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आरुप्प
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आरुय्ह
ज्झान नपुं. कर्म. स., अरूपध्यान, रूपरहित चार आलम्बनों पर ध्यान - स्स ष. वि., ए. व. - ततियस्स आरुप्पज्झानस्स आरम्मणत्ता, पटि. म. अट्ठ. 2.144; - नानि प्र. वि., ब. व. - चत्तारि आरुप्पझानानिपि, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 1(1).171; - द्वायी त्रि., अरूपध्यान में स्थित, अरूपलोक अथवा रूप-रहित ब्रह्मलोकों में विद्यमान - यिनो पु., प्र. वि., ब. व. - अरूपट्ठायिनोति अरूपावचरा, इतिवु. अट्ठ. 195; ये च रूपूपगा सत्ता, ये च अरूपठ्ठायिनो, इतिवु. 463; सु. नि. 759; - देसना स्त्री., तत्पु. स., अरूपध्यान अथवा अरूप-भूमि के विषय में उपदेश - नं द्वि. वि., ए. व. - सब्बप्पकारेन आरुप्पदेसनमेव भजति, ध. स. अट्ठ. 231; -- निद्देस पु., विसुद्धि के दसवें परिच्छेद का शीर्षक, इस परिच्छेद में चार अरूपध्यानों का विवेचन है, विसुद्धि. 1.316-331; विसुद्धि. महाटी. 1.370-387; - पटिसन्धि स्त्री., तत्पु. स., अरूप-लोक में पुनर्जन्म, रूपरहित ब्रह्मलोकों में पुनर्जन्म का ग्रहण - या ष. वि., ए. व. - अरूपपटिसन्धिया ... कम्मनिमित्तमेव यथारहमारम्मणं होति, अभि. ध. स. 40; - पादक त्रि., अरूपध्यान अथवा अरूपलोक को प्राप्त कराने वाला-कं स्त्री., द्वि. वि., ए. व. - "आरुप्पपादकं फलसमापत्ति न्ति, उदा. अट्ठ. 1983; - बोधन नपुं, तत्पु. स., अरूपध्यान-विषयक ज्ञान, स. उ. प. के रूप में, चतुत्था.- चौथे अरूपध्यान के विषय में ज्ञान - ने सप्त. वि., ए. व. - सावेतब्बो अयं अत्थो, चतुत्थारुप्पबोधने, अभि. अव. 1035; - भव पु., कर्म. स., रूपरहित लोक में अस्तित्व, रूपरहित ब्रह्मलोकों में उत्पत्ति - वे सप्त. वि., ए. व. - रूपं पनेत्थ आरुप्पभवे भवति पच्चयो, विभ. अट्ठ. 166; - भूमि स्त्री., कर्म. स., रूपरहित ध्यान-आलम्बनों वाली चित्तभूमि, चित्त या चेतना का वह स्तर जिसमें चित्त चार रूपरहित आलम्बनों पर एकाग्र किया जाता है - यं सप्त. वि., ए. व. - तेचत्तालीस चित्तानि, नत्थि आरुप्पभूमियं, अभि. अव. 213; - यो द्वि. वि., ब. व. - अपरानि चतस्सोपि, ठपेत्वारुप्पभूमियो, चित्तानि पन जायन्ति, अभि. अव. 194; - सु सप्त. वि., ब. व. - विपाका होन्ति सब्बेव, चतूस्वारुप्पभूमिसु, अभि. अव. 270; - मानस नपुं०. तत्पु. स., अरूपावचर ध्यान का चित्त, अरूपभूमि में सक्रिय चित्त - सं प्र. वि., ए. व. - चतुत्थं पञ्चमं वापि, होति आरुप्पमानसं, अभि. अव. 996; आलम्बनअभेदेन, चतुधारुप्पमानसं, अभि. ध. स. 6; - विज्ञाण नपुं., अरूपावचरध्यान का विज्ञान, अरूपावचर
