट्ठ. 2.88; - नेन तृ. वि., ए. व. - आरम्मणूपनिज्झानेन अट्ठतिंसारम्मणानि. म. नि. अट्ट (मू.प.) 1(1).203; - तो प. वि., ए. व. - आरम्मणूपनिज्झानतो पच्चनीकज्झापनतो वा झानन्ति वेदितब्ब, ध, स. अट्ठ. 211; - ने सप्त. वि., ए. व. - आरम्मणूपनिज्झाने लक्खणूपनिज्झाने च रतो, थेरगा. अट्ठ. 1.58; - सङ्खात त्रि., आरम्मणूपनिज्झान नाम से प्रसिद्ध, स. प. में, -- लक्खणूपनिज्झानआरम्मणूपनिज्झानसङ्खातेहि झानेहि झायति, जा. अट्ठ. 5.240. For Private and Personal Use Only

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