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आलम्बगामवापी
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आळम्बर/आलम्बर आलम्बगामवापी स्त्री., श्रीलङ्का में स्थित आलम्बगाम- आलम्बन नपुं॰, आ + Vलम्ब से व्यु., क्रि. ना. [आलम्बन], नामक गांव की बावली, बौली या जलाशय - पिं द्वि. वि., शा. अ., सहारा, आश्रय, आधार, ला. अ., 1. थूनी, ए. व. -- आलम्बगामवापिं सो जेट्टतिस्सो अकारयि. म. टेक, छड़ी- नं द्वि. वि., ए. व. - आलम्बनं करित्वान, वं. 36.131.
सङ्घस्स अददं अहं, अप. 1.309; हेट्ठा पतिट्ठाभावेन उपरि आलम्बण नपुं., आलम्बन का ही रूपान्तरण [बौ. सं. आलम्बनाभावेन च गम्भीरो, सु. नि. अट्ठ. 1.183; ला. अ..
आलम्बन, आरम्मण], रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पृष्टव्य एवं 2. त्रि., सहारा या आश्रय देने वाला - नो पु., प्र. वि., धर्म, इन्द्रियों एवं चित्त द्वारा ग्राह्य छ विषय, ध्यानप्रक्रिया ए. व. - सो तुम्हाकं उपट्ठाको भविस्सति आलम्बनो चाति, में चित्त के आलम्बन के रूप में निर्धारित चालीस कर्मस्थानों मि. प. 130; - त्थम्भ पु., तत्पु. स. [आलम्बनस्तम्भ], में कोई एक, - णं प्र. वि., ए. व. - आरम्मणं आलम्बणं चंक्रमण पथ के अन्त में टिकने अथवा सहारा लेने हेतु निस्सयं, चूळनि. 91; आलम्बणं मया दिन्नं, अप. 1.223; स. गाड़ा गया लकड़ी का खम्भा - म्भं द्वि. वि., ए. व. - उ. प. में, छा.- छ प्रकार का आलम्बन - णं प्र. वि., ए. भिक्खु चङ्कमे चङ्कममानो वा आलम्बनत्थम्भ निस्साय ठितो, व. --- छालम्बणं मनोद्वारे, ना. रू. परि. 239; स. पू. प. स. नि. अट्ठ. 1.77; - दण्ड पु., तत्पु. स. [आलम्बनदण्ड, के रूप में, -- दायकत्थेरअपदान नपुं., अप. के एक सहारा देने वाली छड़ी या बेंत - स्मिं सप्त. वि., ए. व. खण्ड का शीर्षक, अप. 1.223; - भूत त्रि., किसी (इन्द्रिय - अथालम्बनदण्डस्मिं कत्तरयट्टि नारियं, अभि. प. 443; - अथवा चित्त) के लिए आलम्बन या विषय बना दिया गया नङ्गल नपुं.. तत्पु. स., फसल बोने से सम्बद्ध उत्सव के - तेसु पु., सप्त. वि., ब. व. – तथा कामावचरजवनावसाने अवसर पर राजा द्वारा प्रयुक्त हल, सहारा देने वाला हल ... कामावचरधम्मेस्वेव आरम्मणभूतेस तदारम्मणं इच्छन्तीति, - लं प्र. वि., ए. व. - ओ आलम्बननङ्गलं पन अभि. ध. स. 28; - मन त्रि., ब. स., आलम्बन से जुड़े रत्तसुवण्णपरिक्खतं होति, जा. अट्ट. 1.67; - फलक हुए मन वाला – नं नपुं., प्र. वि., ए. व. - आलम्बणमनं नपुं., तत्पु. स., चंक्रमण करते हुए बीच में विश्राम लेने चित्तं, ना. रु. परि. 73; - समोधान त्रि०, ब. स., हेतु सहारा देने वाला काष्ठ-फलक या लकड़ी का तख्ता आलम्बन के साथ जुड़ाव रखने वाला, आलम्बन की - कं प्र. वि., ए. व. - चङ्कमे अपस्साय तिट्ठन्तरस सहवर्तिता से युक्त - नो पु., प्र. वि., ए. व. - आलम्बनरुक्खो वा आलम्बनफलक वा सब्बम्पेतं आलम्बणसमोधानो, फरसो फुसनलक्खणो, ना. रू. प. 74; अपस्सयनीयढेन अपस्सेन नाम, पारा. अट्ठ. 2.51; - बाहा - रस त्रि., ब. स., वह जिसके लिए आलम्बन ही सारभूत स्त्री., तत्पु. स., सीढ़ियों का जंगला, सीढ़ियों के दोनों ओर तत्त्व हो - सा स्त्री, प्र. वि., ए. व. - वेदनालम्बणरसा, बनाया गया घेरा - हं वि. वि., ए. व. - आरोहन्ता ना. रू. प. 75.
परिपतन्ति ... अनुजानामि, भिक्खवे, आलम्बनबाहान्ति, चूळव. आलम्बति आ + Vलम्ब का वर्त., प्र. पु., ए. व. [आलम्बते], 235; - रज्जु स्त्री., तत्पु. स., सहारा देने वाली रस्सी, लटकता है, सहारा या आश्रय लेता है, अधीन रहता है, सहारा के रूप में पकड़ी गई रस्सी – ज्जु द्वि. वि., ए. निर्भर होता है, आधारित रहता है, दृढ़ता के साथ किसी के व. - "इमं आलम्बित्वा परिवत्तेय्यासी ति आलम्बनरज्जु साथ लटक जाता है अथवा सट जाता है, चढ़ता है, बन्धेय्यु, जा. अट्ठ. 3.350; - रुक्ख पु., तत्पु. स. आरोहण करता है - नीचे चोलम्बते सरियो, आलम्बति [आलम्बनवृक्ष], चंक्रमण करते हुए बीच बीच में विश्राम आलम्बनं तदालम्बनं... वा, सद्द. 2.406-07; - न्तु अनु० हेतु चंक्रमण पथ के अन्त में स्थित सहारा देने वाला वृक्ष प्र. पु.. ब. व. - सब्व ते आलम्बन्तु विमानं, वि. व. 1275; - क्खो प्र. वि., ए. व. - चङ्कमे अपस्साय तिट्ठन्तरस आलम्बन्तूति आरोहन्तु, वि. व. अट्ठ. 296; - म्बिंसु अद्य., आलम्बनरुक्खो वा आलम्बनफलकं वा... अपरसेनं नाम, प्र. पु.. ब. व. - सब्बेव ते आलम्बिंस विमानं, वि. व. 12763; पारा. अट्ट. 2.51. .... आरुहिंसु, वि. व. अट्ठ. 297; - म्बित्वा/त्वान पू. आळम्बर'/आलम्बर पु., [आडम्बर], 1. युद्ध भेरी, नगाड़ा, का. कृ. - इध ... आलम्बित्वा उत्तरतूति, महाव. 34; 2. नगाड़ों का कोलाहल, शोर-शराबा - रो प्र. वि., ए. व.
ओरिमा पन तीरम्हा आलम्बित्वान रज्जुकं, अभि. अव. - आळम्बरो च पणवो, अभि. प. 144; आळम्बरो तु सारम्भे 597.
भेरिभेदे च दिस्सति, अभि. प. 854; - रा ब. व. -
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