नामक भूमि का चित्त, स. उ. प. के रूप में, पठमा.प्रथम अरूपध्यान का चित्त - णं प्र. वि., ए. व. - तमेव पठमारुप्पविञआणं अनन्तवसेन परिकम्मं करोन्तस्स दुतियारुप्पमप्पेति, अभि. ध. स. 65; पठमारुप्पविञआणाभावो तस्सेव सुञतो, अभि. अव. 1010; - विपाक त्रि., अरूपावचर भूमि का विपाकभूत (चित्त) अरूपभूमि के वे चार चित्त, जो अरूपावचर भूमि के चार कुशलकर्मों के विपाक के रूप में उदित होते हैं - कानि नपुं.. प्र. वि., ब. व. - ... चत्तारि आरुप्पविपाकानीति सोळस चित्तानि नेव रूपं जनयन्ति, न इरियापथं, न वित्ति, विसुद्धि. 2.249; - केसु नपुं., सप्त. वि., ब. व. - आरुप्पविपाकेसु ... आनेञ्जाभिसङ्घारं आरभति, विसुद्धि. 2.161; - विमोक्ख पु., तत्पु. स., अरूपावचर भूमि में प्राप्त विमुक्ति – क्खा प्र. वि., ब. व. - अङ्गसन्तताय चेव आरम्मणसन्तताय च सन्ता आरुप्पविमोक्खा, स. नि. अट्ठ. 2.110; - सङ्घात त्रि., आरूप्य नाम से जाना गया, स. प. के रूप में, - ततियारूप्पसङ्खातरवन्ध पु., तृतीय अरूपावचर नामक स्कन्ध - धेसु सप्त. वि.. ब. व. - ततियारुप्पसङ्घातखन्धेसु च चतूसुपि, अभि. अव. 1027; - समापत्ति स्त्री., तत्पु. स. [बौ. सं. आरूप्यसमापत्ति], अरूपावचरध्यान की प्राप्ति - यो प्र. वि., ब. व. - सब्बथा आरम्मणातिक्कमतो चतस्सोपि भवन्तिमा आरुप्पसमापत्तियोति बेदितब्बा, विसुद्धि. 1.328; - तिं द्वि. वि., ए. व. - अच्चन्तसुखुमभावप्पत्तसङ्घारं चतुत्थारुप्पसमापत्ति, विसुद्धि. 1.326; - सम्भव पु.. तत्पु. स., अरूपभूमि में जन्म, अरूपध्यान के क्रम में उदित, स. उ. प. के रूप में चतुत्था.- चतुर्थ अरूपध्यान से उत्पन्न - म्भवा प्र. वि., ब. व. - नेवसाति निद्दिष्ट्ठा, चतुत्थारुप्पसम्भवा, अभि. अव. 1036; - प्पारम्मण नपुं. तत्पु./कर्म. स., अरूपावचर ध्यान का आलम्बन, आलम्बन के रूप में अरूपावचर भूमि - णेसु सप्त. वि., ब. व. - आरुप्पारम्मणेसपि आकासं कसिणग्घाटिमत्ता, विसुद्धि. 1.1103; -- प्पासञ त्रि., अरूपभूमि की संज्ञा से रहित अरूप-लोक से अनभिज्ञ या अनजान - जनपुं.. प्र. वि., ए. व. - तयो
अपाया आरूप्पासनं पच्चन्तिमम्पि च, सद्धम्मो. 5. आरुय्ह आ + ग्रुह का पू. का. कृ. [आरुह्य]. ऊपर चढ़ कर, आरुढ़ हो कर, सवार हो कर, ऊपर जा कर, ऊपर पहुंच कर - परित्तं दारुमारुय्ह, यथा सीदे महण्णवे. थेरगा. 147; पुनपारुयह चङ्कम, थेरगा. 272; पुनपारुयह चङ्कमन्ति ... पुनपि चङ्कमट्ठानं आरुहित्वा, थेरगा. अट्ठ. 2.5;
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